बीमारी या मृत्यु, कब और कैसे और उसके उपाय

बीमारी या मृत्यु, कब और कैसे और उसके उपाय blog written byDr. Jitendra Vyas  

maxresdefaultवेदांग ज्योतिष के अनुसार आपकी मृत्यु कब होगी? उसका समय,उसका कारण और वह स्थान पहले से सुनिचित होता है, साथ इनके उपाय भी निश्चित होते हैं। इन सभी सूत्रों का विवेचन मैंने अपने इस ब्लॉग में किया है। क्योंकि “द्वितियाद भयम वे व भवति” संसार का प्रत्येक मनुष्य चाहे वह किसी भी जाति धर्म या मान्यताओं को मानने वाला क्यों न हो,उसके ह्रदय में प्रतिपल यह जानने की प्रबल इच्छा बनी रहती है कि उसकी आयु कितनी है? उसका जीवन कब तक चलेगा ? संसार के किसी भी विज्ञान, किसी भी डाक्तर दार्शनिक व चिंतक के पास इस समस्या का समाधान नही है कि अभी जो बालक पैदा हुआ है वह कब तक जियेगा ? इसकी मृत्यु कब व किन परिस्थितियों में होगी? इसकी आयु कितनी है ? वास्तव में सांसारिक प्राणी को समझ में न आने वाली सबसे विकट व कठिन समस्या है,उसके मृत्यु का समय निश्चित करना।

ज्योतिष शास्त्र में इस विषय पर व्यापक चिंतन किया गया है फ़िर भी जीवन भर अनेक ज्योतिष ग्रंथो को पढकर उनका अध्ययन करके भी आहुष्य का निश्चित निदान कह पाना अत्यंत कठिन है, पर व्यक्ति मृत्यु कब, कहाँ, कैसे होगी यह माँ के गर्भ में ही निर्धारित हो जाता है जिसको बतलाने का ज्योतिष के अलावा अन्य कोई तरीका नहीं है अतः ज्योतिष के द्वारा यहाँ मृत्यु के रहस्य को खोलने का प्रयास किया जा रहा है। गणित द्वारा आयुर्दाय निकालकर पूर्वाचार्यों ने आहुष्य निर्णय पर बहुत जोर दिया है,उन्होने कहा है :-

परम आयुप्रीक्षेत पश्चात्लक्षण समाचरेत।

आयुर्हीन: नरोयस्य,लक्षणै: किं प्रयोजनम॥

अर्थात विद्वान ज्योतिषी को चाहिये कि सबसे पहले सद्यजात जातक के आयु की परीक्षा करे उसके पश्चात ही किसी अन्य योग चरित्र व लक्षण पर विचार करे,क्योंकि आयु की लम्बाई जब आयु ही नही होगी तो अन्य लक्षणों का क्या प्रयोजन ।

लग्नेश के नवांश से मृत्यु का ज्ञान प्राप्त होता है तथा जन्म कुंडली में लग्न चक्र और नवांश चक्र को देखकर यह बताया जा सकता है की मृत्यु कब, कहाँ, कैसे होगी ..

1. लग्नेश का नवांश मेष हो तो पित्तदोष, पीलिया, ज्वर, जठराग्नि आदि से संबंधित बीमारी से मृत्यु होती है।

2. लग्नेश का नवांश वृष हो तो एपेंडिसाइटिस, शूल या दमा आदि से मृत्यु होती है।

3. लग्नेश मिथुन नवांश में हो तो मेनिन्जाइटिस, सिर शूल, दमा आदि से मृत्यु होती है।

4. लग्नेश कर्क नवांश में हो तो वात रोग से मृत्यु हो सकती है।

5. लग्नेश सिंह नवांश में हो तो व्रण, हथियार या अम्ल से अथवा अफीम, मय आदि के सेवन से मृत्यु होती है।

6. कन्या नवांश में लग्नेश के होने से बवासीर, मस्से आदि रोग से मृत्यु होती है।

7. तुला नवांश में लग्नेश के होने से घुटने तथा जोड़ो के दर्द के इलाज के दैरान अथवा किसी चतुष्पद जानवर के आक्रमण के कारण मृत्यु होती है।

8. लग्नेश वृश्चिक नवांश में हो तो संग्रहणी, यक्ष्मा आदि से मृत्यु होती है।

9. लग्नेश धनु नवांश में हो तो विष ज्वर, गठिया आदि के कारण मृत्यु हो सकती है।

10. लग्नेश मकर नवांश में हो तो अजीर्ण, अथवा, पेट की किसी अन्य व्याधि से मृत्यु हो सकती है।

11. लग्नेश कुंभ नवांश में हो तो श्वास संबंधी रोग, क्षय, भीषण ताप, लू आदि से मृत्यु हो सकती है।

12. लग्नेश मीन नवांश में हो धातु रोग, बवासीर, भगंदर, प्रमेह, गर्भाशय के कैंसर आदि से मृत्यु होती है।

*हत्या एवं आत्महत्या के योग प्रश्न:-

जन्म के समय के आकाशीय ग्रह योग मानव के जन्म-मृत्यु का निर्धारण करते हैं। शरीर के संवेदनशील तंत्र के ऊपर चंद्र का अधिकार होता है। चंद्र अगर शनि, मंगल, राहु-केतु, नेप्च्यून आदि ग्रहों के प्रभाव में हो तो मन व्यग्रता का अनुभव करता है। दूषित ग्रहों के प्रभाव से मन में कृतघ्नता के भाव अंकुरित होते हैं, पाप की प्रवत्ति पैदा होती है और मनुष्य अपराध, आत्महत्या, हिंसक कर्म आदि की ओर उन्मुख हो जाता है।

चंद्र की कलाओं में अस्थिरता के कारण आत्महत्या की घटनाएं अक्सर एकादशी, अमावस्या तथा पूर्णिमा के आस-पास होती हैं। मनुष्य के शरीर में शारीरिक और मानसिक बल कार्य करते हैं। मनोबल की कमी के कारण मनुष्य का विवेक काम करना बंद कर देता है और अवसाद में हार कर वह आत्महत्या जैसा पाप कर बैठता है।

आत्महत्या करने वालों में 60 प्रतिशत से अधिक लोग अवसाद या किसी न किसी मानसिक रोग से ग्रस्त होते हैं।आत्महत्या के कारण मृत्यु योग जन्म कुंडली में निम्न स्थितियां हों तो जातक आत्महत्या की तरफ उन्मुख होता है।

1. लग्न व सप्तम स्थान में नीच ग्रह हो। अष्टमेश पाप ग्रह शनि राहु से पीड़ित हो। अष्टम स्थान के दोनों तरफ अर्थात् सप्तम व नवम् भाव में पापग्रह हों।

1. चंद्र पाप ग्रह से पीड़ित हो, उच्च या नीच राशिस्थ हो अथवा मंगल व केतु की युति में हो। सप्तमेश और सूर्य नीच भाव का हो तथा राहु शनि से दृष्टि संबंध रखता हो।

2. लग्नेश व अष्टमेश का संबंध व्ययेश से हो। मंगल व षष्ठेश की युति हो, तृतीयेश, शनि और मंगल अष्टम में हों।

3. अष्टमेश यदि जल तत्वीय हो तो जातक पानी में डूबकर और यदि अग्नि तत्वीय हो तो जल कर आत्महत्या करता है।

4. कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में हो तो जातक पानी में डूबकर आत्महत्या करता है।

*हत्या या आत्महत्या के कारण होने वाली मृत्यु के अन्य योग:

1. यदि मकर या कुंभ राशिस्थ चंद्र दो पापग्रहों के मध्य हो तो जातक की मृत्यु फांसी, आत्महत्या या अग्नि से होती है। चतुर्थ भाव में सूर्य एवं मंगल तथा दशम भाव में शनि हो तो जातक की मृत्यु फांसी से होती है। यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हों तो जातक की मृत्यु हत्या, आत्महत्या, बीमारी या दुर्घटना के कारण होती है।

2. यदि अष्टम भाव में बुध और शनि स्थित हों तो जातक की मृत्यु फांसी से होती है। यदि मंगल और सूर्य राशि परिवर्तन योग में हों और अष्टमेश से केंद्र में स्थित हों तो जातक को सरकार द्वारा मृत्यु दण्ड अर्थात् फांसी मिलती है। शनि लग्न में हो और उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु और क्षीण चंद्र युत हों तो जातक की गोली या छुरे से हत्या होती है।

3. यदि नवांश लग्न से सप्तमेश, राहु या केतु से युत हो तथा भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तो जातक की मृत्यु फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेने से होती है।

4. यदि चंद्र से पंचम या नवम राशि पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि या उससे युति हो और अष्टम भाव अर्थात 22वें द्रेष्काण में सर्प, निगड़, पाश या आयुध द्रेष्काण का उदय हो रहा हो तो जातक फांसी लगाकर आत्महत्या करने से मृत्यु को प्राप्त होता है। चैथे और दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह स्थित हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो जातक फांसी लगाकर आत्महत्या करता है।

*दुर्घटना के कारण मृत्यु योग:-

1. जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ और दषम भाव में से किसी एक में सूर्य और दूसरे में मंगल हो उसकी मृत्यु पत्थर से चोट लगने के कारण होती है।

2. सूर्य और चंद्र दोनों कन्या राशि में हों और पाप ग्रह से दृष्ट हों तो जातक की उसके घर में बंधुओं के सामने मृत्यु होती है।

3. यदि कोई द्विस्वभाव राशि लग्न में हो और उस में सूर्य तथा चंद्र हों तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से होती है।

4. यदि चंद्र मेष या वृश्चिक राशि में दो पाप ग्रहों के मध्य स्थित हो तो जातक की मृत्यु शस्त्र या अग्नि दुर्घटना से होती है।

5. जिस जातक के जन्म लग्न से पंचम और नवम भावों में पाप ग्रह हों और उन दोनों पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं हो, उसकी मृत्यु बंधन से होती है।

6. जिस जातक के जन्मकाल में किसी पाप ग्रह से युत चंद्र कन्या राशि में स्थित हो, उसकी मृत्यु उसके घर की किसी स्त्री के कारण होती है।

7. जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ भाव में सूर्य या मंगल और दशम में शनि हो, उसकी मृत्यु चाकू से होती है।

8. यदि दशम भाव में क्षीण चंद्र, नवम में मंगल, लग्न में शनि और पंचम में सूर्य हो तो जातक की मृत्यु अग्नि, धुआं, बंधन या काष्ठादि के प्रहार के कारण होती है।

9. जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ भाव में मंगल, सप्तम में सूर्य और दशम में शनि स्थित हो तो उसकी मृत्यु शस्त्र या अग्नि दुर्घटना से होती है।

10. जिस जातक के जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य और चतुर्थ में मंगल स्थित हो उसकी मृत्यु सवारी से गिरने से या वाहन दुर्घटना में होती है।

11. यदि लग्न से सप्तम भाव में मंगल और लग्न में शनि, सूर्य एवं चंद्र हों उसकी मृत्यु मशीन आदि से होती है।

12. यदि मंगल, शनि और चंद्र क्रम से तुला, मेष और मकर या कुंभ में स्थित हों तो जातक की मृत्यु विष्ठा में गिरने से होती है।

13. मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम में और क्षीण चंद्र में स्थित हो उसकी मृत्यु पक्षी के कारण होती है।

14. यदि लग्न में सूर्य, पंचम में मंगल, अष्टम में शनि और नवम में क्षीण चंद्र हो तो जातक की मृत्यु पर्वत के शिखर या दीवार से गिरने अथवा वज्रपात से होती है।

15. सूर्य, शनि, चंद्र और मंगल लग्न से अष्टमस्थ या त्रिकोणस्थ हों तो वज्र या शूल के कारण अथवा दीवार से टकराकर या मोटर दुर्घटना से जातक की मृत्यु होती है।

16. चंद्र लग्न में, गुरु द्वादश भाव में हो, कोई पाप ग्रह चतुर्थ में और सूर्य अष्टम में निर्बल हो तो जातक की मृत्यु किसी दुर्घटना से होती है।

17. यदि शनि, चंद्र और मंगल क्रमशः चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में हो तो जातक की मृत्यु कुएं में गिरने से होती है।

*विभिन्न दुर्घटना योग:

1. लग्नेश और अष्टमेश दोनों अष्टम में हो। अष्टमेश पर लाभेश की दृष्टि हो (क्योंकि लाभेश षष्ठ से षष्ठम भाव का स्वामी होता है)।

1. द्वितीयेश, चतुर्थेश और षष्ठेश का परस्पर संबंध हो। मंगल, शनि और राहु भाव 2, 4 अथवा 6 में हों। तृतीयेश क्रूर हो तो परिवार के किसी सदस्य से तथा चतुर्थेश क्रूर हो तो जनता से आघात होता है। अष्टमेश पर मंगल का प्रभाव हो, तो जातक गोली का शिकार होता है। अगर शनि की दृष्टि अष्टमेश पर हो और लग्नेश भी वहीं हो तो गाड़ी, जीप, मोटर या ट्राली से दुर्घटना हो सकती है।

2. यदि दशम भाव का स्वामी नवांशपति शनि से युत होकर भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तो जातक की मृत्यु विष भक्षण से होती है।

3. यदि चंद्र या गुरु जल राशि (कर्क, वृश्चिक या मीन) में अष्टम भाव में स्थित हो और साथ में राहु हो तथा उसे पाप ग्रह देखता हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है।

4. यदि लग्न में शनि, सप्तम में राहु और क्षीण चंद्र तथा कन्या में शुक्र हो तो जातक की शस्त्राघात से मृत्यु होती है।

5. यदि अष्टम भाव तथा अष्टमेश से सूर्य, मंगल और केतु की युति हो अथवा दोनों पर उक्त तीनों ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु अग्नि दुर्घटना से होती है।

6. यदि शनि और चंद्र भाव 4, 6, 8 या 12 में हो तथा अष्टमेश अष्टम भाव में दो पाप ग्रहों से घिरा हो तो जातक की मृत्यु नदी या समुद्र में डूबने से होती है।

7. लग्नेश, अष्टमेश और सप्तमेश यदि एक साथ बैठे हों तो जातक की मृत्यु स्त्री के साथ होती है।

8. यदि कर्क या सिंह राशिस्थ चंद सप्तम या अष्टम भाव में हो और राहु से युत हो तो मृत्यु पशु के आक्रमण के कारण होती है।

9. दशम भाव में सूर्य और चतुर्थ में मंगल स्थित हो तो वाहन के टकराने से मृत्यु होती है। अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो तथा इन पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक की अकाल मृत्यु होती है। षष्ठ, अष्टम अथवा द्वादश भाव में चंद्र, शनि एवं राहु हों तो जातक की मृत्यु अस्वाभाविक तरीके से होती है।

10. लग्नेश एवं अष्टमेश बलहीन हों तथा मंगल षष्ठेश के साथ हो तो जातक की मृत्यु कष्टदायक होती है।

11. चंद्र, मंगल एवं शनि अष्टमस्थ हों तो मृत्यु शस्त्र से होती है। षष्ठ भाव में लग्नेश एवं अष्टमेश हों तथा षष्ठेश मंगल से दृष्ट हो तो जातक की मृत्यु शत्रु द्वारा या शस्त्राघात से होती है।

12. लग्नेश और अष्टमेश अष्टम भाव में हों तथा पाप ग्रहों से युत दृष्ट हों तो जातक की मृत्यु प्रायः दुर्घटना के कारण होती है।

13. चतुर्थेश, षष्ठेश एवं अष्टमेश में संबंध हो तो जातक की मृत्यु वाहन दुर्घटना में होती है। अष्टमस्थ केतु 25 वें वर्ष में भयंकर कष्ट अर्थात् मृत्युतुल्य कष्ट देता है।

14. यदि अष्टम भाव में चंद्र, मंगल, और शनि हों तो जातक की मृत्यु हथियार से होती है।

15. यदि द्वादश भाव में मंगल और अष्टम भाव में शनि हो तो भी जातक की मृत्यु हथियार द्वारा होती है।

16. यदि षष्ठ भाव में मंगल हो तो भी जातक की मृत्यु हथियार से होती है। यदि राहु चतुर्थेश के साथ षष्ठ भाव में हो तो मृत्यु डकैती या चोरी के समय उग्र आवेग के कारण होती है।

17. यदि चंद्र मेष या वृश्चिक राशि में पापकर्तरी योग में हो तो जातक जलने से या हथियार के प्रहार से मृत्यु को प्राप्त होता है।

18. यदि अष्टम भाव में चंद्र, दशम में मंगल, चतुर्थ में शनि और लग्न में सूर्य हो तो मृत्यु कुंद वस्तु से होती है।

19. यदि सप्तम भाव में मंगल और लग्न में चंद्र तथा शनि हों तो मृत्यु संताप के । विचार गोष्ठी कारण होती है।

20. यदि लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हों और मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में होती है।

21. यदि नवांश लग्न से सप्तमेश, शनि से युत हो या भाव 6, 8 या 12 में हो तो मृत्यु जहर खाने से होती है।

22. यदि चंद्र और शनि अष्टम भाव में हो और मंगल चतुर्थ में हो या सूर्य सप्तम में अथवा चंद और बुध षष्ठ भाव में हो तो जातक की मृत्यु जहर खाने से होती है।

23. यदि शुक्र मेष राशि में, सूर्य लग्न में और चंद्र सप्तम भाव में अशुभ ग्रह से युत हो तो स्त्री के कारण मृत्यु होती है।

24. यदि लग्न स्थित मीन राशि में सूर्य, चंद्र और अशुभ ग्रह हों तथा, अष्टम भाव में भी अशुभ ग्रह हों तो दुष्ट स्त्री के कारण मृत्यु होती है।

*बीमारी के कारण मृत्यु योग:-

1. जिस जातक के जन्मकाल में शनि कर्क में एवं चंद्र मकर में बैठा हो अर्थात् देानों ही ग्रहों में राशि परिवर्तन हो, उसकी मृत्यु जलोदर रोग से या जल में डूबने से होती है।

2. यदि शनि द्वितीय भाव में और मंगल दशम में हों तो मृत्यु शरीर में कीड़े पड़ने से होती है।

3. जिस जातक के जन्मकाल में क्षीण चंद्र बलवान मंगल से दृष्ट हो और शनि लग्न से अष्टम भाव में स्थित हो तो उसकी मृत्यु गुप्त रोग या शरीर में कीड़े पड़ने से या शस्त्र से या अग्नि से होती है।

4. अष्टम भाव में पाप ग्रह स्थित हो तो मृत्यु अत्यंत कष्टकारी होती है। इसी भाव में शुभ ग्रह स्थित हो और उस पर बली शनि की दृष्टि हो तो गुप्त रोग या नेत्ररोग की पीड़ा से मृत्यु होती है। क्षीण चंद्र अष्टमस्थ हो और उस पर बली शनि की दृष्टि हो तो इस स्थिति में भी उक्त रोगों से मृत्यु होती है।

5. यदि अष्टम भाव में शनि एवं राहु हो तो मृत्यु पुराने रोग के कारण होती है। यदि अष्टम भाव में चंद्र हो और साथ में मंगल, शनि या राहु हो तो जातक की मृत्यु मिरगी से होती है।

6. यदि अष्टम भाव में मंगल हो और उस पर बली शनि की दृष्टि हो तो मृत्यु सर्जरी या गुप्त रोग अथवा आंख की बीमारी के कारण होती है।

7. यदि बुध और शुक्र अष्टम भाव में हो तो जातक की मृत्यु नींद में होती है।

8. यदि मंगल लग्नेश हो (यदि मंगल नवांशेश हो) और लग्न में सूर्य और राहु तथा सिंह राशि में बुध और क्षीण चंद्र स्थित हों तो जातक की मृत्यु पेट के आपरेशन के कारण होती है।

9. जब लग्नेश या सप्तमेश, द्वितीयेश और चतुर्थेश से युत हो तो अपच के कारण मृत्यु होती है। यदि बुध सिंह राशि में अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो जातक की मृत्यु बुखार से होती है। यदि अष्टमस्थ शुक्र अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु गठिया या मधुमेह के कारण होती है।

10. यदि बृहस्पति अष्टम भाव में जलीय राशि में हो तो मृत्यु फेफड़े की बीमारी के कारण होती है।

11. यदि राहु अष्टम भाव में अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु चेचक, घाव, सांप के काटने, गिरने या पित्त दोष से मृत्यु होती है।

12. यदि मंगल षष्ठ भाव में सूर्य से दृष्ट हो तो मृत्यु हैजे से होती है। यदि मंगल और शनि अष्टम भाव में स्थित हों तो धमनी में खराबी के कारण मृत्यु होती है। नवम भाव में बुध और शुक्र हों तो हृदय रोग से मृत्यु होती है। यदि चंद्र कन्या राशि में अशुभ ग्रहों के घेरे में हो तो मृत्यु रक्त की कमी के कारण होती है।

13. यदि कन्या राशि में चंद्र दो पाप ग्रहों के मध्य स्थित हो तो जातक की मृत्यु रक्त विकार या क्षय रोग से होती है।

उपाय:

1) सूर्य ग्रह से जनित बीमारियों के लिए सिद्ध अभिमंत्रित सूर्य बीसा धारण करें, या निर्वाचन, नेत्रोपदेश, आदित्य हृदय स्त्रोत का जप अनुष्ठान विधिवत करें।

2) चन्द्र ग्रह से जनित बीमारियों के लिए सिद्ध अभिमंत्रित चन्द्र बीसा धारण करें, या दुर्गा सप्तशती, पूर्णिमव्रत अनुष्ठान, पराम्बा ललिता तथा दक्षिणामूर्ति शिव मंत्र जप अनुष्ठान विधिवत करें।

3) मंगल ग्रह से जनित बीमारियों के लिए सिद्ध अभिमंत्रित मंगल बीसा धारण करें, या कार्तिकेय स्त्रोत का या भुजंग स्त्रोत का या, प्रत्यांगिरा का, अंगारक स्त्रोत का जप अनुष्ठान विधिवत करें।

4) बुध ग्रह से जनित बीमारियों के लिए सिद्ध अभिमंत्रित बुध बीसा धारण करें, या महाधन्वन्तरी या विष्णुसहस्त्रनाम, गोपालसहस्त्रनाम या राजेन्द्रमोक्ष या रामरक्षा इत्यादि के अमोघ प्रयोग का मंत्र-जप अनुष्ठान करें।

5) गुरु ग्रह से जनित बीमारियों के लिए सिद्ध अभिमंत्रित गुरु बीसा धारण करें, या गुरु का तांत्रिक हवन, शिवसहस्त्रनाम, पुरुष सूक्ता, सुदर्शन हवन, इत्यादि के अमोघ प्रयोग का मंत्र-जप अनुष्ठान करें।

6) शुक्र ग्रह से जनित बीमारियों के लिए सिद्ध अभिमंत्रित शुक्र बीसा धारण करें, या इंद्राणी यंत्र प्रतिस्थापित करें या शतचंडी या सहस्त्रचंडी, लक्ष्मीनारायण हृदय, श्री सूक्त पूजा, धनदा यक्षिणी प्रयोग इत्यादि के अमोघ प्रयोग का मंत्र-जप अनुष्ठान करें।

7) शनि ग्रह से जनित बीमारियों के लिए सिद्ध अभिमंत्रित शनि बीसा धारण करें, या भैरव जप, शनि स्त्रोत का तांत्रिक जप, इत्यादि के अमोघ प्रयोग का मंत्र-जप अनुष्ठान करें।

8) राहू ग्रह से जनित बीमारियों के लिए सिद्ध अभिमंत्रित राहू बीसा धारण करें, या छिन्नमस्ता माँ का, प्रत्यांगिरा जप, नरसिंह कवच, कार्तवीर्यजुन मंत्रप्रयोग इत्यादि के अमोघ प्रयोग का मंत्र-जप अनुष्ठान करें।

9) केतू ग्रह से जनित बीमारियों के लिए सिद्ध अभिमंत्रित केतू बीसा धारण करें, या गणपति सहस्त्रनाम,‘उच्छिष्ट गणपति’ प्रयोग इत्यादि के अमोघ प्रयोग का मंत्र-जप अनुष्ठान करें।

Blog no.92,  Date: 8/8/2017

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