“भारतीय राजनीति के संभावित भविष्य का विशुद्ध आंकलन: ज्योतिषानुसार” blog written by Dr. Jitendra Vyas
भारतीय राजनीति को व उसके प्रादुर्भाव को भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही समझा जा सकता है। किसी भी विषय की समीक्षा के लिए ज्योतिष विषय सर्वोत्तम मापदंड है। देश की राजनीति, राजनीतिक लोग, उच्च पदासीन व्यक्ति व राजनेता ज्योतिष प्रेम के सार्वजनिक प्रचार से प्रायः बचते रहते हैं, लेकिन ज्योतिष से अर्थात् ग्रह नक्षत्रों से तो कोई बच नहीं पाया है।1 राजनेता हो या अन्य कोई, सभी को भाग्य जानने की जिज्ञासा अवश्य ही होती है, प्रत्येक व्यक्ति उसका रहस्योद्घाटन करना चाहता है अतः वह भविष्य जानने के लिए उत्सुक रहता है, “द्वितीयाद् वै भयं भवति” सूत्रानुसार प्रायः हर प्राणी में, क्षेत्र विशेष में जन्मजात असुरक्षा का भाव रहता है।
ज्योतिष परम पवित्र एवं दिव्य विद्या है। भारतीय मनीषा में विद्या मुक्ति के अर्थ में ग्राह्य रही है “साविद्याया विमुक्तये” वेद के षडाङ्गों – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छण्द – में इसका (ज्योतिष) एक अति महत्वपूर्ण स्थान सुरक्षित है। यह वेदों के नेत्र के रूप में वर्णित है। इस धरा की निर्मल पवित्रता का प्रमाण वेद है, और इसी पवित्र धारा का अभिन्न अंग ज्योतिर्विज्ञान है, इसी विज्ञान द्वारा यहाँ राजनीति विज्ञान का मर्म समझने का प्रयास किया जायेगा।2
भारतीय राजनीति में ज्योतिष किस प्रकार कारगर रही है उसके लिए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के ज्योतिष प्रेम को समझना पड़ेगा तत्पश्चात् स्वतंत्र भारत के सभी घटे हित व अहित की चर्चा संभव हो सकेगी। पं. नेहरू के लिए प्रायः यह समझा जाता है कि वह भारत में वैज्ञानिक आविष्कारों के जरिये एक नयी क्रांति कि संभावना खोजते थे जो कि किसी हद तक सच भी था लेकिन मैं यहाँ कुछ ऐसे अकाट्य प्रमाणों कि चर्चा कर रहा हूँ की जिससे यह प्रामाणिक रूप से यह कहा जा सकेगा कि भारतीय राजनीति व राजनेता ज्योतिष जिज्ञासु, व ज्योतिष आस्थावान थे तथा ज्योतिष ज्ञान ने ही भारत को व भारतीय राजनीति को अग्रसर किया है। यहाँ मैं एक प्रसंग प्रस्तुत कर रहा हूँ। पं. नेहरू स्वयं ज्योतिषी नहीं थे यद्यपि व सूर्य व खगोल ज्योतिष का पूर्ण ज्ञान रखते थे परन्तु फलित ज्योतिष की जानकारी के लिए
नेहरू जी पंतजी से एवं नरेंद्र देव जी से यथा संभव जानकारी लेते रहते थे। पं. नेहरू के लिए कई प्रकार की विचारधाराएँ आमजन में बनती रहीं है, जिनमें कुछ लोग उन्हें आस्तिक या ज्योतिष विद्या के प्रति आस्थावान नहीं मानते हैं। लेकिन पं. नेहरू फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित नेहरू जी के पत्रों से उनकी ईश्वरीय आस्था एवं ज्योतिष प्रेम के साथ ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान का भी स्पष्ट प्रमाण मिलता है यह सारे पत्र उन्होनें आजादी से पूर्व स्वतन्त्रता आंदोलन के समय अंग्रेजों द्वारा बनाई गयी अहमद नगर फोर्ट की जेल में लिखे थे।3 जिसमे से एक पत्र उन्होने अपनी बहिन को लिखा उनकी दो बहिनें थी, विजय लक्ष्मी पंडित एवं कृष्णा हरि सिंह। पं. नेहरू के अगस्त 1944 के अहमद नगर जेल प्रवास में थे, वहाँ अंग्रेजों ने सप्ताह में एक ही पत्र लिखने की इजाजत दे रखी थी। उसी समय 20 अगस्त 1944 को मुंबई में श्रीमति इंदिरा गांधी को एक पुत्र रत्न पैदा हुआ। उसी क्रम में पं. नेहरू ने 26 अगस्त 1944 को इंदिरा जी को एक विस्तृत पत्र लिखा पत्र4 में अपनी बहन के पुत्र का ज़िक्र करते हुए लिखा कि बेटी (कृष्णा हरिसिंह बहन) हनुमान व गणेश की आराधना करती है। मैं प्रसन्न हुआ कि हमारे घर में कोई तो भगवान में आस्था रखता है क्योंकि आस्थावान व्यक्ति ही प्रसन्नता की अभिव्यक्ति दे सकता है, यहाँ उनकी ईश्वरीय आस्था व आस्तिक होने का प्रमाण मिलता है।
राजीव गांधी के जन्म के समय लिखे गए दूसरे पत्र में जन्मपत्री को पारिवारिक पुरानी परंपरा का ज़िक्र करते हुए नेहरू जी ने लिखा था “ BETI NO DOUBT WE WILL TAKE ALL THE NECESSARY STEPS TO HAVE A JANAMPATRI MADE ACCORDING TO OUR TRADITIONAL WAY THAT IS TO RECORD THE EXACT DATE AND TIME OF BIRTH. THE DATE ACCORDING TO THE SAMVAT CALENDER AS FOR I CAN MAKE IT OUT, IS BHADRAPAD SHUKL PAKSH 2 SAMVAT 2001”।5
भारतीय राजनीति के विशुद्ध आंकलन के ऐसे अनगिनत उदाहरण मैं यहाँ दे सकता हूँ। पं. नेहरू के इसी ज्योतिष प्रेम के आधार पर उन्होनें ने भारत को आजादी दिलाने का समय चुना था। नेहरू जी ने भारत की आजादी का समय अपने कुछ चुनिन्दा ज्योतिषीयों की सलाह पर 15 अगस्त 1947 के वृषभ लग्न को ही रखा।6
भारतीय ज्योतिष में सभी प्रकार के सिद्धान्तों का प्राचीनतम प्रामाणिक स्वरूप है7 तथा वेदांग ज्योतिष8 ने भारतीय राजनीति का आधुनिक स्वरूप भी प्रस्तुत किया है। “वैदिक संपति” मे अकाट्य प्रमाणों व तर्कों के साथ यह बताया गया है कि विश्व कि सभी समस्याओं का समाधान वेदांग ज्योतिष मे ही अंतर्निहित है जिसमें राजनीतिक समस्याएँ व उनसे संबन्धित क्षेत्र भी हैं।9 क्योंकि काल का ज्ञान ग्रहों के अधीन है तथा कर्मों का फल भी ग्रहों के अधीन है10 अतः ज्योतिष विषय कि भूमिका प्रत्येक विषय मे अपेक्षित है, चाहे वो विषय राजनीति विज्ञान ही क्यों न हो। ज्योतिष अपने आप मे सम्पूर्ण विज्ञान है11 और इसी शास्त्र से हम भारतवर्ष के भविष्य मे होने वाले घटनाक्रम की विस्तृत व्याख्या कर सकते है।
भारतीय राजनीति मे वेदांग ज्योतिषानुसार आगामी वर्षों की दशा-दिशा विचार का विभिन्न प्रकार से आंकलन प्रस्तावित है। उसी संभावित भविष्य को 16 मई 2014 की सूर्योदय कुण्डली (लोकसभा चुनाव की काऊन्टिंग का दिन), स्वतंत्र भारत की कुण्डली, प्रधानमंत्री मोदी की कुण्डली, भारत के संविधान की कुंडली व पड़ोसी देश पाकिस्तान की कुंडली के विश्लेषण द्वारा यहाँ समझाने का प्रयास किया है। ज्योतिष में राष्ट्र की राष्ट्रीय ज्योतिष का जिस पटल पर निरूपण होता है, वह “मेदनीय ज्योतिष”12 कहलाता है। किसी भी जन्म कुंडली मे 12 भाव होतें हैं। इन्हीं (लग्न)1 से लेकर 12 भावों से प्रत्येक भाव राष्ट्र (देश) की विभिन्न स्थितियों पर प्रभाव डालता है।
प्रथम (लग्न) भाव– लग्न से राष्ट्र का नेतृत्व व शासक की नेतृत्व क्षमता, राज्यों की दशाएँ, प्रजा, जनमानस का स्वास्थ्य एवं मंत्रीमंडल के कामकाज से जुड़ी विभिन्न स्थितियों को निर्देशित करता है। दूसरा भाव – इस भाव से राज्यों का राजस्व, अर्थ व अर्थस्त्रोत, जनमानस की आर्थिक दशा, आयात-निर्यात व वाणिज्य-व्यवसाययादी का विचार किया जाता है। तृतीय भाव से संचार (फोन, इंटरनेट), वायुयान व रेल इत्यादि। चतुर्थ भाव से कृषि संसाधन, उच्च शिक्षा व उच्च शिक्षण संस्थानों को देखा जाता है। पंचम भाव से देश के प्रशासक उच्चाधिकारी (RES, IAS, SECRETARY), मनोरंजन क्षेत्र, बाल्य संतति व बल शक्ति देखी जाती है। षष्ठ भाव से देश के सीमा विवाद, आक्रमण सोच, क्रय-विक्रय, साझेदारियाँ, राष्ट्रीय नेतिकता, वैदेशिक सम्बंध व नारी स्वास्थ्य का विचार किया जाता है। सप्तम भाव से राष्ट्र की मृत्यु दर, देश मे फेलते संक्रमिक (फ्लू, इबोला, डेंगू इत्यादि) व असाध्य रोग (एड्स) इत्यादि को देखा जाता है। अष्टम भाव से मृत्यु संख्या व देश का ऋण, राष्ट्रीय अर्थ व आधिदैविक व आधिभौतिक संख्यक लोगों का विचार किया जाता है। नवम भाव से राष्ट्र की विकास योजनाएँ, न्यायालय, सेलानी स्थल, सेलानी (टूरिज़्म) आगमन का विचार किया जाता है। दशम भाव से प्रशासनिक वर्ग, संसद व सांसद, विदेश व्यापार, विद्रोह, अलगाववाद, नक्सलवाद इत्यादि को देखा जाता है। एकादश भाव से FDI, परराष्ट्रों से लाभ, अंतर्राष्ट्रीय सम्बंध का तथा बाहरवें भाव से युद्ध संबंधी विचार, षड्यंत्र, अपराध व राष्ट्र के शत्रुओं का विचार किया जाता है।13
“वेदांग ज्योतिषम्” के अनुसार मेदनीय ज्योतिष के अनुसार स्वतंत्र भारत की कुंडली 15 अगस्त 1947 की है, स्वतन्त्रता के समय वृषभ लग्न था14, मीन राशि का नवमांश था तथा पुष्य नक्षत्र का प्रथम चरण भी था।15 तत्कालीन गवर्नर माउण्टबेटन ने पं. जवाहर लाल नेहरू के कहने पर वृषभ लग्न मे उन्हें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई16 और यही वृषभ लग्न 16 मई 2014 की वोटों काउंटिंग की सूर्योदय कुंडली मे भी है।17 स्वतंत्र भारत की कुंडली देखने पर हमें उसमें नेष्ट व शुभ 103 योग मिलते हैं। स्वविर्यातधन योग, चंद्रिका योग, परान्नभक्षण योग, समाजड़ योग, देह कष्ट योग व पूर्णायु योग है पंचगृही योग भी कुंडली मे स्थित है।18
16 मई 2014 की कुंडली मे लग्नेश शुक्र उच्चगत है,सूर्य-बुध का बुधादित्य योग लग्नस्थ है तथा धनेश व पंचमेश बुध, केंद्रेश व चतुर्थेश सूर्य के साथ बली होकर विराजित है इसी बुध की महादशा भी चल रही है अतः “मेदनीय ज्योतिषानुसार” आगामी पाँच वर्षों में भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर (रोड इत्यादि) का विकास होगा, भारत अर्थ संपन्न आर्थिक शक्ति बनेगा और जगत्गुरु भी कहलाएगा। नवमेश व दशमेश शनि उच्च होकर षष्ठम भाव में वक्री है अतः भारत में अनगिनत परियोजनाएँ चलेंगी, दशमेश उच्चगत होने के कारण विदेश व्यापार बढ़ेगा, भारत मे विद्रोह, नक्सलवाद, अलगाववाद घटेगा। आने वाले पाँच वर्षों मे सीमा विवादों का निस्तारण होगा, समुंद्री व थलसेना का विस्तार होगा, देश का धनकोष व संपत्ति का विस्तार संभव हो सकेगा चूंकि वक्री शनि छठे भाव मे है। एकादश भाव मे उच्चगत लग्नेश शुक्र विराजित है अतः इस समय फ़ोरेन डाइरैक्ट इनवेस्टमेंट अन्य देशों से लाभ व अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों मे प्रगाड़ता होगी जो कि विगत कुछ महीनों (मई 2014 से दिसम्बर 2014) में दिखा है। बाहरवें भाव का आधिपति मंगल पंचम भाव मे वक्री है अतः देश की जनसंख्या विस्तार मे कमी होगी, देश के प्रति षड्यंत्र व अपराध कम होंगे और देश के गुप्त शत्रु भी कम होंगे। आजाद भारत कुंडली भी वृषभ लग्न की है, “जैमिनी सूत्रानुसार”19 हिदुस्तान दीर्घायु योग धारक है, वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे दीर्घायु होने का तात्पर्य 90 वर्ष की आयु होने से है, अतः यह योग भारत की स्वतन्त्रता से 90 वर्ष तक है अर्थात् 2037 तक। अभी आजाद हिंदुस्तान की कुंडली मे चन्द्रमा की गजदशा मे राहू का अंतर चल रहा है जो की 11/2/2017 से लगा है अगले वर्ष अगस्त 2018 तक चलेगा। जब भारत की नई सरकार बनी तब सूर्य मे केतू की अंतर्दशा चल रही थी वह 5 मई 2014 को लगी थी। यह दशा केंद्रेश सूर्य मे उच्चगत20 व केंद्रस्थ केतू की अंतर्दशा चल रही थी। मैनें (डॉ जितेंद्र व्यास) अपने प्रकाशित शोधपत्र “भारतीय राजनीति के भविष्य की दशा व दिशा विचार……एक ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य”21 भविष्यवाणी कर दी थी की 2015 से पहले एक मजबूत एक राष्ट्रवादी सरकार, तेज व कुशल नेतृत्व वाली सरकार आएगी वह समय स्वतंत्र भारत के लिए अद्भूत होगा।
ध्यान रहे कि भारतीय संविधान की कुंडली की पात्रता भारत वर्ष मे उसी प्रकार रहेगी जिस प्रकार भारत कि स्वतंत्रता की कुंडली कि है अतः इसका भी समानांतर फलित मेंने यहाँ बताया है। कम ही लोग जानते है कि भारत के संविधान का एलान करने की दो दिनांकों का प्रस्ताव रखा गया था, पहली 26नवम्बर 1949 व दूसरी 26जनवरी 1950 अंततः कुछ तकनीकी दिक्कतों के कारण 26/1/1950 को भारतीय संविधान एलान किया गया ओर उसी दिन से संविधान की सभी धाराएँ भारत वासियों पर लागू है। इंडिया के संविधान की सूर्योदय कुंडली में मकर लग्न व
मेष राशि की पृष्ट भूमि है। बुध, शनि व शुक्र तीनों कारक ग्रह वक्री हैं तथा शुक्र अस्त है व शनि, बुध भंग है। लग्नेश शनि अष्टम मे है तथा वहाँ शत्रुक्षेत्री है और लग्न भंग है इसी कारण आज भी भारत अच्छे व कठोर कानूनों की प्रतीक्षा मे है, भाग्येश बुध भी द्वादश भाव में बैठ कर भाग्य को भंग कर रहे है। शुक्र, मकर लग्न मे राजयोग कारक होता है परन्तु शुक्र, सूर्य व गुरु के साथ लग्न मे अस्त है। ज्योतिषीय परिचर्चा मे दशाओं की बात न करना तो अनुचित है तो मे आपको बताता चलूँ कि 1950 से लेकर 2012 तक दशाएँ भी अधिकतर अनिष्ट कारक ही रही हैं, जिसके चलते अच्छे, सुदृढ़ व राष्ट्रवादी कानून नहीं बन पाये, इस बीते समय मे कानूनों की चर्चाएँ तो खूब होती रही हैं परन्तु तत्कालीन सरकारों ने उसे बनाने की जहमत (कष्ट) नहीं उठायी। शोधपत्र की शब्द परिसीमा की वजह से यहाँ मे आप के सामने कुछ ही प्रसंगों की संक्षिप्त चर्चा करूँगा। संविधान के शुरुवाती दौर में 26/4/1951 से 26/4/1971 तक अस्ताचल शुक्र की दशा थी इस समय कानून तो बने परन्तु अध-पके। तत्पश्चात् अप्रेल 71 से अप्रेल 77 तक अष्टमेष सूर्य की दशा चली और ये सूर्य लग्न मे विराजित है तथा वहाँ सामूहिक अनिष्ट कारक हैं, अतः उस कालखण्ड मे कई आत्मघाती कानून बनाये गये जिसके परिणाम स्वरूप ऐसे कई अध्यादेश व निर्णय रहे जो कि भारत के इतिहास के काले पन्नों मे लिखे गये, इमरजेंसी इसी का ज्वलंत उदाहरण है मेंने अपने अनुभव से यह देखा है, जब-जब अष्टमेष लग्न मे विराजित हुआ है तो वह कुंडली समूहिक अनिष्ट का ग्रास बनी है, जैसे कि यहाँ भारत की संविधान कि कुण्डली में है। सूर्य के बाद 1977 से 1987 तक चन्द्रमा की दशा चली चन्द्रमा मकर लग्न मे मारकेश का कार्य करता है, इसी समय शाहबानों का केस हुआ जहां तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को सांसद मे नया कानून लाकर पलट दिया, यह भारतीय संविधान की हत्या थी क्योंकि कोर्ट संविधान से चलती है तथा मंदिर के रूप मे पूजी जाती है, यह सब चंद्रमा के वजह से हुआ, ऐसे कई उदाहरण है परन्तु शब्दों के परिसीमन की वजह से यहाँ देना उचित नहीं है। 1994 से 2012 तक क्रमशः मंगल व राहु की दशा चली जो की कई नए कानूनों की गवाह रही परन्तु इस समय एक समस्या के लिए दस कानून बन गये जो की उलझन का कारण बने, यह सब मारक मंगल व राहु की देन रहे। अप्रेल 2012 से गुरु की महादशा चल रही है मेरी भविष्य वाणी है यह समय स्वतन्त्र भारत के लिए अद्भुत व प्रजा सम्यक् कानूनों का होगा जिसका ज्वलंत उदाहरण लोकपाल कानून है। लगभग 50 वर्षों से अटका लोकपाल कानून इसी गुरु की दशा की देन है, 2024 तक इसमें कई संशोधित होंगे, गुरु की दशा 16 वर्ष की है अर्थात् 2028 तक भारत मे कई बली व अच्छे कानून बनेंगे व कई पुराने कानून संशोधित होंगे व हटेंगे अतः यह गुरु ग्रह का समय हमारे संविधान के लिए स्वर्णिम होगा।
भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी की कुंडली व 16/5/2014 वोटों की काउंटिंग वालीकुंडली मे एक अद्भूत संयोग है, दोनों ही कुंडलियों मे चंद्रमा नीचगत है और परंतु साथ ही वह नीचभंग राजयोग भी बना रहा है। मोदी जी की कुंडली मे लग्नेश मंगल के साथ लग्नस्थ होकर नीचभंग राजयोग बना रहा है।22 दोनों ही जन्मांगों मे शनि की साढ़ेसाती चल रही है, जिसकी दूसरी ढ्य्या23 2 नवम्बर 2014 से चल रही है अतः शनि की तृतीय दृष्टि अपनी एक इतर राशि पर है, इसी दूसरी ढ्य्या ने श्री मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाया “फलानिग्रहचारेनसूचयन्तीमनीषिण:” और इसी ने राष्ट्र को सक्षम नेतृत्व दिया अतः तीसरी ढ्य्या का समय भी शानदार जाएगा। मोदी जी की कुंडली मे 26 नवम्बर 2011 के बाद से भाग्येश चंद्रमा की 10 वर्ष की दशा चल रही है, उनके प्रधानमंत्री बनने मे इस दशा की भी बड़ी भूमिका व पात्रता रही है और यह 26 नवंबर 2021 तक चलेगी अतः मेँ आज कहता हूँ कि मोदी जी पूरे 10 साल प्रधानमंत्री रहेंगें और अपने कार्यकाल के दो टर्म पूरे करेंगें क्योंकि यह चन्द्रमा, रुचकपंचमहापुरुष राजयोग कारक लग्नेश मंगल के साथ लग्न मे विराजित है। यथा-
“तारा ग्रहैर्बल युते: स्व क्षेत्र स्वोच्चगैचतुष्टयगै:।
पञ्च पुरूषा: प्रशस्ता जायन्ते तानहं वक्ष्ये ॥”24
“सुभ्रूकेशो रक्तश्याम: कंबुग्रीवो व्यादीर्घास्य: ।
शूर: क्रूर: श्रेष्ठो मंत्री चौरस्वामी व्यायामी च ।।”25
यहाँ मोदी जी के देर से खुले भाग्य व भारत के सर्वोच्च प्रशासनिक पद (प्रधानमंत्री) पर पहुचनें की चर्चा उनके नवमांश व दशमांश (पद कुण्डली) के बिना अधूरी है। क्योंकि मोदी जी की जन्म कुण्डली मे जो रुचक पंचमहापुरुष राजयोग कारक मंगल है, वह मंगल नवमांश कुण्डली मे कर्क लग्न मे नीचगत स्थित है तथा चन्द्रमा से वियुक्त है अर्थात् अकेला विराजित है अतः इतनी बली, सुन्दर व योगकारक कुण्डली होते हुए भी उन्हें 50 वें वर्ष (2001) में राजयोग प्राप्त उसमे भी जब चन्द्रमा की दशा (2011 से) आयी तो परम राजयोग (प्रधानमंत्री पद) प्राप्त हुआ अतः इन सभी राजयोगों की देरी नवमांश कुण्डली के कारण हुई। दशमांश कुण्डली (जीवन में पद प्राप्ति की कुण्डली) में भी नवमांश की तरह कर्क लग्न है तथानीचगत मंगल (जन्म कुण्डली का रुचक पंचमहापुरुष राजयोग कारक) है, परन्तु यहाँ यही मंगल अपना नीचभंग कर रहा है, इसीलिए मैनें पहले ही दो बार प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी कर दी है।
भारत वर्ष की कुंडली मे सितम्बर 2018 तक स्ववीर्याद्धार्न26 योग है, जिसके चलते, अटके हुये सारे प्रोजेक्ट्स का निस्तारण होगा व आर्थिक स्थिति का सुधार होगा। 2018 के अंत तक भारत अपने सभी सीमा विवादों (पाक अधिकृत कश्मीर) के हल के निकट पहुँच जाएगा, चूंकि भारत का मुख्य सीमा विवाद पाकिस्तान से है तथा काश्मीर के सीमा विवाद के कारण ही पूरे हिंदुस्तान मे अस्थिरता का माहौल बनया जाता है इसी समस्या का हल निकलेगा।
पाकिस्तान हमसे आधा घंटा पहले आजाद हुआ, पाकिस्तान की कुंडली27 का निरीक्षण करने पर उसमे मध्यायु28 योग पाया गया है जो कि कमोवेश 68 वर्ष का होता है। पाकिस्तान को स्वतंत्र हुए 65 वर्ष हो गए है अतः पाकिस्तान वर्ष 2015 से 2019 के बीच नाकारा देश घोषित हो जाएगा तथा किसी अन्य देश (भारत) से संचालित होगा। पाकिस्तान का इतिहास यदि देखा जाए तो आजादी के बाद से पाकिस्तान गृहयुद्ध से ही घिरा रहा है, 2019 के बाद से यह गृहयुद्ध पाकिस्तान को समाप्त करेगा। पाकिस्तान मे बलूच, पंजाबी से लड़ रहा है, पंजाबी-सुन्नी, सिंध प्रांत को व पश्तुन को दबा रहा है। सारे प्रांत पंजाब के विरुद्ध खड़े हैं। यह सभी चतुर्थ अस्ताचल चन्द्रमा की देन है ओर इसी चन्द्रमा की दशा 2016 से आरंभ मे लग गयी है, पाकिस्तान की राजनीति की चर्चा यहाँ विषयांतर है अतः यह अलग से वृहद् चर्चा का विषय है।पाक अधिकृत कश्मीर शनि ग्रह के धनु राशि तक के पूर्ण भ्रमण काल (2019 तक) से पहले ही भारत का हो जाएगा, भारत की समस्त भूमि धीरे-धीरे अधिग्रहित हो जाएगी। इस समस्या के निस्तारण का प्रादुर्भाव कन्या राशि के शनि ने कर दिया।
गर्ग ऋषि का कथन है-
“काश्मीरं यति नाशम हयरवदलितं
तत्रकुर्याद्रन्न्स्यं धातुरुप्यं गजहयवृषभ छगल माहिष च।
कन्यायां सुर्येपुत्रे सकलजन सुखं संग्रहे सर्व धान्यम् ।।”29
स्वतंत्र भारत की कुंडली मे चंद्रमा स्वगृही होकर पराक्रम भाव मे है जिसकी दशा सितम्बर वर्ष 2015 लग गयी है, इस दशा मे संचार क्रांति का अद्भूत योग है। रेल लाईन व बुलेट रेल का जाल फेलेगा, देश मे न्याय प्रक्रिया का आमूलचूल परिवर्तन होगा तथा दोषियों को जल्द सजा मिलेगी। स्वतंत्र भारत की कुंडली के अनुसार आगामी दस वर्षों में बहुतायत में संशोधन होंगें चूंकि पराक्रमेश (तृतीय भाव का अधिपति) चंद्रमा स्वगृही होकर नवम भाव को देख रहा है। विकास की अनैक परियोजनाएँ अपनी परिणिती तक पहुंचेगी, विकसित देशों की श्रेणी की तरफ भारत वर्ष तेजी से अग्रणी होगा, यही भारतीय राजनीति का संभावित भविष्य होगा।
सन्दर्भ:-
1. “ज्योरिक”- वेदांग ज्योतिष की प्रासंगिकता / डॉ जितेन्द्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर 2012 / पृ. 135
2. भारतीय ग्रह विज्ञान और आधुनिक समस्याएँ: कारण एवं निवारण / डॉ जितेन्द्र व्यास / प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली 2013 / प्राक्कथन
3. “ज्योरिक”- वेदांग ज्योतिष की प्रासंगिकता / डॉ जितेन्द्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर 2012 / पृ. 135
4. “ज्योरिक”- वेदांग ज्योतिष की प्रासंगिकता / डॉ जितेन्द्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर 2012 / पृ. 135
5. “ज्योरिक”- वेदांग ज्योतिष की प्रासंगिकता / डॉ जितेन्द्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर 2012 / पृ. 135
6. ज्योतिष विज्ञान निर्जरी / राजस्थान संस्कृत अकेडमी / पृ. 83
7. भारतीय ज्योतिष का इतिहास / डॉ गोरख प्रसाद / प्रकाशक- उ. प्र. शासन 1974 / पृ. 10
8. भारतीय ग्रह विज्ञान और आधुनिक समस्याएँ: कारण एवं निवारण / डॉ जितेन्द्र व्यास / प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली2013 / पृ.1,
9. वैदिक संपत्ति / प्रकाशक- कच्छ केरल, बम्बई 1930 / पृ. 90
10. “ग्रहाधीनंजगत्सर्वं,ग्रहाधीनं नरावरा:।
ग्रहाधीनंकालज्ञानम्,कालकर्मफलप्रदा:||” ‘वेदांग ज्योतिषम्’ / डॉ जितेन्द्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर / प्राक्कथन
- “ज्योरिक”- वेदांग ज्योतिष की प्रासंगिकता / डॉ जितेन्द्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर 2012 / पृ. 10
12. भारतीय ग्रह विज्ञान और आधुनिक समस्याएँ: कारण एवं निवारण / डॉ जितेन्द्र व्यास / प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली 2014 / पृ.67
13. भारतीय फलित ज्योतिष संहिता / प्रकाशक- मनोज पब्लिकेशन, 2006 / पृ. 248-254
14. वेंक्टेशवर शताब्दि पंचाग, पुणे
15. वृज्जातकम् / राशि भेदाध्याय / श्लोक 6 / पृ. 5
16. “ज्योरिक”- वेदांग ज्योतिष की प्रासंगिकता / डॉ जितेन्द्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर 2012 / पृ. 135
17. निर्णय सागर पंचांग / नीमच म. प्र.
18. ज्योतिष विज्ञान निर्जरी / राजस्थान संस्कृत अकेडमी / पृ. 83
19. जैमिनी सूत्र / निर्णय सागर पंचांग / नीमच म. प्र. 2014 / पृ. 121
20. लघुपराशरी सिद्धांत / एस. जी. खोत / मोतीलाल बनारसीदास / पृ.418
21. “वेदांग ज्योतिषम्” / डॉ जितेन्द्र व्यास / शोधपत्र- “भारतीय राजनीति के भविष्य की दशा-दिशा विचार – एक ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य” / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर,
- भारतीय ग्रह विज्ञान और आधुनिक समस्याएँ: कारण एवं निवारण / डॉ जितेन्द्र व्यास / प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली 2013 / पृ.26-27
23. भारतीय ग्रह विज्ञान और आधुनिक समस्याएँ: कारण एवं निवारण / डॉ जितेन्द्र व्यास / प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली 2013 / पृ.15
24. बृहत्संहिता / पञ्चमहापुरुषलक्षनाध्याय / प्रकाशक- भारतीय विद्या प्रकाशन 2006 / श्लोक-1 / पृ. 349
25. बृहत्संहिता / पञ्चमहापुरुषलक्षनाध्याय / प्रकाशक- भारतीय विद्या प्रकाशन 2006 / श्लोक-27 / पृ. 353
26. ज्योतिष विज्ञान निर्जरी / राजस्थान संस्कृत अकाडमी / पृ. 82-83
27. ज्योतिष विज्ञान निर्जरी / राजस्थान संस्कृत अकाडमी / पृ. 82-83
28. जैमिनी सूत्र / निर्णय सागर पंचांग / नीमच म. प्र. 2014 / पृ. 121
29. अद्भूत दर्पण / गर्ग ऋषि
Blog no. 113, Date: 30/10/2017
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