रुद्राक्ष के वैदिक नियम-फल व गुण की वैज्ञानिकता

      रुद्राक्ष के वैदिक नियम-फल व गुण की वैज्ञानिकता by Dr. Pt. Jitendra Vyas

Rudrakshरुद्राक्ष यह अमूल्य फल ऋषियों के शरीर की शोभा रुद्राक्ष को भगवान शिव का अंश माना गया है एवं यह हर प्रकार से मनुष्य जाति के लिए उपयोगी है, रुद्राक्ष के धार्मिक, वैज्ञानिक व आयुर्वेदिक महत्व भी है अतः इस blog में मैंने रुद्राक्ष के विषय में सम्पूर्ण वैदिक विवरण प्रस्तुत किया है।

रुद्राक्ष: यस्य गात्रेशु ललाटे च त्रिपुण्ड्रकम् ।
स चाण्डालोंअपि सम्पूज्य: सर्ववर्णोतमो भवेत् ॥

रुद्राक्ष में एक विद्ध्युत शक्ति होती है, जो मानव के शरीर में घर्षण करके हमें विशेष प्रकार की ऊर्जा प्राप्त कराते हैं। मानव शरीर इसे ग्रहण कर लेता है और इसी कारण इसे धारण करने वाला व्यक्ति अनेक बीमारियों से सुरक्षित रहता है। यूं तो रुद्राक्ष को वैज्ञानिक आधार पर बिना मंत्र का उच्चारण किए भी धरण किया जा सकता है परन्तु अभिमंत्रित किए रुद्राक्ष में विलक्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है, अतः अभिमंत्रित रुद्राक्ष ही धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष 21 प्रकार के होते हैं, लेकिन प्राय: यह 1 मुखी से 14 मुखी तक तथा गौरी-शंकर रुद्राक्ष के रूप तक के ही में मिलते हैं।

रुद्राक्ष धारण करने के नियम:
1) इसे सोमवार या द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी अथवा पूर्णिमा को धारण करना चाहिए।
2) रुद्राक्ष माला में सुमेरु के अलावा 108 दाने होने चाहिए और विशेष रुद्राक्ष के लिए विशेष मंत्र उच्चारित कर धारण करना चाहिए।

[1.] एक मुखी रुद्राक्ष: एक मुखी रुद्राक्ष साक्षात् शिव का रूप होता है, इससे सात्विक शक्ति में वृद्धि होती है, यह लक्ष्मी, मोक्ष, वैभव, प्रतिष्ठा और देवीय कृपा देने वाला होता है। इसे धारण करने से मनुष्य पवित्र हो जाते हैं, उसकी सभी महत्वकांक्षाएँ पूर्ण हो जाती हैं। धारक भक्ति व मुक्ति दोनों प्राप्त करता है तथा पवित्र व पापमुक्त होकर परमब्रह्म की प्राप्ति कर लेता है।

श्रणु षण्मुख तत्वेन वक्त्रे वक्त्रे तथा फलम्  एकवक्त्र: शिव: साक्षाद्ब्रह्माहत्यां व्यपोहति ॥

मंत्र – ॐ ऐं हं औं ऐं ॐ ॥

इस मंत्र के देवता शिव, ऋषि-प्रसाद, छंद-पंक्ति, बीज-हं, शक्ति-औं हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[2.] दो मुखी रुद्राक्ष: यह रुद्राक्ष सभी शारीरिक व्याधियों से बचाता है, गौ वध जैसे निर्मम पाप से छुड़ाता है, यह चतुवर्ग सिद्धि प्रदाता है। “द्विवक्त्रो देवदेवेशों गोवधम् नाशयेद्ध्रुवम् ॥” इस रुद्राक्ष में अंर्तगर्भित विद्ध्युत तरंगे होती है। इसे व्यापारी व सरकारी नौकरी धारी को अवश्य धारण करना चाहिए। यह विशेष रूप से वृश्चिक और कन्या लग्न वालों के लिए उपयोगी रहता है। यह शरीर की गर्मी को निकलता है, इससे रक्तचाप की बीमारी भी सही हो जाती है।
मंत्र- ॐ क्ष्री ह्री क्षौं व्री ॐ ॥
इस मंत्र के देवता-देवदेवेश, ऋषि-अत्रि, छंद-गायत्री, बीज-क्षीं, शक्ति-क्ष्रौं हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[3.] तीनमुखी रुद्राक्ष: यह रुद्राक्ष मेष, धनु व सिंह जातकों के लिए सर्वाधिक उपयोगी है, यह उच्च शिक्षा देता है, स्त्री हत्या के पाप से मुक्त करता है, निम्न रक्तचाप से मुक्ति दिलाता है, मंदबुद्धि बालकों के लिए अधिक उपयोगी है, “त्रिवक्त्रोग्निश्च विज्ञेय: स्त्रीहत्या: च व्यपोहति ॥”
शास्त्रों के अनुसार यह सत्व, रज और तम तीनों त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप माना गया है। यह इच्छा, ज्ञान और क्रिया का शक्तिमय रूप है अतः यह ब्रह्मशक्ति व खुशहाली दिलाने वाला है।
इसे पत्थर पर घिस कर नाभि पर लगाने से धातु रोग सही होते हैं, इसकी माला जपने से व्यक्ति को यश प्राप्त होता है तथा सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है।
मंत्र- ॐ रं इं ह्रीम् हूँ ॐ ।।
इस मंत्र के देवता-अग्नि, ऋषि-वशिष्ठ, छंद-गायत्री, बीज-ह्रीम्, शक्ति-हूँ हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[4.] चारमुखी रुद्राक्ष: चतुर्मुखी रुद्राक्ष स्वयं ब्रह्मा का रूप है, यह अभीष्ट सिद्धियों को देता है, इससे विध्या प्राप्ति में, बुद्धि को कुशाग्र करने में तथा सद्गुरु को प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इसे धारण करने से मनुष्य के मानसिक रोग दूर होते हैं, मन में सात्विक विचार उत्पन्न होते हैं एवं धर्म में रुचि बढ़ती है। यह रुद्राक्ष मेष व सिंह लग्न वालों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है, “चतुर्वक्त्र: स्वयं ब्रह्मा नरहत्यां व्यपोहति”
यह डॉक्टर, अध्यापक, प्रोफेसर, इंजीनिएर के लिए परम आवश्यक है। शीघ्र सफलता पाने के लिए इसे धारण करना चाहिए, यह सफलता की और ले जाता है तथा व्यर्थ की चिंता भी नष्ट हो जाती है। इससे उदर, गर्भाशय, रक्तचाप व ह्रदय से संबन्धित अनेक रोग समाप्त होते हैं।
मंत्र- वा क्रां तां ह्राँ ईं ॥
इस मंत्र के देवता-ब्रह्मा, ऋषि-भार्गव, छंद-अनुष्टुप, बीज-ह्वां, शक्ति-क्रां हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[5.] पञ्चमुखी रुद्राक्ष: पाँच मुखी रुद्राक्ष कालाग्नि नामक रुद्र का स्वरूप है तथा पञ्चब्रह्म स्वरूप भी है। “पंचवक्त्र: स्वयं रुद्र: कालाग्निर्नाम नामत:” इसे धारण करने से दुख व दारिद्र्य का नाश होकर पुण्य का उदय होता है। स्वास्थ्य लाभ भी होता है। शास्त्रों के अनुसार यह सर्वकल्याणकारी, मंगलप्रदाता एवं आयुवर्धक है। महामृत्युंजय अनुष्ठानों में इसका ही प्रयोग होता है, मेष, धनु, मीन लग्नों के लिए यह अभीष्ट सिद्धि प्रदाता है।
मंत्र- ॐ ह्राँ आं क्ष्म्यौं स्वाहा ॥
इस मंत्र के देवता-सदाशिव कालाग्निरुद्र, ऋषि-ब्रह्मा, छंद-गायत्री, बीज-ॐ, शक्ति-ग्रौं हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[6.] छ: मुखी रुद्राक्ष: षट्मुखी रुद्राक्ष स्वयं कार्तिकेय है, जो मनुष्य इसे अपने दक्षिण भुजा में धारण करता है वह भ्रूण हत्या जैसे पापों से भी मुक्त हो जाता है। यह भगवान षडानन का स्वरूप है।
                            “षड्वक्त: कार्तिकेयस्तु धारयेद्दक्षिणे भुजे भ्रूणहत्यादीभि: पापेर्मुच्यते नात्र संशय ॥”
इसे धारण करने से मनुष्य की सोई हुई शक्ति जागृत होती है, यह आत्मशक्ति, ज्ञानशक्ति व संकप्ल शक्ति का दाता है। यह विध्या प्राप्ति के लिए भी श्रेष्ठ है, मिथुन, मकर व तुला लग्न के लिए अधिक लाभकारी है, इससे ‘गुप्त व प्रकट शत्रु’ नष्ट होते हैं अतः इसे ‘शत्रुंजय रुद्राक्ष’ भी कहते हैं। इसकी माला जपने से विपत्ति नष्ट होती है व पीड़ाएँ कम होती हैं।
मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सौं ऐं ।।
इस मंत्र के देवता-कार्तिकेय, ऋषि-दक्षिणामूर्ति, छंद-पंक्ति, बीज-ऐं, शक्ति-सों हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[7.] सात मुखी रुद्राक्ष: सप्तमुखी रुद्राक्ष ‘अनंत’ नाम से विख्यात है। इसके अधिदेवता सात मातृकाएँ, सप्त-अश्व और सप्त ऋषि हैं। मनुष्यों के सेकड़ों पाप, सोने की चोरी व गौ वध के पाप इस रुद्राक्ष को धारण करने से समाप्त हो जाते हैं।
                        “ सप्तवक्त्रो महासेन अनन्तो नाम नामत: स्वर्णस्तेयं गोवधम च कृत्वा पापशतानि च ॥”
शास्त्रों में यह सात आवरण, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि व अंधकार का स्वरूप माना गया है, जिससे जातक को भूमि व लक्ष्मी प्राप्त होती है। ऋषि गण इसे अवश्य पहनते थे, वृष, कन्या व कुम्भ लग्न के जातकों के लिए यह अधिक लाभकारी रहता है।
इस रुद्राक्ष को पहने से विपरीत लिंग के लोग अधिक आकर्षित होते हैं, यह धनागम व व्यापार की उन्नति मे सहायक है, अविवाहित का विवाह हो जाता है, जातक के सहयोग, सम्मान व प्रेम में वृद्धि होती है, इसे धारण करने से पौरुष बढ़त है।
मंत्र- ॐ ह्रम् क्रीं ह्रीं सौ ॥
इस मंत्र के देवता-अनंत, ऋषि-भगवान, छंद-गायत्री, बीज-क्रीं, शक्ति-ह्रीं कार्य-ऐश्वर्य सिद्धिदायक हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष का आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[8.] आठ मुखी रुद्राक्ष: ‘अष्टवक्त्रो महासेन साक्षाद्देवो विनायक:’ अष्टमुखी रुद्राक्ष गणेश जी का स्वरूप है तथा इसे बटुक भैरव का भी स्वरूप भी माना जाता है, यह अष्ट सिद्धि प्रदाता है। इसे धारण करने से विघ्न बढ़ाएँ दूर होती है, आठों दिशाओं में विजय प्राप्त होती है व कोर्ट कचहरी के मामलों में सफलता मिलती है। यह मीन लग्न के जातकों के लिए अत्यंत लाभकारी है। इससे परमपद की प्राप्ति होती है, दुर्घटनाओं एवं प्रबल शत्रुओं से रक्षा होती है।
मंत्र- ॐ ह्रीं ग्रीं लं आं श्रीं ॥
इस मंत्र के देवता-विनायक, ऋषि-भार्गव, छंद-अनुष्टुप, बीज-ग्रीं, शक्ति-आं कार्य-चातुर्दिक सिद्धिदायक हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से आठ मुखी का रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[9.] नौमुखी रुद्राक्ष: नौ मुखी का भैरव नाम कपिलवर्ण है जो मनुष्य अपनी वाम भुजा में इसको धारण करते हैं वे भैरव तुल्य हो जाते हैं, वस्तुत: भैरवनामक नौ मुखी रुद्राक्ष नवकार की निधियों का प्रदाता है।
                 “नवमं भैरवंनाम कपिलवर्ण मुक्तिदं स्मृतम् धारणादवामहस्ते तू मम तुल्यो भ्वेन्नर: ॥”
इसे धारण करने से नौ तीर्थों का फल प्राप्त होता है – द्वारका, वैध्यनाथ, पारसनाथ, सोमनाथ, पशुपति, मुक्तिनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, जगन्नाथ। यह मेष, वृश्चिक व धनु लग्न वालों के लिए अधिक लाभकारी है। इसे धारण करने से वीरता, साहस, कर्मठता, अभीष्ट व अभिलषित वस्तुओं का प्रदाता है।
यह रुद्राक्ष जातक को तांत्रिक शक्तियाँ भी देता है।
मंत्र- ॐ ह्रीं वं यं लं रं ॥
इस मंत्र के देवता-भैरव, ऋषि-नारद, छंद-गायत्री, बीज-वं, शक्ति-ह्रीं कार्य-अभीष्ट सिद्धिदायक हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से नौमुखी का रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[10.] दशमुखी रुद्राक्ष: “दश वक्त्रो महासेन साक्षाद्देवो जनार्दन: ॥” यह श्री विष्णु का स्वरूप है, इस रुद्राक्ष को धारण करने से सर्व ग्रह शांत रहते हैं ब्रह्म, राक्षस, पिशाच व सर्प इत्यादि का भय नहीं होता है। इसमें विष्णु के दश अवतारों की शक्ति सन्निहित होती है, यह सभी बाधाओं का नाश कर सुख, शांति व समृद्धि का प्रदाता है, यह रुद्राक्ष तुला व मकर लग्न वालों के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है, इसे धारण करने से लौकिक एवं परलौकिक कामनाएँ पूर्ण होती है तथा सामाजिक कीर्ति एवं सम्मान प्राप्त होता है। इसे पहन कार जातक समाज-सेवक, वकील, नेता, कलाकार, कवि, लेखक, कृषक लाभान्वित होते हैं।
मंत्र- ॐ ह्रीं क्लीं व्रीं ॐ ॥
इस मंत्र के देवता-जनार्दन, ऋषि-नारद, छंद-अनुष्टुप, बीज-श्रीं, शक्ति-ह्रीं कार्य-अभीष्ट सिद्धिदायक हैं, अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[11.] एकादशमुखी रुद्राक्ष: यह एकादश रुद्रों का स्वरूप है, इसे शिखा या भुजा पर धारण करने से हज़ार अश्वमेघ यज्ञ करने का फल मिलता है, सौ वाजपेय-यज्ञ व चन्द्र ग्रहण में दान करने का फल मिलता है।
“एकादशास्यो रुद्रा हि रुद्राश्चैकादश स्मृता: शिखायां धारयेन्नित्यं तस्य पुण्यफलं श्रीणु ॥ ”
इसे धारण करने से महारुद्र, वीरभद्र प्रसन्न होकर सर्व इच्छा पूर्ति करते हैं, बांझ स्त्री संतानवती हो जाती है, मस्तिष्क संबंधी विकारों व मस्तिष्कीय कार्यो को करने लोगों को शक्ति प्रदान करते हैं।
मंत्र- ॐ रूं क्षूं मूं यूं ॐ ॥
अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[12.] बारहमुखी रुद्राक्ष: सारे 12 आदित्य का वास इसमें होता है, यह सभी बाधायों का कीलन करने वाला ‘आदित्य रुद्राक्ष’ नाम से जाना जाता है। “नश्यन्ति तानि पापनि वक्त्रद्वादशधारणात् , आदित्याश्चैव ते सर्वो द्वादशैव व्यवस्थिता:”
इसे धारण करने भाग्य का उदय, भय व दारिद्रता का नाश, अर्थ की प्राप्ति होती है। इसकी 32 दानों की माला गले में धारण करने से मानसिक व शारीरिक पीड़ा से छुटकारा मिलता है।
मंत्र- ॐ ह्रीं क्षौं घृणि: श्रीं ॥
अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[13.] तेरहमुखी रुद्राक्ष: “त्रयोदशास्यो रुद्राक्षो साक्षाद्देव पुरंदर” यह साक्षात इंद्र का स्वरूप है तथा सम्पूर्ण कामनायों को देने वाला है। नि:संतान वाले को संतान प्रदान करता है, यह अतुल संपत्ति दिलाता है, सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करता है, यह व्यक्ति को सभी धातुओं व रसायन की सिद्धि देता है, यह मेडिकल व केमेस्ट्री से जुड़े लोगों के लिए धन व वैभव का लाभ देता है। इससे करोड़ो महापापक नष्ट हो जाते हैं।
मंत्र- ॐ ईं यां आप: ॐ ॥
अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[14.] चौदहमुखी रुद्राक्ष: यह रुद्राक्ष हनुमान जी का स्वरूप है, शनि से उत्पन्न सभी दोष इसे धारण करने से शांत होते है, यह शिव का प्रिय रुद्राक्ष है, यह चौदह विद्या, 14 लोक, 14 मनु का भी साक्षात रूप है।
                     “चतुर्दशास्यो रुद्राक्षो साक्षाद्देवो हनूमत:, धारयेन्मूध्नि यो स याति परमं पदम् ॥”
इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है, जो मनुष्य इसे मंत्र सहित धारण करते हैं वह रुद्रलोक में जाकर बसते हैं। इससे परमपद की प्राप्ति होती है, शत्रुओं का नाश होता है, वैकुंठ की प्राप्ति भी इसी से होती है। यह जेल भय से मुक्ति दिलाता है।
मंत्र- ॐ औं हस्फ्रें खव्फ़्रें हसख्फ़्रें ॥
अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

[15.] गौरीशंकर रुद्राक्ष: यह पार्वती-शिव का रूप है, इससे सुख-शांति, विवाह, संतान, सात्विक शक्ति, धन-धान्य, वैभव, प्रतिष्ठा और दैवीय कृपा मिलती है, यह स्थाई लक्ष्मी प्रदाता है।
“श्रीणु षण्मुख तत्त्वेन वक्त्रे तथा फलम्, एकवक्त्र शिव: साक्षाद्ब्रह्माहत्यां व्यपोहति ॥”
इस रुद्राक्ष में दो दाने आपस में जुड़ें होते हैं, यह सभी लग्नों के लिए अतिशुभ होता है।
मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं क्ष्म्यौं स्वाहा: ॥
अतः उपरोक्त मंत्र से रुद्राक्ष को आह्वान कर धारण करना चाहिए।

Blog no. 43, Date: 11/10/2015
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