वेलेंटाइन-डे की ज्योतिषीय प्रासंगिकता

वेलेंटाइन-डे की ज्योतिषीय प्रासंगिकता

valentineपौराणिक काल में ‘मदन महोत्सव’ मनाया जाता था, उसी का छोटा स्वरूप आज का वेलेंटाइन-डे है। तीसरी सदी में संत वेलेंटाइन ने प्रेमी युगलों को विवाह के लिए प्रेरित करने तथा एकनिष्ठ रहने की प्रेरणा दी थी, उसी दिन से वेलेंटाइन-डे मनाने की परम्परा आरंभ हुयी, लेकिन यह महोत्सव तो भारत वर्ष में सतयुग से चला आ रहा है। हमारी संहिताएँ इस मदन महोत्सव के प्रारूप को हजारों-हजार वर्षों से सँजोये हुये है। अतः  इसी किवदंती को तोड़ना ले लिए तथा सार्थक मदन महोत्सव के लिए ही आज मैंने यह Blog आप पाठकों के लिए लिखा है।

आज का युवा वर्ग वेलेंटाइन-डे का अर्थ स्वेच्छाचारिता से लगाता है जबकि शास्त्रों में कहा गया है कि

“आहार निंद्रा भय मैथुनं, छ सामान्य मेतत्पशु भिर्नराणाम् ।

धर्मो हितेषामाधिको विशेष: धर्मेण हीनाः पशुभि समानाः ॥ ”

प्रेम करना या प्रेम कि स्वीकारोक्ति करना मनुष्यों मे एक नैसर्गिक प्रवृत्ति है। पशु भी ऐसा करते हैं  परंतु मर्यादा में किया जाने वाला मर्यादित प्रेम मनुष्य ही को पशु से अलग करता है और वही धर्म कहलाता है। धर्माचरण के साथ सुख-सुविधा के साधन जुटाकर दो दिलों का एकीकर भाव ही ‘काम’ कहलाता है, यही वेलेंटाइन-डे कि आज कि प्रासंगिकता है, क्योंकि काम ही मोक्ष सीढ़ी है, यदि वह मर्यादित रहकर धर्म से जुड़ा हुया हो तो?

   श्रेष्ठ पति या श्रेष्ठ पत्नी कि कामना करना ही प्रेम का सच्चा स्वरूप है, अतः यही काम का और मोक्ष का मार्ग है। आजकल प्रेम के मार्ग को ‘डेटिंग’ शब्द से जोड़ा जाता है, जिसे “प्रिमेरिज मीटिंग ऑफ द गर्ल एंड ब्वॉयज” कहा जाता है। बसंत ऋतु, मदन महोत्सव या वेलेंटाइन-डे तो प्रतिवर्ष आते हैं और इस समय हृदय में विराजित प्रेम के उद्गार अपने प्रेमी को भी बताए भी जाते हैं और कई बार अगाध प्रेम होते हुये भी हम प्रेम का इजहार नहीं कर पाते क्योंकि ग्रह जनित बाधा प्रेमी के संकोच का कारण बनती है। जातक के कुंडली का नवमांश चक्र उसके अन्तर्मन को और कोमल मनोभावों को व्यक्त करता है, इस चक्र का लग्न, षष्ठ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव प्रेम व प्रेम अभिव्यक्ति के विशेष कारक होते हैं।

  वेलेंटाइन-डे (मदन महोत्सव) ग्रहों के राजा सूर्य के अधीन है, स्वयं सूर्य इसका प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए इसे आत्ममिलन व सूर्य महोत्सव नाम से भी जाना जाता है। आत्म मिलन महोत्सव में घृणा   का कोई स्थान नहीं है, लेकिन फिर भी मैं यहाँ कहना चाहूँगा कि महोत्सव की गरिमा को नहीं बचाना, इस पौराणिक महोत्सव का पुनः भारतीयकरण नहीं करना हमारी सांस्कृतिक सत्ता को आघात पंहुचना होगा, क्योंकि कोई भी तीसरी सदी का कार्यक्रम, हमारे पौराणिक कार्यक्रम की जगह नहीं ले सकता!!

यहाँ मैं कुछ समीकरण बता रहा हूँ जिससे आप अपने सफल प्रेम की संभावनाओं को जान सकते हैं।

1) यदि नवमांश चक्र में सूर्य, शनि, केतू एवं राहू वर्गोत्तमी हो या मित्र क्षेत्री हो तो जातक प्रेम के इजहार में संकोच करता है, लेकिन यदि चन्द्र व शुक्र ग्रह को मंगल का सहयोग मिल जाये तो प्रेमी प्रेम का सफल इजहार कर पाता है।

2) यदि कुंडली में दो या दो से अधिक वक्री ग्रह हो या कोई वक्री ग्रह पंचम घर में विराजित हो तो जातक को जीवन में कई बार ना सुनना पड़ता है जिससे वह वियोगजन्य तडफन को महसूस करता है, जो की जीवन भर रहती है।

3) यदि किसी स्त्री की कुंडली में कोई ग्रह उच्चाभिलाषी या नीच्चाभिलाषी हो या फिर शुभ ग्रह जन्मांग में बली हो लेकिन वह ग्रह नवमांश में दीप्त हो गए हों तो ऐसी स्त्री अपने प्रेम में सफलता पाती है।

4) किसी स्त्री की कुंडली में चंद्रमा मेष, वृष, मिथुन, तुला व वृश्चिक में से किसी राशि में विराजित हो ऐसी प्रेमिका अपने प्रेम का सफल इजहार करती है ।

5) यदि किसी पुरुष जातक की कुंडली में चन्द्रमा कर्क, सिंह, कन्या, मकर, कुम्भ या मीन राशि में बैठे हों तो ऐसा पुरुष अति संवेदनशील होकर प्रेम का इजहार करता है साथ ही वह सफल भी होता है।

6) यदि किसी जातक के वाणी स्थान(द्वितीय भाव) का आधिपति नीच का हो या इस स्थान पर केतू, शनि, राहू या नीच ग्रह विराजित हों तो वह जातक अपनी वाणी तथा अनावश्यक शंकाओं से अपने प्रेम संबंध बिगाड़ लेता है।

अतः उपरोक्त सभी समीकरणों के आधार पर जातक के संबंधो का बिगड़ना या परिणय बंधन तक पंहुचाना जाना सकता है, क्योंकि जातक प्रेम संबंध या गृहस्थ दोनों को ही कुंडली में उपस्थित ग्रहों की स्थिति से भोगता है। वेलेंटाइन-डे को सही से मनाना हो तो जातक को पंचमेश, चन्द्रमा, शुक्र, गुरु व शनि ग्रह की यत्न पूर्वक पूजा कर लेनी चाहिए साथ प्रेमी-प्रेमिका में से कोई भी एक कुंडली अनुसार अनिष्ट ग्रह दोष निवारण कर लें ताकि वेलेंटाइन-डे सार्थक हो सके ।

Date: 13/2/2016, Blog No.49

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