शकुन-अपशकुन : एक शास्त्रार्थ विवेचना y Dr. Jitendra Vyas
1. शकुन शास्त्र का वैदिक स्वरूप :- संस्कृत में ‘शकुन’, पक्षीविशेष को कहते हैं।1 शब्दकल्पद्रुम के अनुसार- “शक्नोती शुभाशुभं अनेनेती शकुनम्” किसी कार्य के समय दिखलाई देने वाले लक्षण जो उस कार्य के संबंध में शुभ-अशुभ की सूचना देते हैं, शकुन कहलाते हैं।2 मेरी मान्यता है कि शकुन का अध्ययन हमारे पूर्वजों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी किये गये अनुसंधान एवं परीक्षणों का परिणाम है, जिसे सिर्फ अंधविश्वास नहीं कहा जा सकता। संसार की सभी सभ्यतायों में अलग-अलग ढंग से शकुन जानने की प्रवृत्तियां व्याप्त हैं, परन्तु यह विचित्र तथ्य है कि आदि काल से लेकर देहात व ग्रामीण समय तक परिशोधित शकुन संबंधी मान्यतायों में परिवर्तन बहुत कम पाया जाता है।3 यहां मैंने आदि, देहात व ग्रामीण परिवेश के व्यावहारिक शकुनों की चर्चा की है। कई और विद्वानों का भी यही कहना है – ऐसी आकस्मिक घटना को, जिसे भविष्य का ध्योतक समझा जाता है, शकुन कहलाता है; भविष्य के संबंध में अप्रत्याशित संदेश का नाम शकुन है।4
भारतीय समाज में शकुनों में विश्वास की प्रवृत्ति अति प्राचीन काल से परिलिक्षित होती है। ऐसा नहीं है कि शकुनों में गहरी आस्था केवल भारतीय समाज में ही प्रचलित हो अपितु संसार की प्रत्येक मानव सभ्यता एवं संस्कृति के कई विकसित देश जैसे इंग्लैण्ड, अमेरिका एवं रूस में भी अलग-अलग ढंग और मान्यतायों के अनुसार शकुनों का प्रचलन है। यह शोध पत्र संस्कृत, ज्योतिष एवं क्षेत्रीय (मारवाड़ी/मेवाड़ी) साहित्य ग्रन्थों में शकुन एवं भावी सूचनायों से संबद्ध है।
प्रायः संसार के सभी समाजों में एक आकस्मिक एवं अपूर्व घटना, शुभाशुभ शकुनों के रूप में स्वीकार किया है जैसे धूमकेतु का उदय! शेक्सपियर ने कहा था कि “There are no Comets seen when baggers die”5 अर्थात् जब भी धूमकेतु दिखता है तब कोई बड़ी ही दुर्घटना घटती है या फिर किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष की हत्या होती है। शास्त्रकारों का कहना है कि मुनुष्यों के जो पूर्वजन्मार्जित शुभाशुभ फल हैं उनको गमनकालिक शकुन प्रकाशित करते हैं।6 यथा-
अन्यजन्मांतरकृतं कर्म पुंसां शुभाशुभम्।
यत्तस्य शकुंन: पाकं निवेदयती गच्छताम्॥
अतः मानव का शकुनों में विश्वास सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक हैं। यह धारणा प्रबल तथा पुष्ट है की अज्ञात शक्ति या देवता, पशु-पक्षियों की गतिविधियों अथवा विशिष्ट लक्षणों के माध्यम से शुभाशुभ घटित होने की पूर्व सूचना प्रदान करते हैं।7
वैदिक संहिताएँ, सूत्र ग्रंथ, बुद्धचरित्र, आरण्यक, सभी ज्योतिष संहिताएँ और राजस्थानी लोकोक्तियां एवं मारवाड़ी जनश्रुतियाँ जैसे घाघ भंडरी, माघ-फोगसी संवाद व डंक-भंडरी की कथाओं मे शकुनशास्त्र का कालजयी हस्ताक्षर है, वैदिक शकुनशास्त्र को राष्ट्रिय व क्षेत्रीय कवियों ने अपनी नवीन शब्दशैली के माध्यम से पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। मेरे शोध अनुसार ये सभी प्रचलित वर्तमान मान्यताएँ आचार्य वराहमिहिर की हैं जिनको ज्यों का त्यों ढाल लिया गया है।
वराहमिहिर के अनुसार ‘शकुन’ मनुष्य के शुभाशुभ दशा को बतलाता है, यह शास्त्र निर्विघ्नपूर्वक कार्य का साधन है और मार्ग में सहायक है। दुष्टों व शत्रुओं की गतिविधियों को जानने का साधन एवं मनुष्य के भावी स्वास्थ्य, आयु किंवा मृत्यु इत्यादि को शुभ-अशुभ चेष्टायों द्वारा सूचित करता है।8
वराहमिहिर के अनुसार शकुन दस प्रकार के होते हैं वे इस प्रकार हैं-9
1) क्षण दीप्त – काल, मुहूर्त व क्षण विशेष में दृष्ट शकुन क्षण दीप्त कहलाते हैं।
2) तिथि दीप्त- तिथियों ( चतुर्थी, अष्टमी, षष्ठी, नवमी और चतुर्दशी) में दृष्ट शकुन तिथि दीप्त कहलाते हैं।
3) नक्षत्र दीप्त- नक्षत्रों (मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा, पूर्वात्रय, भरनी और मघा) में दृष्ट शकुन नक्षत्र दीप्त कहलाते हैं।
4) वायु दीप्त- वात(भयंकर, खर, कठोर व प्रतिलोम वायु) में दृष्ट शकुन वायु दीप्त कहलाते हैं।
5) सूर्य दीप्त- सूर्याभिमुख स्थित शकुन सूर्य दीप्त कहलाते हैं। उपरोक्त पाँच वर्गीकरण ‘देवदीप्त’ कहलाते हैं तथा उत्तरोतर बली होते हैं। इसके अतिरिक्त पाँच ‘क्रियादीप्त’ शकुन कहलाते हैं जो निम्न प्रकार हैं।
6) गति दीप्त- शकुन की गति से उत्पन्न शुभाशुभ घटना गति दीप्त कहलाती है।
7) स्थान दीप्त- किसी स्थान विशेष पर दृष्ट शकुन स्थान दीप्त कहलाता है।
8) भाव दीप्त- पशु-पक्षी या मनुष्य के हाव-भाव जनित शकुन इस श्रेणी में आते हैं।
9) स्वर दीप्त- पशु-पक्षी या मनुष्य जन्य विशेष आवाज, शब्द व ध्वनि इस श्रेणी में आते हैं।
10) चेष्टा दीप्त- पशु-पक्षी या मनुष्य की असाधारण चेष्टा इस श्रेणी में आती है। ये सभी शकुन उत्तरोतर बली कहे गए हैं।
वराहमिहिर ने शकुनों के वर्गीकरण के साथ शकुन द्वारा प्राप्त फल की अवधि भी बतायी है, उनके परिपक्व (फल घटित) होने की समय सीमा तय भी की है। समीप तथा नीच स्थान में स्थित शकुन का फल शीघ्र तथा उच्च और दूर स्थित शकुन का फल देर में होता है। बढ़ने वाले स्थान पर दृष्ट शुभाशुभ शकुन का फल बढ़ने वाला और घटने वाले स्थान पर दृष्ट शकुन का फल घटने वाला होता है।10 पण्डित विजयानंद त्रिपाठी ने बारात के बारह कार्यों को लेकर बारह प्रकार के शकुनों का वर्णन किया है।11 परन्तु मेरे शोध के अनुसार सभी प्रकार के शकुनों को व्यावहारिक तौर पर चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) ग्रह-नक्षत्रों से प्राप्त शकुन,
(2) पशु-पक्षियों की चेष्टा एवं ध्वनि से प्राप्त शकुन,
(3) शारीरिक लक्षणों से प्राप्त शकुन व
(4) स्वप्नों से प्राप्त शकुन।
(1) ग्रह-नक्षत्रों से प्राप्त शकुन – आकाशमंडल की स्थिति से ग्रह-तारों-नक्षत्रों उनके परिधि मण्डल के मध्य की स्थिति, उल्काओं व नक्षत्रों का पतन, ग्रहों के काले धब्बों का दर्शन, उनके वलय, उनके रंगों में परिवर्तन, सूर्य-चन्द्र का ग्रहण, संवत् फल, वारफल, संक्रांत फल, अधिक-क्षय मास तथा होली-दीपावली इत्यादि विशेष परिस्थितियों की कृतियों आदि के फलों का समावेश किया गया है।
(i) वार से शकुन फल ज्ञान12 – जिस महीने मे पाँच रविवार आते हैं तो रोग फैलने की आशंका रहती है। मंगलवार पाँच हो तो अशुभ, शनिवार पाँच हो तो उस महीने में घी महंगा मिलेगा अर्थात् घी के भाव चढ़ेंगें, लेकिन जिस माह में सोम, बुध व गुरुवार पाँच आते हों तो वह महीना अतिशुभ और मंगलकारी होता है, चन्द्रमास के प्रत्येक पक्ष की प्रथम तिथि किस वार को पड़ती है उसके अनुसार शकुन होता है। मौसम की पहली वर्षा जिस वार को होती है उसका फल इस प्रकार होता है- रविवार को वर्षा होने पर अकाल, सोमवार को सुकाल, मंगलवार को अच्छी वर्षा होने के संकेत और शनिवार को आरंभ होने वाली वर्षा अपशकुन व अकाल लाती है जिसमें लोगों की मृत्यु होने की संभावना रहती है। मकर संक्रांति पर्व पौष माह में किस वार को आता उसका शकुन फल इस सारणी में बताया गया है, यहाँ सूर्य सिद्धांत अनुसार वैदिक काल से ही मकर संक्रांति पौष माह में ही आती रही है वैश्विक(ग्लोबल) समस्याओं के कारण आज यह माघ माह में भी आ जाती है –
वार | फल |
1. अदीतवार(ध्यांखी) | 1.अनाज का भाव दुगुना होगा जिससे व्यापारियों को लाभ होगा व जनता दुखी होगी
2. तेज हवा चलेगी और लड़ाई व दंगे होंगे। |
2. सोमवार (महोदरी) | 1. अनाज सस्ता जिससे प्रजा सुखी ।
2. रोग फैलने की संभावना। |
3. मंगलवार (घोरा) | 1.घी, तेल, गेहूं, गुड़, मसूर, तांबा, लालकपड़ा आदि महंगे होंगी और व्यापारियों को चौगुना लाभ होगा।
2.दंगा,चोरी और धाड़ा होने की आशंका व भय। |
4. बुधवार (मंदाकनि) | 1.अनाज व कपड़ा सस्ता लेकिन गुड़, शक्कर व मूंग महंगे होंगे। |
5. बृहस्पतिवार (मंदाकनि) | 1.अनाज के मूल्य आधे होने की संभावना, प्रजा सुखी होगी।
2. हल्दी, सोना व पीले रंग की वस्तुएँ सस्ती। |
6. शुक्रवार (मिश्रका) | 1. चारों ओर मांगलिक व शुभ कार्य
2. शहर में फॉर व्हीलर आदि में वृद्धि होगी। |
7. शनिवार (राख्यसी) | 1. उपद्रव, दंगा, नक्सलवाद, चोरी, लूट मारकाट
की आशंका। 2.अनाज सस्ता होगा, तेल, कपास व नमक भी सस्ता होगा परन्तु प्रजा दुखी होगी। |
(ii) संवत्, तिथि, मास व पर्व के शकुन का फल13 – किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष सोमवार, बुध या गुरुवार को शपथ ले तो उसे प्रजा एवं राष्ट्राध्यक्ष के लिए शुभ माना गया है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शकुन अनुसार 26 मई 2014 को चुना उस दिन भी सोमवार था। यदि रवि,मंगल या शनिवार को गद्धी संभाले तो प्रजा ओर उसके स्वयं के लिए अहितकर होता है और शुक्रवार को देश की बागडोर संभाले तो देश मे लड़ाई व उनकी सरकार गिरने (भंग) की आशंका रहती है।
संवत् से वर्षा ऋतु की फसल खरीफ का शकुन देखने के लिए संवत् की संख्या को तिगुना करे उसमे पाँच जोड़ के सात का भाग दें यदि शेष 2 बचें तो पैदावार अच्छी, 4 व 6 बचें तो बारिश अच्छी, शेष 5 बचें तो सम्पूर्ण रूप से मंगल, 1 शेष बचें रहने पर साधारण फसल होगी या अकाल पड़ेगा। इसी प्रकार रबी की फसल (उनाली शाख) का शकुन जानने के लिए संवत् को दुगुना कर उसमें 5 जोड़े अनन्तर दो घटाएँ और सात का भाग दें, 1 बचे तो श्रेष्ठ, 3 बचे तो अनाज महंगा, 4 व 5 बचे तो मूल्य यथावत्, 6 शेष रहे तो अच्छी फसल और 0 बचता है तो फसल खराब होगी।एक पक्ष में दो तिथियां घटती है तो अशुभ, यदि किसी वर्ष में अधिक मास (एक मास दो बार हो उसे अधिक मास कहते हैं) हो तो कोई एक मास हीनबली होता है, वह खराब जाता है और उसमें देश भर में उपद्रव होते हैं। उसी प्रकार दीपावली के समय ग्रामीण क्षेत्रों में शकुन देखने का विधान हैं उस दिन यदि हवा नहीं चले तो अच्छे शकुन का ध्योतक है और दूसरे दिन चाँद का दिखाई देना अशुभ है तथा दूसरे पर्व होली मंगलाते (जलाते) समय भी ग्रामीण क्षेत्रों में शकुन देखने का विधान हैं, उस दिन किस दिशा में हवा चलती है उससे भी फल कहा गया है-
1) उस दिन उत्तर दिशा की ओर हवा चले | तो अच्छे शकुन है गांव में चारों और फसलें खिलखिलाती हैं। |
2) पूर्व दिशा की ओर हवा चले | तो अच्छी वर्षा होती है और खूब अनाज होता है। |
3) पश्चिम दिशा की ओर हवा चले | तो साधारण फसलें होती हैं। |
4) दक्षिण दिशा की ओर हवा चले | तो अकाल पड़ता है। |
5) उस दिन चारों दिशाओं में हवा चले | तो देश में दंगा, अमंगल, प्रजा व सरकार के लिए अशुभ होता है। |
6) यदि हवा नहीं चले | तो स्थिति यथावत् रहती है। |
(iii) ग्रहों से संबन्धित शकुन का फल14– सूर्यादि ग्रहों के चारों ओर कभी-कभी कुंडला (वृत्त) बनता है उसका फल भी बताया गया है। सफेद वृत्त जहाँ चैन का प्रतीक माना गया है और नीला कुंडला वर्षा के आगमन का सूचक बताया है वहीं काला वृत्त राजा(मंत्री) के विनाश का सूचक और पीला कुंडला रोग आने का संकेत देता है। वृत्त (कुंडला) सूर्य के निकट या दूरी पर होने की स्थिति में उसका फल भी देखा गया है। इसके अलावा सूर्य और चंद्रमा के चारों ओर कुंडला जिस तिथि को दिखाई देता है, तिथि अनुसार उस पर विचार किया गया है। इस प्रकार कुंडले का रंग, कुंडले की दूरी और उस दिन की तिथि सारी बातें फल ज्ञात करने के लिए विचारणीय है। ये सब बदलाव प्रकृति से जुड़े हुए हैं इनका प्रभाव किसी न किसी रूप से केवल मानव ही नहीं हर प्राणी पर पड़ता है। जल, थल और समस्त भूमंडल इससे प्रभावित होते हैं।
सूर्य का फल एक पक्ष में, चन्द्र का फल एक मास में, मंगल का वक्रोक्तानुसार, बुध का उदित काल तक, बृहस्पति का एक वर्ष में, शुक्र का 6 मास में, शनि का एक वर्ष में, चन्द्र ग्रहण का 6 मास में, सूर्य ग्रहण का एक वर्ष में, त्वष्टा, तामस और किलक का तत्काल, धूमकेतु का तीन मास से 6 वर्ष तक फल मिलता है।15
(2) पशु-पक्षियों की चेष्टा एवं ध्वनि से प्राप्त शकुन:-हमारे समाज में किसी कार्य के लिए निकलते समय और यात्रा करते समय पशु-पक्षी दिखाई दें तो उनके अनुसार शकुन देखने की परम्परा रही है। ये प्राणी किस दिशा में दृष्टिगोचर होते हैं अथवा बोलते हैं उनकी स्थिति व बोली के अनुसार शकुन का अनुमान लगाया जाता है।16 अतः मैने हाथी, घोड़ा, कुत्ता, गाय, बैल, बकरी, हिरण, बंदर, गधा, सियार, बिल्ली, मुर्गा, उल्लू, खंजन, कोवा व सर्प इत्यादि सभी प्रकार के ग्रामीण परिवेष में पाये जाने वाले प्राणियों का शकुन फल बताया है जो की ग्राम वासियों के लिए व्यावहारिक ज्ञान के परिचायक हैं।
(i) सर्प शकुन- यात्रा या गमन के समय यदि सम्मुख सांप आ जाए तो शत्रु से लड़ाई और भाई-बहिन के अनिष्ट की सूचना मिलती है। लेकिन यदि गमन करते समय सांप दायें ओर से बायीं ओर आए तो सभी कार्य सिद्धि करता है।17 ‘चंपूभारत’ में अर्जुन के विनाश के लिए भगदत्त द्वारा प्रयुक्त शक्ति के मार्ग में सर्पदर्शनके असफल होने का उल्लेख मिलता है।18 यथा- “प्रस्थान कर्मसमये भयदापि तस्य, नागस्य दर्शनमजायत यत्समीपे”
नाना माल्यवान् द्वारा रावण को समझाते समय अनेक अपशकुनों का उल्लेख मिलता है। इस प्रकरण में सर्पों का भयंकर शब्द (आवाज) करना अति अशुभ माना गया है।19 महाकवि भंडरी ने भी सर्प व गोह के दिखने को अशुभ माना है, जबकि सर्प का दाहिनी ओर निकलना शुभ फल दायक है।20
(ii) उल्लू, खंजन व मुर्गा (कुक्कुट) शकुन- रात्रि में भयभीत हुए मुर्गों के ‘कुकुड़ूकुकु’ इन शब्दों को छोड़ कर शेष सभी प्रकार के शब्द भय देने वाले होते हैं तथा रात्रि के अंत में स्वस्थ होकर टार स्वर से शब्द करें तो राज्य, ग्राम और प्रधान की वृद्धि होती है।21 स्थूल शरीर वाला, उन्नत और काले गले वाले खंजन पक्षी यदि दिखायी दे तो शुभ होता है। यदि सूर्योदय काल में खंजन पक्षी दिखायी दे तो अत्यंत शुभ और अस्त काल में अशुभ होता है।22 अपनी प्रिय की अभिलाषा करता हुआ उल्लू आनंद से ‘हूँ हूँ गुगुलूक्’ शब्द करे तो शुभ,‘किस्ककि’ शब्द करे तो प्रदीप्त,‘बलबल’ शब्द से कलह व ‘टटट्ट’ शब्द से दोष होगा।23 श्रीकण्ठचरित महाकाव्य में उलूक से प्राप्त अनेक शकुनों का उल्लेख है,‘शिव’ के साथ संग्राम के लिए जाते समय दैत्यों के मार्ग में नभस्थली का उलूकों से व्याप्त होना, दैत्यों के विनाश का सूचक था।24 पृथ्वीराजविजय महाकाव्य में म्लेच्छों के सपादलक्ष प्रवेश के समय उलूकों को अशुभ सूचक के रुप में उल्लिखित किया गया है।25 शकुन शास्त्र में उल्लू का दिन में बोलना, उस ग्राम व शहर के लिए अशुभ माना गया है, यदि किसी व्यक्ति के घर पर दिन में उल्लू बोलता है तो वह घर खाली हो जाता है।26 यथा- “बोले घूघू, दिन के जाय, निश्चय नगर भगवे सोय।
बोले घूघू घर पै जाय, पड़े विपत्त खाली व्है जाय॥”
(iii) अश्व शकुन – घोड़े का क्रौंचपक्षी की तरह शब्द करना, गर्दन को स्थिर और ऊपर मुख करके शब्द करना, उच्च स्वर से बार-बार मधुर ध्वनि करना, ग्रास से मुख अंदर रहने पर भी आनंदपूर्वक स्वर करना, शत्रु के वध का सूचक होता है।27 यदि शब्द करते हुये घोड़े के पास किसी शुभ द्रव्य से पूर्ण पात्र, दही, ब्राह्मण, देवता, सुगंध, द्रव्य, फूल-फल, सोना (रजत, मणि, मोती इत्यादि) अन्य शुभ वस्तु आ जाये तो, जय(कार्य सिद्धि) होती है।28 खाने की सामग्री, जल और लगाम को आनंदपूर्वक ग्रहण करने वाले, स्वामी की इच्छा के अनुकूल चलने वाले, दक्षिण पार्श्व में दृष्टि रखने वाले घोड़े सदैव अभीष्ट फल देते हैं।29 भरत-चरित महाकाव्य में मृगया के लिये प्रस्थान के समय दुष्यंत के रथ में जुते घोड़ों का हिनहिनाना शुभ माना गया।30 जयंतविजय नामक महाकाव्य में संतानहीन राजा विक्रम सिंह तथा रानी प्रीतिमती के लिये श्रेष्ठ घोड़े का हिनहिनाना पुत्र प्राप्ति का सूचक माना गया।31 पारिजातहरण महाकाव्य में पारिजात वृक्ष हरण के लिये श्रीकृष्ण का इंद्र के साथ युद्ध के लिये प्रस्थान करते समय घोड़ों का हिनहिनाना भावी विजय के रूप में उल्लेख किया गया है।32 धनंजयविजय में नायक का रणभूमि में प्रस्थान करते समय घोड़े का हिनहिनाना, दक्षिण पैरों से भूमि पर कुरेदना तथा पूंछ का हिलाना विजयश्री का द्योतक माना गया है।33 बिना कारण घास और पानी से विरक्ति, अकारण गिरना, पसीना आना, काँपना, मुँह से खून आना, रात्रि में किसी से द्वेष करते हुए जागना, दिन में नींद, आलस्य और चिंता भान, सुस्ती, नीचे मुख रखना, भयभीत दृष्टि से ऊपर देखना, ये सभी प्रकार की अश्वचेष्टायें अमंगलकारी हैं।34 बायें पैर से पृथ्वी को खोदने वाले घोड़े, स्वामी के विदेश गमन की सूचना देते हैं। यदि घोड़ा सूर्योदय, सूर्यास्त एवं मध्याह्न तथा अर्धरात्रि को दीप्त दिशा को देखते हुये शब्द करे तो स्वामी को बंधन या पराजय का सामना करना पड़ता है।35 रावण को समझाते समय उसके नाना माल्यवान् ने घोड़ों के नेत्रों से अश्रुओं के पतन को अशुभसूचक माना।36 इसी प्रकार राक्षस प्रहस्त के रणभूमि में प्रस्थान करते समय रणभूमि में घोड़े का स्खलित होना भावी अशुभ का सूचक माना गया है।37 प्रहस्त राक्षस के युद्ध हेतु प्रस्थान करते समय घोड़े द्वारा रुधिर का मुत्रोत्सर्ग करना मृत्यु का कारण माना गया।38 महाराज हर्षवर्द्धन की दिग्विजय के प्रसंग में शत्रुओं के अश्वों द्वारा हरे धान को न खाना उनके भावी विनाश का सूचक माना गया।39
(iv) हस्ति शकुन – ‘हस्तिलक्षणाध्याय’ में वराहमिहिर ने भद्रगज, मंदगज, मृगराज और मिश्रराज इन चार प्रकार के हाथियों की श्रेणियाँ स्थापित करके उनके लक्षणों की चर्चा की है। ताम्रवर्ण होठ वाला, घर में रहने वाले पक्षियों के समान नेत्र वाला, स्निग्ध और उन्नत दाँत के अग्रभाग वाला, कछुए के समान कुम्भों में एक-एक सूक्ष्म रोमवाला, विस्तीर्ण कान, कछुए के समान अठारह मदार्द्र शुद्ध-वायु वाला हाथी शुभ होता है। यदि हाथी अपनी इच्छा से वाल्मीक(दीमक), स्थाण्ड (शाखा रहित वृक्ष) घास या किसी वृक्ष को मंथन या घर्षण करते समय हर्षित दृष्टि से ऊँचा मुख करके शीघ्र गति से अनुकूल चले, हौदा कसने के समय हाथी गर्जना करे, जल बिन्दु उड़ाये, मदयुक्त हो जाये, सूँड को दाईं ओर करके चिंघाड़ करे, तो ये सब चेष्टायें विजय (कार्य सिद्धि) को देने वाली होती हैं।40 जल में प्रवेश करते समय हाथी को यदि ग्राह पकड़ लें और हाथी ग्राह को झटक (पकड़) कर जल से बाहर निकल आये तो शत्रु का नाश एवं राजा के ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।41 जयंतविजय महाकाव्य में हाथी से प्राप्त होने वाले शकुनों का उल्लेख मिलता है। संतानहीन राजा विक्रमसिंह तथा रानी प्रीतिमती के लिये गजराज का गर्जन पुत्र प्राप्ति का सूचक माना गया है।42 चंद्रप्रभचरित महाकाव्य में युवराज सहित राजा के पृथ्वीपाल के साथ युद्ध के लिये प्रस्थान के समय हाथियों के कपोलों से सहसा मदस्त्राव विजय सूचक के रूप में अत्यंत शुभ स्वीकार किया गया।43 इसी तरह विजयसेन सूरि के लाभपुर के लिये प्रस्थान के समय सामने सुसज्जित हाथी का मिलना अत्यंत शुभ माना गया।44 चलता हुआ हाथी अचानक रुक जाय, कान हिलना बंद हो जाय, अत्यंत दीनतापूर्वक सूँड को भूमि पर रखकर धीरे-धीरे लंबी सांस लेकर चले और अर्धोंमीलित दृष्टि हो जाये, बहुत देर तक सोये, उल्टा चलने लगे, अभक्ष्य वस्तु खाये व रक्तमिश्रित टट्टी करे तो ये चेष्टायें भय उत्पन्न करने वाली अशुभ हैं।45 यदि हाथी को पकड़कर ग्राह जल में प्रवेश कर जाय तो राजा का नाश होता है।46 रावनवध महाकाव्य में प्रहस्त नामक राक्षस के रणभूमि के लिये प्रस्थान करते समय हाथियों का गतिहीन होना अशुभ सूचना के रूप में उल्लिखित किया गया है।47 बालभरत महाकाव्य में कौरव सेना के रणभूमि के लिये प्रस्थान करते समय हाथियों के कपोलों पर बारंबार मदजल का गिरना, कौरवों के भावी विनाश का सूचक था।48
(v) गौ-वृषभ शकुन – सिंह समान कंधे वाला, अगली जंघाओं के मध्यभाग में संकुचित, लंबी पूंछ वाला, भार उठाने में समर्थ एवं घोड़े के समान गति वाला बैल शुभ होता है। सफेद वर्ण वाला, ताम्रवर्णी सींग वाला, लाल आँख व लंबी पूंछ वाला बैल शुभ होता है। बैल या गाय के चारों पाँव सफेद हों तो शुभ होता है। इसके विपरीत लाल सफेद मिश्रित रंग, बिल्ली जैसे नेत्र व श्याम वर्ण के चिह्नों वाला बैल अशुभ होता है।49 ‘विजयप्रशस्ति’ महाकाव्य में बछड़ा सहित गौ का मिलना अत्यंत शुभ कहा गया है।50 इसी प्रकार ‘हरिसौभाग्य’ महाकाव्य में हरिविजय के सेना सहित प्रस्थान के समय सामने बछड़े सहित गाय का मिलना शुभ माना गया है।51 यदि बिना कारण गाय रात्रि में शब्द करे तो अनर्थ एवं भय उत्पन्न करती है। अपने पांवों से पृथ्वी को कुरेदने वाली गाय रोग उत्पन्न करती है। अश्रुपूर्ण नेत्र वाली गाय स्वामी की मृत्यु का संकेत देती है। डर कर, चमक कर अति शब्द करने वाली गाय चारों ओर से भय की सूचना देती है।52 रावण को समझाते समय विभीषण ने गायों के अल्प, अस्वादिष्ट तथा अस्वभाविक रंग वाले दूध की प्राप्ति का अशुभ-सूचक के रूप में उल्लेख किया है।53
(vi) श्वान शकुन – जिस कुत्ते के तीन पाँवों में पाँच-पाँच नख और शेष आगे के दाहिने पाँव में छः नख हों, ओठ और नाक के आगे का भाग ताम्र वर्ण का हो, सिंह के समान गति हो, भूमि को सूँघता हुआ चलता हो, पूंछ बहुत बालों से युत हो, भालू के समान आंखे हों तथा दोनों कान लंबे व कोमल हों तो ऐसा कुत्ता अपने स्वामी के घर में परिपूर्ण लक्ष्मी की रक्षा करता है।54 जिस कुतिया के तीन पाँवों में पाँच-पाँच नख और अगले बायें पाँव में छः नख हों, मल्लिका (बेला पुष्प) के समान आंखे हों तथा दोनों कान लंबे व कोमल हों तो ऐसी कुतिया अपने स्वामी के राज्य(नौकरी) की रक्षा करती है।55 श्वान में प्रेतात्माओं के निरीक्षण की शक्ति का संकेत ऋग्वेद में मिलता है।56 कुत्ता यदि गमन करने वाले के आगे होकर निकले, उत्तम वाहन, वस्तु पर मूत्र करे, तो कार्य सिद्धि, गीले गोबर पर मूत्र कर आगे होकर जाये तो मिष्ठन भोजन की प्राप्ति तथा सूखी वस्तु पर मूतकर आगे होकर जाय तो सूखे अन्न, गुड़ और मोदकों की प्राप्ति होती है।57 यदि कुत्ता घर के द्वार पर सिर और बाहर आधे शरीर को रखकर गृहस्वामी की गृहिणी को देख कर बार-बार रोये तो वह गृहिणी वेश्या हैं।58 कुत्ता यदि गमन करने वाले के दोनों पाँवों को सूंघे तो यात्रा का निषेध करता है। कुत्ता गाँव में शब्द करने के बाद, श्मशान में जाकर रोये तो उस गाँव के प्रधान पुरुष का नाश करता है।59 पांडवों की रक्षा के लिए याचना करती हुई माता कुन्ती के समक्ष कर्ण ने कौरवों की नगरी में श्वनों के रुदन का कौरवों के भावी विनाश के सूचक के रूप में उल्लेख किया है।60 चंपूभारत में दुर्योधन द्वारा पांडवों की ओर श्री कृष्ण द्वारा प्रस्तुत संधि प्रस्ताव ठुकरा देने पर श्वानों का कटुशब्द कौरवों के भावी विनाश का सूचक समझा गया है।61 विजयप्रशस्ति महाकाव्य में शिष्य जयविमल के प्रस्थान के समय श्वान द्वारा दाईं ओर से बाईं ओर का रास्ता काटना अशुभ माना गया।62
(vii) छाग (बकरे), मृगों के शकुन – नव, दस या आठ दाँत वाला छाग (बकरा) शुभ होता है तथा सात दाँत वाला छाग (बकरा) अशुभ होता है। अपने यूथ में आगे चलने वाला, सबसे पहले पानी में घुसने वाला, श्वेत वर्ण के सिर वाला, कृत्तिका नक्षत्र की तरह छः बिन्दुओं वाला छाग शुभ होता है। उत्तम वर्ण वाले मणियों (गले का स्तन) से युत गले वाले, बिना सींग वाले और लाल आँखों वाले छाग, जिनके घर में रहते हैं, उनके सुख, यश और लक्ष्मी को बढ़ाते हैं।63
छाग के शकुन मृगचेष्टा के शकुन के समान ही प्रभावोत्पादक होते हैं। शकुन शास्त्र के अनुसार प्रयाण काल में अकेले बकरे का मिलना शुभ नहीं।64 यदि वन्य मृग गाँव की सीमा में दीप्त शब्द करते हुए स्थित रहें और तात्कालिक उस सीमा से चले जायें तो भूतकाल को और सीमा प्रदेश की तरफ ही आयेँ तो भविष्य को सूचित करते हैं। यदि गाँव के चारों ओर घूमें तो गाँव को शून्य करते हैं।65 वाल्मिकी-रामायण में जनकपुरी में पुत्रों सहित राजा दशरथ अयोध्या लौटते समय मार्ग में मृगों की प्रदक्षिणा, परशुराम से प्राप्त होने वाली भावी उत्पात की सूचना देती है।66 मृगों का बाईं ओर से गुजरना अशुभ व दायीं ओर शुभ से माना गया है। भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जब सीता के स्वयंवर के लिये प्रस्थान करते हैं तो मार्ग में शुभ शकुन होते हैं तथा मृगमाला दाईं ओर से गुजरती है।67 राम और लक्ष्मण के लिये इंद्रजीत द्वारा प्रयुक्त ब्रह्मास्त्र के बंधन के पूर्व मृगों का बाईं ओर से गुजरना अशुभ माना गया।68 परवर्ती रचनाकारों ने भी बाईं से दाहिनी ओर आते हुए मृग(वन्य पशु) को शुभ व यात्रा में धनदायक शकुन माना है।69
(viii) वानर, गर्दभ और सियार के शकुन – वानर का किलिकिलि शब्द प्रदीप्त और गमन करने वाले के लिये शुभप्रद नहीं है, परंतु चुग्लु शब्द शुभप्रद है तथा कुलाल कुक्कट का शब्द शुभाशुभ फल देने वाला है।70 गमन करने वाले के वाम भाग में स्थित गधा श्रेष्ठ है, यदि वह ओंकार शब्द करे तो गमन करने वाले का हित होता है, इसके अतिरिक्त गदहे के सब प्रकार के शब्द दीप्त कहे जाते हैं।71 चंद्रप्रभुचरित महाकाव्य में युवराज सहित राजा अजितसेन के पृथ्वीपाल के साथ युद्ध के लिये प्रस्थान करते समय बाईं ओर गर्दभ का बोलना विजय सूचक होने के कारण शुभ माना गया है।72 विजय प्रशस्ति महाकाव्य में विजय सेन सूरि के लाभपुर के लिये प्रस्थान के समय बाईं ओरगर्दभ का बोलना, रास्ते में मैथुन रत गर्दभ का मिलना धननिधि की प्राप्ति का सूचक माना गया है।73 मारवाड़ी लोकोक्ति में ‘खर डाबो विष जीमणो’ कहकर गर्दभ के शकुन की श्रेष्ठता स्थापित की है।74 सब दिशाओं में सियार के दीप्त स्वर अशुभ होते हैं, किन्तु दिन में विशेष कर अशुभ होते हैं। अन्य सियार के साथ दक्षिण भाग में स्थित सियार शब्द करें तो मृत्यु को सूचित करते हैं। सियार यदि ‘याहि-याहि’ शब्द करें तो अग्नि भय,‘टा-टा’ शब्द करें तो मृत्यु,‘धिक्-धिक्’ शब्द करें तो अति कष्ट और अग्नि की ज्वाला मुख से निकालने वाले सियार देश नाश को सूचित करते हैं।75 वाल्मिकी-रामायण में राक्षस खर के राम के साथ युद्ध के लिये प्रस्थान करते समय मुख से चिंगारियों की वर्षा करने वाले सियारों का शब्द मृत्यु सूचक के रूप में अत्यंत अशुभ माना गया है।76 इसी प्रकार अपने कुटुंबियों सहित रावण के रणभूमि में उपस्थित होने पर सियारों का शब्द उन सब की मृत्यु का सूचक माना गया।77 किरातार्जुनीय महाकाव्य में युधिष्ठिर के समक्ष द्रौपदी द्वारा सियारों के शब्द का अशुभ-सूचक के रूप में उल्लेख किया गया है।78 हर्षचरित में सियारों का ऊपर की ओर मुख करके ज़ोर से चिल्लाना महाराज हर्षवर्द्धन के लिये उनके पिता की भावी मृत्यु का सूचक समझा गया।79
(ix) बिल्ली और काक के शकुन – बिल्ली का शब्दगमन करने के लिये सदैव ही अशुभ है।80 बालभारत महाकाव्य में कुरु सेनाओं के अभियान के समय मार्जारों का आर्त्तनाद होते हुए युद्ध करना कौरवों की पराजय का सूचक होने के कारण अशुभ माना गया।81 यदि कौवा शांत भाव से पूर्व दिशा को देखता हुआ शब्द करे तो राजपुरुष(प्रशासनिक अधिकारी/मंत्री) और मित्र के आने से धन लाभ, आग्नेय कोण की ओर शब्द करे तो युवती का समागम व प्रियजन का मिलाप कराता है।82 अशोकवाटिका में स्थित सीता के लिये अशोक वृक्ष की शाखा पर काक का बोलना शुभ माना गया है।83 इसी प्रकार रामचरित महकव्य में सीता हरण के पश्चात् राम ने क्षीरिवृक्ष पर स्थित काक द्वारा शब्द करना शुभ-सूचना के रूप में स्वीकार किया।84 संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने भी अच्छी जगह पर बैठे हुए दाहिनी ओर से उच्चारित काक के शब्द को शुभ शकुन माना है।85 ज्योतिष ग्रंथ मुहूर्त चिंतामणि भी इसी तथ्य का समर्थन करता है।86 ज्योतिषाचार्य डॉ पं. जितेंद्र व्यास के शोधानुसार यदि कौवा एक जगह ग्राम/शहर/देश में चक्र की तरह इकठ्ठे होकर भय के साथ रुदन (रोवें) की आवाज करें तो समाज में वर्गविरोध, उपद्रव, दंगा-फसाद इत्यादि होते हैं। ‘मृच्छकटिक’ में काक द्वारा शुष्ख वृक्ष पर रुक्ष स्वर से सूर्याभिमुख होकर कांव-कांव करना महान विपत्ति का सूचक माना है।87 हर्षचरित में अन्त:पुर के ऊपर से उड़ते हुए कौवों की निरंतर कांव-कांव को भी अशुभ माना गया है।88 यशस्तिलक चम्पू में राजा यशोवर्धन के पुत्र जन्म के अवसर पर शत्रुओं के नगरों में शुभ काकों का कर्णकटु, शब्द को उनके (शत्रुओं के) विनाश का सूचक समझा गया।89 श्रीकण्ठचरित महाकाव्य में दैत्य सेना (विरोधी सेना) के ऊपर उत्तर दिशा में काकावली द्वारा कटु शब्द करना विरोधीयों के भावी विनाश का सूचक माना गया।90 रात्रि में कौवों का बोलना अमंगलकारी कहा गया है, इससे अकाल पड़ता है।91
- शारीरिक लक्षण विचार के शकुन – मानव शरीर के लक्षण शास्त्र से, जैसे छींकने से व उसके अंगस्फुटन (अंग के फड़कने) से प्रत्यक्ष फल प्राप्त होता है। वैदिक संहिताओं में इसका प्रत्यक्ष व प्रामाणिक उल्लेख है। इसी शास्त्र को व्यावहारिक रूप में बसंतराज ने प्रस्तुत किया है।
(क) अंगस्फुटन का फल–
(i) मुख फड़कन सम्बन्धी फल – यदि जातक का मस्तिष्क फड़के तो उसे शीघ्र भूमि, प्लॉट या मकान की प्राप्ति होती है। ललाट फड़के तो प्रमोशन के साथ स्थानांतरण होता है। भ्रकुटी व नाक के मध्य फड़कन हो तो शीघ्र पत्नी या महिला मित्र मिलती है तथा यही फड़कन नाक या आँख के मध्य भाग में हो तो जातक के परिवार जन को लाभ होता है। आँख के अंतमध्य फड़कन हो तो धन सम्पदा का लाभ होगा, आँख के नीचे फड़कन से उत्कंठा परंतु कोर्ट कचहरी में विजय होती है। कान फड़के तो भी यही फल है।92 यदि जातक का गाल फड़के तो स्त्री की समृद्धि, नासिका की फड़कन से सुगंधित पदार्थ मिलता है। नीचे के होठ में फड़कन हो तो बड़े होटल या रिज़ॉर्ट में कुछ दिनों तक भोजन अपनी प्रेयसी या पत्नी के साथ तथा कंधा व गला फड़के तो क्रमशः भोगवृति व लाभ होगा।93
(ii) भुजा व कमर क्षेत्र का फल – भुजा का फड़कना अर्थात् तीर्थ यात्रा गमन, हाथ का अग्र भाग फड़के तो धन प्राप्ति होगी। यदि कमर फड़के तो कोर्ट केस में हार के संकेत है लेकिन वक्ष स्थल पर फड़कन हो तो इसका विपरीत फल होगा अर्थात् विजय होगी। यदि स्त्री स्तन फड़के तो उस समय चल रहे विवाद में पूर्ण लाभ होगा। यदि कमर के आस-पास का हिस्सा फड़के तो आपकी खुशी, हर्ष, हास्य व बल शक्ति बढ़ेगी। यदि नाभि फड़के तो घर में अनिष्ट का संकेत है।94
(iii) कमर क्षेत्र के नीचे के भागों में फड़कन फल – आंते फड़के तो धन की प्राप्ति होगी, कुंख या गूदा फड़के तो शीघ्र मनचाहा वाहन मिलेगा। वरांग अंग फड़के तो स्त्री को पुरुष की तथा पुरुष को स्त्री की प्राप्ति होगी, (वरांग अंग का अर्थ स्त्री में उसकी योनी से तथा पुरुष में उसके लिंग से है)। स्त्री में अंडकोष फड़के तो अवश्य ही पुत्र प्राप्ति माने। यदि जांघ फड़के तो लाभ का नाश होगा, घुटना फड़के तो शीघ्र ही दुश्मन से आत्मीयता होगी, पाँव का ऊपर का भाग फड़के तो प्रमोशन तथा नीचे का भाग फड़के तो ट्रांस्फर के साथ प्रमोशन अर्थात्यात्रा तय होगी।95 पुरुष जातक के दायें व स्त्री के बायें अंग में फड़कन का लाभ कभी भी निष्फल नहीं जाता है परंतु यही इसके विपरीत अंग फड़कना विपरीत फलों का संकेत है।96
(ख) छींक का फल – सभी देशों में, सभी कालों में छींक का होना शुभ है या अशुभ ऐसी चर्चा होती रही है प्रामाणिक तौर पर छींक का फल कहाँ और कब होता है इसका विवेचन हम यहाँ करेंगे। छींक होने पर कोई कार्य करने योग्य नहीं है तथा गमन पर छींक तो प्राण घातक होती है।97 यथा – “जाते श्रुते तेन न किंचिदेव कुर्यात्श्रुत प्राणहरं गवां तु॥”सामने की छींक हो तो कार्य छोड़ दें, दायीं नेत्र की ओर छींक हो तो कार्य नहीं होगा, दायें कान की ओर छींक हो तो धन का नाश होगा, दायें कान के पीछे की ओर छींक हो तो दुश्मन बढ़ेंगे और घर पर लड़ाई होगी, कंठ के आगे व पीछे छींक हो तो अति शुभ फल दायक है। बायें कान के पास छींक हो तो विजय प्राप्त होती है व प्रसिद्धि मिलती है। बायें कान के पास या पीछे छींकें हो तो गाड़ी व मकान इत्यादि का भोग मिलता है, और बायें नेत्र के आगे छींक हो तो सर्वत्र सर्वार्थ लाभ होता है।98 यह आठ प्रकार की छींक के फल है। यथा-
निषिद्धमग्रेअक्षणि दक्षिणे च धनक्षयं दक्षिणाकर्णदेशे ।
तत्पृष्ठभागे कुरुतेअरिवृद्धिम क्षुतं कृकानां शुभमाद धाती॥
भोगाय वामश्रवणस्य पृष्टे करणे च वामे कथितम जयाय ।
सर्वार्थलाभाय च वामनेत्रे जातं क्षुतं स्यात्क्रमतोष्टधैवम्॥
(i) शुभाशुभ व निष्फल छींक – दग्धा, प्रदीप्ता, धूमिता इन दिशा में छींक हो तो अपने यात्रा प्रवास को स्थगित करें अन्यथा विघ्न, कलह, उग्ररोग, अल्परोग, क्षय इत्यादि होंगें। शांता दिशा में छींक हो तो समृद्धि, क्षुधा, धन लाभ होता है। दो व्यक्तियों के मध्य तीसरे की छींक निष्फल होती है। वृद्ध, गुरु व बालक की छींक निष्फल होती है। सोये हुए व्यक्ति द्वारा की गयी व भोजन के मध्य की गयी छींक क्रमशः निष्फल व अति अशुभ होती है तथा भोजन के अंत में की गयी छींक दूसरे दिन उससे अच्छे भोजन मिलने का संकेत होती है। कोई व्यक्ति कार्य का उदेश्य व निर्देश निर्धारित करें उस समय छींक हो जाये तो कार्य का समूल नाश होता है। छींक पर कार्य करने को निकलना उचित नहीं है।99 यहाँ मैं आठों दिशाओं में छींक का फल निरूपित कर रहा हूँ100 जिसमें व्यक्ति विशेष को अक्ष मानकर फल बताया गया है। पूर्व दिशा में छींक हो तो मृत्यु का संकेत, आग्रेय कोण में शोक का फल है, दक्षिण दिशा में छींक से हानि, पश्चिम में छींक मीठा दिलाती है, वायव्य कोण में छींक सम्पदा व धन देती है, उत्तर दिशा छींक में कलह का संकेत देती है, ईशान कोण में छींक धनागम करती है, आकाश की छींक सर्व शत्रु का नाश व पाताल की छींक सर्व संपदा देती है। यह दस प्रकार की छींक है।101
मेरे अनुभव अनुसार नवीन वस्त्र आभरण करते समय छींक हो तो लाभ अवश्य होगा अतः वह वस्त्र संभालकर रखें और अपने किसी विशेष कार्य को करवाने के लिए वही वस्त्र धारण करके जायें। स्नान के अंत में यदि छींक आये तो वह छींक अशुभ फल देती है अतः मेरी माने तो स्नान पुनः करना चाहिये। किसी रोगी व्यक्ति का हाल-चाल पूछते समय यदि पूछने वाले व्यक्ति को छींक आये तो रोगी तुरंत ठीक होगा। यदि डॉक्टर को बुलाते समय छींक आये तो रोगी मृत्यु द्वार पर खड़ा है अर्थात् मरणासन्न हैं। यदि घर आया डॉक्टर मरीज को देखते समय छींके तो रोगी तुरंत सही(निरोगी) होगा।102
4. स्वप्न शकुन का लक्षण व स्वरूप:- स्वप्न शकुन का सामाजिक जीवन में अति विशेष महत्व रहा है। प्रत्येक मानव स्वप्न देखता है, जीवन का हर पल स्वप्न शकुन से जुड़ा है। भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्व अनुमान लगाने के लिए इस विशेष विद्या का प्रयोजन है।103 सर्व प्रथम ये जानना आवश्यक है कि स्वप्न क्या है? उसे देखने का काल क्या है? उसके फल का परिपक्व काल क्या है? और ये कितने प्रकार का होता है? शास्त्रकारों ने कहा है कि– जिस समय काल में मनुष्य की पञ्चकर्मेन्द्रियां, पञ्चज्ञानेंद्रियां और मन ये सभी स्वक्रिया करते हों तथा उनके विभिन्न प्रकार के ज्ञान का स्त्रोत भी कार्य करना बंद कर दे, उस समय काल को स्वप्न काल कहते हैं।
स्वप्न दो प्रकार के होते हैं104– (अ) इष्टफल(शुभ) जानने वाला (ब) दुष्टफल(अशुभ) जानने वाला।
यथा- “सच स्वप्नोंद्विविध: इष्टफलो निष्टफलोश्चेति”
जिस प्रकार सपने के दो शुभाशुभ भेद हैं, उसी प्रकार उनके शुभाशुभ फल का प्रहर भेद भी होता है। रात के प्रथम प्रहर में सपने आयेँ तो उसका शुभाशुभ फल एक वर्ष के भीतर मिल जाता है। दूसरे प्रहर के सपने का फल आंठ महीनों में होता है, तृतीय का तीन व चौथे का एक महीने में होता है। रात्रि की चार घड़ी शेष रहे तब यदि सपना आये तो उसका फल दस दिनों में मिलता है। गौविसर्जन काल के सपने का फल तुरन्त मिलता है। यदि आपने कोई शुभ फल वाला सपना देखा है तो उसे सिर्फ माता व गुरु को ही बतायें अन्यथा उसका फल कुंठित होता जाता है।105
(अ) इष्टफल(शुभ) बोधक स्वप्न – सर्वप्रथम सर्वसामान्य स्वप्न शकुन का फल इस प्रकार है, सपने में किसी नदी या समुद्र में तेरना, आकाश में उड़ना, ग्रहों व तारों को देखना, अग्नि को देखना, बड़े महलों को देखना, मंदिरों को देखना व ऊचें पहाड़ों पर चढ़ना सभी कार्यसिद्धि कारक होते हैं ऐसे सपने मनुष्य के लिए कल्याण कारक होते हैं।106 सपने में यदि देवता, ब्राह्मण, चंद्रमा, भूमी, कमल, मंत्री, स्त्री ,चाँदी, गहनें, इत्यादि को देखना व हिमाचल के पर्वत, दूध के, फल के वृक्ष पर चढ़ना तथा रास्ते में मांस, पुष्पमाला व जल का मिलना ये सब वस्तुएँ सपने में देख लेने से लाखों-करोड़ों का लाभ होता है और यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो उसका रोग ठीक हो जाता है।107 सपने में शराब पीना मांस व चर्बी खाना, कीड़े खाना, दहिभात खाना, चन्दन ना लगाकर शरीर पर विष्ठा व खून का लेपन करना, गहनें पहनना या किसी गहनें पहने हुए व्यक्ति को देखना ऐसे स्वप्न मनुष्य के धन-धान्य व लग्जरी मे वृद्धि करते हैं।108 सपने में अपना आसन, बिस्तर, पालकी, किसी की मृत देह, बड़ी गाड़ी, ताश के पत्ते इत्यादि को जलते हुए देखना चारों ओर से लक्ष्मी आने का संकेत है। जो सपने में चंद्रमा को देखे वही निरोगी हो जाता है, यदि कोई ब्राह्मण सपने में अपने आप को खून या शराब पीता हुआ देखे तो इसका अर्थ है कि वह अपने इंटरव्यू/एक्जाम में सफलता पा लेगा, यही सपना यदि कोई और वर्ण(जाति) का मनुष्य देखे तो उसे अत्यधिक लक्ष्मी प्राप्त होती है।109 जो व्यक्ति स्वयं को सपने में घर या शहर के बीच अग्नि से घिरा देखे और सपने में पान, कपूर, सफ़ेद चन्दन-सफेद पुष्प मिले तो उसे जल्दी ही बहुत बड़ी प्रोपर्टी/जमीन मिलने वाली है।110
(ब) दुष्टफल(शुभ) बोधक स्वप्न111 – शौनक ऋषि ने अशुभ फल जानने के भी सपने बतायें जो इस प्रकार है- सपने में तारों को गिरते देखना मरण व शोक का कारण होता है। जो मनुष्य अशोक, कनेर व पलाश के वृक्ष में पुष्प लगे देखे या लाल वस्त्र पहनें व लाल चन्दन लगाएं स्त्री को स्वयं को नहलाते हुए देखे तो वह मरण व शोक का कारण होता है। जो व्यक्ति सपने में तेल, दूध, घी व दही इत्यादि को अपने शरीर पर लगाए तो वह असाध्य रोग से ग्रसित होगा यह जान लें। यदि किसी स्त्री के सम्पूर्ण केश व दाँत गल कर गिर जाए तो ऐसा सपना संतान हानि देने वाला होता है। सपने में गधे, ऊंट, बकरी पर बैठना महारोगी बनाता है। आज के इस युग में देश-काल परिस्थितियाँ, सब कुछ बदल गया है। अब बड़े शहरों एवं महानगरों के मार्ग में न तो हाथी मिलता है न गधे लौटते हुए दिखलाई देते हैं, न ही हमें मार्ग में शकुन चिड़ी (शकुन पक्षी) या कोयल के स्वर सुनाई पड़ते हैं। ऐसे में क्या शकुनों की सार्थकता पर प्रश्नवाचक चिन्ह लग जाना चाहिये? अब कृत्रिम वर्षा का युग आ गया है? अतः यह एक चिंतनीय विषय है। अब जलपूर्ण घट वाली पनिहारिन की जगह बाल्टी, जग ने ले ली है। चित्र-विचित्र पशु-पक्षियों व जानवरों की जगह चित्र-विचित्र वेशभूषा वाले नर-नारियों ने ले ली, उनके मधुर शब्द या कर्कश शब्द एवं आचरण शकुन की श्रेणी में आ सकते हैं। फिर भी शोधकर्त्ता लेखक112 की यह मान्यता है कि परिस्थितियाँ चाहे जितनी बदल जायेँ, ऋषियों के ज्ञान की धरोहर की मूल भावना एवं शकुनों की सार्थकता नहीं बदलती। शकुनों की उपादेयता व अक्षुण्णता, ग्राम, देहात व आदिवासी समाज के दैनिक लोक-व्यवहार में आज भी ज्यों की त्यों प्रचलित है।
सन्दर्भ सूची : –
1.संस्कृत हिन्दी कोष, शिवराम आपटे, पृष्ठ 996
2. शब्दकल्पतद्रुम (पंचम काण्ड), पृष्ठ 2
3. ज्योरिक – वेदांग ज्योतिष कि प्रासंगिकता / डॉ जितेंद्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन / पृष्ठ 126, जोधपुर
4. An omen is an event which is supposed to indicate destiny, the chief feature being the gratuitous nature of the happening; it is message about the future which we do not seek for. T. Sharper Knowison: The Origin of Popular Superstitions and Customs, 1930, Page-162
5. जूलियस सीजर (नाटक) / शेक्सपियर
6. बृहत्संहिता / अध्याय 86 / श्लोक 5 / पृष्ठ 500
7. संस्कृत काव्य में शकुन / साहित्य भण्डार -1966 / पृष्ठ 1
8. बृहत्संहिता / अध्याय 95 / श्लोक 61 / पृष्ठ 555
9. बृहत्संहिता / अध्याय 86 / श्लोक 15 / पृष्ठ 502
10. बृहत्संहिता / अध्याय 86 / श्लोक 22-23 / पृष्ठ 504
11. मानस पीयूष (खण्ड 3) / दोहा 303 / पृष्ठ 682
12. भड़ली पुराण / डंक मुनि / राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर
13. वर्ष फल विचार / पं. बीआर शर्मा / गोयल एंड कंपनी, 1972
14. भड़ली पुराण / डंक मुनि / राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर
15. भारतीय ग्रह विज्ञान एवं आधुनिक समस्याएँ: कारण एवं निवारण / डॉ जितेंद्र व्यास / प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली
16. ज्योरिक – वेदांग ज्योतिष कि प्रासंगिकता / डॉ जितेंद्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर / पृ. 126
17. बृहत्संहिता / अध्याय 88 / श्लोक 19 / पृष्ठ 526
18. चम्पूभारत (अनंत कवि ) / स्तवक 10/26 / पृष्ठ 389
19. वाल्मीकि रामायण, युद्धकांड / सर्ग 35/25, पृष्ठ 1059
20. “खर डाबो विष जीमण वैसंते पयाल। सुर सांप अरु गोह को दर्शन अपार॥” मेघमाला / पृष्ठ -5
21. बृहत्संहिता / अध्याय 88 / श्लोक 34 / पृष्ठ 528
22. बृहत्संहिता / अध्याय 45 / श्लोक 3 / पृष्ठ 254
23. बृहत्संहिता / अध्याय 88 / श्लोक 36 / पृष्ठ 529
24. काक धूमक विमुक्ता तथा गाढमपदधि दैत्य वाहिनी॥ – श्रीकण्ठचरित(मंखक:)/ सर्ग 22-26/ पृष्ठ 306
25. पृथ्वीराज विजय (जयानक), सर्ग 6/10 / पृ. 150
26. मेघमाला / पृ. 526
27. बृहत्संहिता / अध्याय 93 / श्लोक 7 / पृष्ठ 541
28. बृहत्संहिता / अध्याय 93 / श्लोक 8 / पृष्ठ 541
29. बृहत्संहिता / अध्याय 93 / श्लोक 9 / पृष्ठ 541
30. हेषा: कल्याणशंसिन्यों रथ्यानां तस्य निर्गमे।
जयेति वंदिनां घोषम तथेति प्रतिशुश्रुव:॥- भरतचरित (कृष्णकवि)/ सर्ग 4/10 / पृ. 36
31. जयंतविजय (अभयदेव) / सर्ग 3/41-42, पृ. 10
32. आरोहित प्रसंभमेव रथं रथांग, पाणौ बलदविनय नम्रशरीर भाज:।
हषावैर्मुदितमेदुरनात सान्द्रेर्वाहा महाविजयमंगलमाशशंसु॥ -पारिजातहरण(कविकर्णपूर),सर्ग 8/16, पृ. 32
33. धनंजयविजय (काचनचर्या) / श्लोक 22 / पृष्ठ 4
34. बृहत्संहिता / अध्याय 93 / श्लोक 5 / पृष्ठ 540
35. बृहत्संहिता / अध्याय 93 / श्लोक 10 / पृष्ठ 541
36. रुदतां वाहनानां च प्रपन्त्यस्त्रबिंदव:। -वाल्मीकि रामायण / युद्धकांड6 सर्ग 35/25 / पृ. 1059
37. सा नवांश मुहूर्ते न समे च स्खलिता हया:। -वाल्मीकि रामायण/ युद्धकांड सर्ग 57/41 / पृ. 1116
38. रावणवध (भट्टी) / सर्ग 17/10, पृ. 235
39. हर्षचरित(बाण) / उच्छ्वास6 / पृ. 201
40. बृहत्संहिता / अध्याय 94 / श्लोक 13 / पृष्ठ 545
41. बृहत्संहिता / अध्याय 94 / श्लोक 14 / पृष्ठ 545
42. वराश्वहत्रेषा गजराज गर्जितं, सतूर्यनादं शुभशंखनि: स्वनम्॥ -जयंतविजय(अभयदेव),सर्ग 3/40, पृ.
43. चन्द्रप्रभचरित (वीरनंदी) सर्ग 15/30, पृ. 116
44. विजय प्रशस्ति (हेमविजय गणि) सर्ग 12/14, पृ. 424
45. बृहत्संहिता / अध्याय 94 / श्लोक 12 / पृष्ठ 544
46. बृहत्संहिता / अध्याय 94 / श्लोक 14 / पृष्ठ 545
47. रथा: प्रचस्खलु: साश्वा वररंहाश्वकुंजरम्। -रावणवध(भट्टी) / सर्ग 15/98, पृ. 131
48. बालभारत (अमरचन्द्रसूरी) उद्ध्योग, सर्ग 5/74, पृ. 287
49. बृहत्संहिता / अध्याय 61 / श्लोक 9-19 / पृष्ठ 405
50. गौरस्य वत्ससंहिता मिलिता पुरसतात्॥ -विजय प्रशस्ति (हेमविजय गणि) सर्ग 6/18, पृ. 237
51. हरिसौभाग्य (देवविमल गणि) सर्ग 11/92, पृ. 512
52. बृहत्संहिता / अध्याय 92 / श्लोक 1-2
53. पयोघटो हनीरपि गा दुहंती, मन्दं विवर्ण विरसं च गोपा॥ -रावणवध(भट्टी) / सर्ग 12/73
54. बृहत्संहिता / अध्याय 62 / श्लोक 1-2 / पृष्ठ 406
55. बृहत्संहिता / अध्याय 89 / श्लोक 1 / पृष्ठ 531
56. उरुणा सावसुतृपा उदुम्बलौ, यमस्य दुतां चरतो जनां अनु।
तावस्मभयं दृशते सूर्याय, पुनर्दातामसमेद्मेह भद्रम्॥ -ऋग्वेद संहिता 10/14/12
57. बृहत्संहिता / अध्याय 89 / श्लोक 3-7 / पृष्ठ 533
58. बृहत्संहिता / अध्याय 89 / श्लोक 12 / पृष्ठ 534
59. चंडालभूतेष्विव दुश्चरित्रेर्धावन्ती दुराद् भषणा भषन्त:।
मौलीनभि कौरवेषु, मृतेष्विव क्रूररवा: पतंति॥ -बालभारत (अमरचन्द्रसूरी) उद्ध्योग, सर्ग 5/26, पृ. 284
60. चंपूभारत (अनतकवि) स्तवक 8, पृ. 330
61. विजय प्रशस्ति (हेमविजय गणि) सर्ग 6/4, पृ. 230
62. गमन समय जो श्वान, निज फड़फडायदे कान, महाअशुभ फल काज को, शकुन शस्त्र परमान॥ -मेघमाला पृ. 3
63. बृहत्संहिता / अध्याय 65 / श्लोक 11 / पृष्ठ 410
64. इक बकरा पुनिवृषभ, पाँच भैंस षट् श्वान।
तीन धेनु, गज सात तजु, करहि निषेध पयान॥ – मेघमाला पृ. 5
65. बृहत्संहिता / अध्याय 91 / श्लोक 1 / पृष्ठ 5
66. भौमाश्चैव मृगा: सर्वे गच्छंति स्म प्रदक्षिणमं॥ -वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग 75/9, पृ. 167
67. मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगलजन जनु दिन्हि देखाई। -मानस पीयूष(खण्ड 3), दोहा 303
68. मृगा: प्रससृपूर्वामं खगाश्चु कुविरे शुभम्। रावणवध(भट्टी) / सर्ग 12/73, पृ. 94
69. मृग बायें तो दाहिनें, आये जो तत्काल। तो लक्ष्मी प्राप्ति करे, चलते ते प्रातकाल॥ -मेघमाला, पृ. 7
70. बृहत्संहिता / अध्याय 88 / श्लोक 22 / पृष्ठ 526
71. बृहत्संहिता / अध्याय 88 / श्लोक 32 / पृष्ठ 528
72. विसस्वान शिवा तस्य वामत: शिवशसिनी।
तामेव दिशामाश्रीत्य रससमृद्र रासभ:। -चन्द्रप्रभचरित(वीरनंदी) सर्ग 15/27, पृ. 115
73. खरोअथ सुरतारूढोअध्यारूढ़ोअध्वनि।
साक्षादीव पथि प्राप्त: शेवधि: सम्पदां मुदाम्।। -विजय प्रशस्ति (हेमविजय गणि) सर्ग 12/27, पृ. 424
74. मेघमाला पृ. 6
75. बृहत्संहिता / अध्याय 90 / श्लोक 5-8 / पृष्ठ 536
76. व्याजहुश्च प्रदीप्तायां दिशि वै भैरवस्वनम्।
अशिवं यातुधानानां शिवा घोरा महास्वाना:॥ -वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग 23/6, पृ. 506
77. वाल्मीकि रामायण / युद्धकाण्ड, सर्ग 108/27, पृ. 1287
78. अभद्रद्रर्भामधिशस्य स स्थली, जहासि निद्रामशिवै: शिवास्तै:। -किरातर्जुनीय (भारवि), सर्ग 1/38, पृ.23
79. हर्षचरित(बाण) / उच्छ्वास 5 / पृ. 162
80. यातुर्बिडालविरुत न शुभं सदैव॥ बृहत्संहिता / अध्याय 88 / श्लोक 35 / पृष्ठ 529
81. आसन्नमार्जारिरनोग्रनाद, भियस्तादा दीपधरस्य हस्तात्। -बालभारत (अमरचन्द्रसूरी) उद्ध्योग, सर्ग 5/72, पृ. 287
82. बृहत्संहिता, अध्याय 95 / श्लोक 20-22 / पृष्ठ 549
83. शुभं शाखाश्रयो नित्यं सीतां वदति वायस:। -रामायणमंजरी (क्षेमेन्द्र) ससुंदरककांड 297, पृ. 257
84. रामचरित (अभिनंद) सर्ग 4/82 पृ. 36
85. दाहिना काक सूखेत सुहावा, नकुल दरसू सब काहूँ पावा।- मानस पीयूष(खण्ड 3), दोहा 303, पृ. 683
86. काक ऋक्ष श्वान: स्युर्दक्षिणा: शुभा:। मुहूर्तचिंतामणि / श्लोक 106 / पृ.541
87. मृच्छकटिकमं (शूद्रक), अंक 9/10, पृ. 474
88. हर्षचरित (बाण) / उच्छ्वास 5 / पृ. 163
89. यशस्तिलक चम्पू (सोमदेव सूरि) आश्वास 2/74, पृ.125
90. श्रीकण्ठचरित (मंखक), सर्ग 22/50, पृ. 309
91. रात्यों बोले कागला, दिन मे बोले स्याल।
तो ये भाखे भंडरी, निश्चय पाडसी काल॥ शकुन विचार, पृ. 28
92. बसंतराजशाकुन / वर्ग – षष्ठो / श्लोक 1-4 / पृ. 87-88
93. बसंतराजशाकुन / वर्ग- षष्ठो / श्लोक 5 / पृ. 88
94. बसंतराजशाकुन / वर्ग- षष्ठो / श्लोक 3-6 / पृ. 89
95. बसंतराजशाकुन / वर्ग- षष्ठो / श्लोक 7-9 / पृ. 90
96. बसंतराजशाकुन / वर्ग- षष्ठो / श्लोक 10 / पृ. 90
97. बसंतराजशाकुन / वर्ग- षष्ठो / श्लोक 2 / पृ. 83
98. बसंतराजशाकुन / वर्ग- षष्ठो / श्लोक 3-4 / पृ. 83
99. बसंतराजशाकुन / वर्ग- षष्ठो / पृ. 86
100. बसंतराजशाकुन / वर्ग- षष्ठो / श्लोक 5-9 / पृ. 84-85
101. बसंतराजशाकुन / वर्ग- षष्ठो / पृ. 86-87
102. ज्योरिक – वेदांग ज्योतिष कि प्रासंगिकता / डॉ जितेंद्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर
103. ज्योरिक – वेदांग ज्योतिष कि प्रासंगिकता / डॉ जितेंद्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर
104. स्वप्नाध्याय / श्लोक 1 / पृष्ठ 4
105. स्वप्नाध्याय / श्लोक 12-14 / पृष्ठ 9
106. ज्योरिक – वेदांग ज्योतिष कि प्रासंगिकता / डॉ जितेंद्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर
107. स्वप्नाध्याय / श्लोक 7-9 / पृष्ठ 6 व 7
108. स्वप्नाध्याय / श्लोक 5-6 / पृष्ठ 6
109. स्वप्नाध्याय / श्लोक 24-26 / पृष्ठ 14व15
110. स्वप्नाध्याय / श्लोक 31 / पृष्ठ 17
111. स्वप्नाध्याय / श्लोक 39-46 / पृष्ठ 21-24
112. वेदांग ज्योतिषम् / डॉ जितेन्द्र व्यास / रॉयल पब्लिकेशन 2015
Blog no. 57,Date: 4/5/2016
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