शारदीय नवरात्रि की श्रेष्ठता और ज्योतिष by Dr. Jitendra Vyas
वैदिक सूर्यसिद्धांत, भारतीय काल गणना का मूल है, कम ही लोगों को पता होगा की हमारे सावनमान के एक संवत्सर में 360 दिन ही होते हैं अतः 360÷9 = 40 नवरात्र तो इस प्रकार एक सावनमान के एक वर्ष में चालीस नवरात्र का विधान है। इन 40 नवरात्रों में 4 नवरात्र ही श्रेष्ठ व प्रधान माने गए हैं, क्योंकि उनका सम्बंध उत्तर परमक्रांति, दक्षिण परमक्रांति, शरद सम्पात एवं बसंत सम्पात इन चार संवत्सर बिन्दुयों से होता है। सूर्य के दक्षिनायण कालीन नवरात्र को पित्र नवरात्र कहा जाता है तथा उत्तरायण कालीन नवरात्र देव नवरात्र कहते हैं जिन्हें हम ‘गुप्त नवरात्र’ के नाम से भी जानते हैं।
आज जातक/मानव का अक्ष पृथ्वी है चूंकि हम यहीं निवास करते हैं अतः हमारे पृथ्वी के संवत्सर वृत के बीच में ‘बृहतीछंद’ नामक विषुवद्वृत्त की परिकल्पना की गयी है, इसीलिए आश्विन में शारदीय नवरात्र ‘मानव’ नवरात्र होते हैं, यही आश्विन मास वाले शारदीय नवरात्र ‘यमद्रष्टा’ कहे जाते हैं, क्योंकि यह प्रकृति में विद्यमान शक्तिपुंज का ह्रास करने वाले होते हैं, अतः इस कालखण्ड में शक्ति संयम के लिए विशेष उपासना अनिवार्य की गयी है, यही कारण है कि माँ दुर्गा या शक्ति की उपासना के लिए शारदीय नवरात्र सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं।
सनातन धर्म व पूजा पद्धति में 700 श्लोकों कि दो सप्तशती एक दुर्गा जो मोक्ष प्रदातृ है व दूसरी गीता सप्तशती जो धर्म, अर्थ व काम प्रदातृ है, अर्जुन ने श्रीकृष्ण की प्रेरणा से गीता पीताम्बरा शक्ति की उपासना करके ही महाभारत का युद्ध जीता था, श्रीराम ने भी नवरात्र में शक्ति संचय कर रावण को विजयदशमी पर हराया था तो मेरा शोध है कि आज के भौतिक युग की आधुनिक समस्याओं का निवारण शक्तिपुंज का संचय ही है, जो की शारदीय नवरात्र में ही सम्भव है।
रही बात ग्रहयोगों के द्वारा होने वाली दुर्दशा कि तो इसके भी कई वैदिक सन्दर्भ व प्रमाण मिलते हैं जैसे राजा ‘सूरथ’ ने अपनी विपरीत ग्रह दशाओं को पक्ष में करने के लिए माँ चामुंडा की पूजा-उपासना की थी । दुर्गा उपासना से ग्रहों के अनिष्ट कम होते है, कामना पूर्ति होती है, ग्रह योग पक्ष में होते हैं, नवरात्र में घट स्थापना कर शुभ मुहूर्त में साधना आरम्भ कर सभी नव देवियों की उपासना करके जीवन के सारे विघ्न समाप्त हो जाते हैं। जो निम्न प्रकार है-
1) माँ शैलपुत्री :- जब कुंडली का लग्न, लग्नेश व सूर्य कमजोर हो तो शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिए।
2) माँ ब्रह्मचारिणी :- किसी जातक के नीचगत राहू की दशा चल रही हो या ये ग्रह पाप-पीड़ित होकर कष्ट-दायक बना हों तो माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए।
3) माँ चन्द्रघंटा :- केतू ग्रह के अनिष्ट को शान्त करने के लिए च्ंद्रघण्टा की साधना करनी चाहिए।
4) माँ कुष्माण्डीनी :- चन्द्र ग्रह, धन लाभ, वाणी दोष कम करने की लिए, वाणी की सिद्धि प्राप्त करने के लिए कुष्माण्डीनी की पूजा करनी चाहिए तथा इसकी साधना करने से जातक तंत्र, ज्योतिष व रमल में सिद्ध हस्त हो जाता है।
5) माँ स्कन्ध मातृ :- स्कन्ध माता मंगल ग्रह का दुष्प्रभाव समाप्त करती है।
6) माँ कात्यायनी :- यह देवी बुध ग्रह के अनिष्ट फल की समाप्त करती है।
7) माँ महागौरी :- यह देवी गुरु ग्रह के अनिष्ट फल की समाप्त करती है।
8) माँ सिद्धिदात्री :- यह देवी शुक्र ग्रह के अनिष्ट फल की समाप्त करती है।
9) माँ कालरात्रि :- यह देवी शनि ग्रह के अनिष्ट फल की समाप्त करती है।
Blog no. 44, Date: 13/9/2015
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