सूतक (अशौच): एक प्रासंगिक व्यवस्था

सूतक (अशौच): एक प्रासंगिक व्यवस्था by डॉ. जितेंद्र व्यास   

मुझे ज्ञात है, कि आज कि तथाकथित आधुनिक पीढ़ी “सूतक” शब्द को नहीं मानती, साथ ही इसे रूढ़िवादी परंपरा का हिस्सा समझती है, अतः आज मैंने इस blog में उन लोगों के लिए इससे संबन्धित कुछ शास्त्रार्थ वस्तु स्थिति बतलाई है, तथा उन लोगों का भी ज्ञानवर्धन किया है जो कि किवदंतिओं के साथ इस वैज्ञानिक परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं। जन्म-मरण आदि के कारण जो मृतक हो जाते हैं उनमें शुभ कर्म निषिद्ध है। जब तक शुद्धि न हो जाय तब तक यज्ञ, ब्रह्म भोजन आदि नहीं किये जाते। परन्तु sutakयदि वह शुभ कार्य प्रारंभ हो जाय तो फिर सूतक उपस्थिति होने पर उस कार्य का रोकना आवश्यक नहीं। ऐसे समयों पर शास्त्रकारों की आज्ञा है कि उस यज्ञादि कर्म को बीच में न रोककर उसे यथावत चालू रखा जाय। इस सम्बंध में कुछ शास्त्रीय अभिमत नीचे दिये जाते हैं-

यज्ञे प्रवर्तमाने तु जायेतार्थ म्रियेत वा।

पूर्व संकल्पिते कार्ये न दोष स्तत्र विद्यते।

यज्ञ काले विवाहे च देवयागे तथैव च।

हूय माने तथा चाग्नौ नाशौचं नापि सतकम्।

 दक्षस्मृति 6।19-20

यज्ञ हो रहा हो ऐसे समय यदि जन्म या मृत्यु का सूतक हो जाए तो इससे पूर्व संकल्पित यज्ञादि धर्म में कोई दोष नहीं होता। यज्ञ, विवाह, देवयोग आदि के अवसर पर जो सूतक होता है उसके कारण कार्य नहीं रुकता।

न देव प्रतिष्ठोर्त्सगविवाहेषु देशविभ्रमे।

नापद्यपि च कष्टायामा शौचम्॥

विष्णु स्मृति

देव प्रतिष्ठा, उत्सर्ग, विवाह आदि में उपस्थित सूतक में बाधा नहीं।

विवाह दुर्ग यज्ञेषु यात्रायाँ तीर्थ कर्मणि।

न तत्र सूतकं तद्वत कर्म याज्ञादि कारयेत॥

पैठानसि

विवाह, किला बनाना, यज्ञ, यात्रा, तीर्थ कर्म के समय यदि सूतक हो जाय तो उसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए।

यज्ञ करने वाले यजमान पर ही नहीं यह बात ऋत्विज् ब्रह्मा आचार्य आदि पर भी लागू होती है। उनके यहाँ कोई सूतक हो जाय तो वह यज्ञ करने-कराने या उसमें भाग लेने के अनधिकारी नहीं होते तथा-

ऋत्विजाँ यजमानस्य तत्पत्न्या देशकस्य च।

कर्ममध्ये तु नाशौच मन्त एव तु तद्भवेत-॥

ऋत्विजों को यजमान को, यजमान की पत्नी को और आचार्य को जन्म या मरण का सूतक नहीं लगता। यज्ञ कर्म की पूर्ति हो जाने पर ही उन्हें सूतक लगता है।

ऋत्विजाँ दीक्षितानाँ च याज्ञिकं कर्म कुर्वताम्।

सत्रिव्रति ब्रह्मचरिदातृ ब्रह्म विदाँ तथा॥

दाने विवाहे यज्ञे च संग्रामे देश विप्लवे।

आपद्यपि हि कष्टायाँ सद्यः शौचं विधीयते॥

 याज्ञवलक्य

ऋत्विज्, दीक्षित अन्नसत्रि, चान्द्रायण आदि व्रतों में तत्पर, ब्रह्मचारी, दानी, ब्रह्मज्ञानी और याज्ञिकों की दान में, विवाह में, यज्ञ में, संग्राम में, देश विप्लव में और आपत्ति में सद्यः (तुरन्त) शुद्धि हो जाती है।

यज्ञ के मध्य सूतक हो जाने पर तात्कालिक स्नान कर लेने मात्र से उसकी शुद्धि हो जाती है। ऐसे अवसरों पर सूतक निवृत्ति के लम्बे समय तक प्रतिज्ञा करने की आवश्यकता नहीं होती। यथा-

यज्ञे विवाह काले च सद्यः शौचं विधीयते।

विवाहोत्सव यज्ञेषु अन्तरामृत सूतके।

पूर्वसंकल्पितार्थास्य न दोषश्चात्रिरव्रवीत्॥

अत्रि सं. 9 98

यज्ञ और विवाह में जन्म या मृत्यु का सूतक (अशौच) आ जाय तो उसको सद्यः शुद्धि हो जाती है। उस पूर्व संकल्पित कार्य या विवाहादि में कोई बाधा नहीं पड़ती है।

Blog no. 80, Date: 16/11/2016

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