हृदय विकार के योग

हृदय विकार के योग : ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य By Jitendra Vyas

Heart imagesवर्तमान समय में हृदयघात व हृदय से जुड़े रोग प्रमुख रूप से दिखतें हैं। आज विश्वभर में ज्यादातर व्यक्ति हृदय सम्बन्धी रोगों से परेशान हैं। मेडिकल एस्ट्रोलोजी से आप ये पता लगा सकते हैं कि जातक को कब और किसी प्रकार का हृदय रोग होगा, उस व्यक्ति को हृदयघात (Heart attack) होगा या किसी प्रकार का शल्य(Operation) होगा। आप ये भी जान सकतें हैं की जातक को अन्य किसी प्रकार की हृदय व्याधि आएगी या नहीं! मेरा मेडिकल एस्ट्रोलॉजी पर International Research है अतः आज मैंने इस Blog में हृदय संबंधी रोग उनके योग व कारण तथा निवारण पर वैदिक चर्चा की है। ज्योतिष में कालपुरुष की कुंडली में हृदय का भाव चतुर्थ होता है तथा हृदय का कारक ग्रह सूर्य ग्रह है। ध्यान रहे यदि कुंडली में सूर्य पीड़ित हो, चतुर्थ भाव पीड़ित हो या चतुर्थेश पीड़ित हो तो जातक को हृदय से संबन्धित रोगों की संभावना रहती है। शास्त्रों में कहा गया है कि “यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे” इस सिद्धांतानुसार ब्रह्मांड व संसार की आत्मा सूर्य ग्रह है यथा- “सूर्य आत्मा जगतस्तथुषश्च”, उसी प्रकार मानव शरीर रूपी ब्रह्मांड की आत्मा हृदय है व हृदय का (स्पंदन) धड़कना है।

ह्रदय विकारों को मेडिकल विज्ञान ने कई भागों में बांट दिया है- 1) वंश परम्परा, 2) फेट्स की अधिकता,  3) अतिविषाद (धूम्रपान, गुटखा, शराब व अन्य किसी भी प्रकार का नशा) की अधिकता। लेकिन मैं आपको इसका मेडिकल के साथ जुड़ा हुआ ज्योतिषीय प्रारूप बताता हूँ। जिस प्रकार सूर्य ग्रह ब्रह्मांड की आत्मा है उसी प्रकार हृदय अंग मानव शरीर की आत्मा है, उसी प्रकार सभी ग्रह हृदय के किसी न किसी भाग का आधिपत्य रखतें हैं। खगोलीय स्थिति देखने पर ज्ञात होता है कि ब्रह्माण्ड में पहले बुध व दूसरा शुक्र ग्रह सूर्य के निकट हैं अतः हृदय के नजदीक भी यही ग्रह होंगे अतः हृदय को सर्वाधिक सुरक्षित रखने का काम भी ये दोनों (बुध व शुक्र) ग्रह करते हैं। बुध ग्रह हृदय के चारों भागों (दायाँ आलिंद, दायाँ निलय व बायाँ आलिंद, बायाँ निलय) की झिल्ली होता है तथा शुक्र ग्रह हृदय की महाधमनियों (Vessels) व हृदय के बाहरी भाग का सम्पर्क करवाने का अधिपति होता है। शनि ग्रह का कार्य काले रक्त(खून) या अशुद्ध रक्त को फेफड़ों तक पहुंचाने तथा चन्द्रमा हृदय तक ले जाने का कार्य करता है। अतः हृदय का स्पंदन सूर्य ही है और जिसे आप और मैं आत्मा कहते हैं। मंगल ग्रह रक्तकणिकाएँ है, गुरु ग्रह शुद्ध रक्त को विकारों से बचाने का कार्य करता है। राहू व केतू ग्रह हृदय या आस-पास के अंगों के लिए विपरीत स्थिति बनाने के लिए उत्तरदायी है, अतः यदि कुंडली में मुख्य रूप से सूर्य ग्रह व बुध, शुक्र ग्रह चतुर्थ भाव के साथ यदि बलवान हो हृदय की बीमारियों की संभावना कम हो जाती है। यदि कुंडली में शनि व चन्द्रमा, चतुर्थ भाव के साथ पीड़ित हो तो व्यक्ति का हृदय विकार के वंशानुगत कारणों का संकेत प्रदान करता है।

हृदय विकार के कारण:- 1) यदि कुंडली में सूर्य, बुध व शुक्र चतुर्थेश होकर पाप पीड़ित हो विराजित हो तो जातक को हृदय की बीमारी होती है।

2) यदि कुंडली में चतुर्थ भाव में नीचगत सूर्य, बुध व शुक्र बैठे हों तो भी जातक को हृदय की बीमारी होती है, यदि इसके साथ चतुर्थेश भी परम पाप पीड़ित हो तो इनके दशाअंतर्दशा में हृदयघात(Heart Attack), Bypass Surgery की संभावना रहती है।

3) उपरोक्त समीकरणों के साथ शनि व चन्द्रमा का युति व दृष्टि सम्बंध बन जाए तो ऐसे व्यक्ति को हृदय की बीमारी वंशानुगत मिलती है अर्थात् ऐसी बीमारी पिता या दादा से मिलती है।

विभिन्न कुण्डलियों में इस प्रकार कई और समीकरण हो सकते हैं जो की व्यक्ति विशेष की कुंडली देखकर ही कहा जा सकता है। अतः मैं कुछ सटीक उपाय आपको यहाँ बता रहा हूँ-

उपाय: 1) चतुर्थेश का रत्न जड़ित सिद्ध बीसा यंत्र पहनें।

2) अमावस्या के दिन में पैदल चलें व पूर्णिमा के दिन रात्री को पैदल वॉक करें।

3) इस बीमारी का कारण जिस ग्रह से जनित है उसकी हवनात्मक शांति करें।

Blog No 32 Date: 13/6/2015

डॉ. जितेन्द्र व्यास (ज्योतिषी)

Contact: 09928391270, info@drjitendraastro.com, Pandit@drjitendraastro.com

www.drjitendraastro.com

 

प्रातिक्रिया दे