सम्वत् २०७७ सम्वंत्सर प्रमादी या आनन्द
blog written by Dr Jitendra Vyas
कई दिवसों से मुझे ज्योतिष अनुरागी जातकगण सम्पर्क कर रहें है? उनका संवत् २०७७ के नाम को लेकर संशय व्यक्त कर रहे है कि यह संवत्सर “प्रमादी है या आनन्द” ? आज शास्त्र से अनभिज्ञ हुये ज्योतिषी एवं पंचांगकर्ता उनकी जिज्ञासा को शांत नहीं कर पा रहे हैं अपितु संदर्भित व्याख्या भी कर पा रहे हैं । चूंकि मैं सभी को व्यक्तिगत उत्तर नहीं दे पा रहा इस हेतु मैंने यह ब्लॉग लिखा है ।
विक्रम सम्वत् चैत्रशुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है “शोधितो जायते पञ्चश्चैत्रशुक्लादितः क्रमात” ग्रन्थों में प्रभावादी ६० सम्वंत्सरों कि व्याख्या कि गयी है, ‘प्रभव से लेकर व्यय’ तक ब्रह्माबीसी के २०, ‘सर्वजित से लेकर पराभव तक’ विष्णुबीसी के २० और ‘प्लवंग से लेकर क्रोधन तक’ शिवबीसी के २० सम्वंत्सर होते है । जो कि प्रभव से लेकर क्षय तक होते हैं । इनको ज्ञात करने कि कई विधियां हैं, एक सरल विधि मैं आपको यहाँ इस श्लोक के आधार पर बतला रहा हूँ
“संवत्कालो ग्रहयुत: कृत्वा शून्यरसैर्हत: । शेषा: सम्वंत्सरा ज्ञेया: प्रभवाद्या वुधे: क्रमात् ॥”
अर्थात जिस सम्वंत्सर का नाम ज्ञान करना हो, उसमे ९ जोड़ दें, फिर ६० का भाग देने से जो शेषफल बचे उसमे १ जोड़ दें और जो संख्या क्रमांक आए उस क्रमांक के नाम से ही सम्वंत्सर होगा ।
जैसे संवत २०७७ के नाम ज्ञात करने के लिए उपरोक्त श्लोक के निर्देशो का पालन करते हैं ,
२०७७+९ = २०८६
२०८६/६० = शेषफल ४६
४६+१ = ४७
उपलब्ध सारिणी में देखें ४७ प्रमादी सम्वंत्सर ही आयेगा अतः यह संवत २०७७ आनन्द नामक संवत्सर नहीं है । अब कुछ लोग लुप्तवर्ष (सम्वंत्सर) या अतिचार कि बात करके अपनी बात को सही करने लग सकते है अतः उनकी शुद्धि के लिए बता दूँ, कि यह सिद्धान्त मात्र ब्रार्हस्पत्य वर्ष के लिए ही लागू होता है और वो भी तब जब एक वर्ष के भीतर दो ब्रार्हस्पत्य वर्ष का अन्त हो । यथा
कुत्रचिच्चान्द्रामानेन वत्सर: परीगृह्यते, एवमेव छ तत्रापि विज्ञेयो लुप्तवत्सर: ।
यह सिद्धान्त मुख्य रूप से दक्षिण भारत में ही माना जाता है, ब्रार्हस्पत्य वर्ष ७२ होते इनका सूर्यसिद्धान्त भिन्न है । कुछ पंचांग गत संवत में वक्री हुये बृहस्पति से ब्रार्हस्पत्य वर्ष का लोप कर दे रहे हैं, तत्पश्चात विक्रम संवत प्रमाथी का लोप कर विक्रम संवत आनन्द कर दे रहे है जो कि गलत है ।
यत्र जीवाब्दयुग्मस्य सौराब्देर्विरतिर्भवेत, लुप्तवर्ष तदा तत्र ज्ञेयं ज्योतिषवेदिभि:
सम्पर्क : डॉ जितेन्द्र व्यास
Blog no. 121, Date: 26/3/2020
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