आयुष्य निर्णय सूत्र और ज्योतिषीय उपाय blog written by Dr. Jitendra Vyas
इस तिर्यक लोक में जो भी आया है, वो जन्म जात अपनी आयु को लेकर चिंतित रहता है, चाहे वो किसी धर्म, जाति और संप्रदाय का हो । विज्ञान में भी इस विषय पर कुछ विशेष अर्जन नहीं किया कि वह किसी प्राणी कि आयु को निर्धारित कर पाये। अतः इस समस्या का हल किसी भी दर्शन या संहिता में नहीं मिल सकता, मात्र वेदांग ज्योतिष के अलावा। ज्योतिष में इस विषय पर बड़ा व्यापक चिंतन किया गया है, कई तार्किक सूत्रों का प्रतिपादन किया गया है, जिसे मैंने आज संदर्भों के सहित अपने ब्लॉग में प्रिय पाठकों व मेरे व इस विषय के अनुयायीओं के लिए लिखा है।
वेदांग ज्योतिष कहता है:-
“परम आयुपरीक्षेत, पश्चाल्लक्षण समाचरेत।
आयुर्हीनः नरोयस्य लक्षणम् किं प्रयोजनः ॥”
अर्थात् विद्वान ज्योतिषी को जातक कि आयु का परीक्षण पहले कर लेना चाहिए, तत्पश्चात उसके जन्माङ्ग के योगों इत्यादि कि चर्चा करनी चाहिए। उपरोक्त सूत्र का भाव यह है कि यदि आयु ही नहीं तो तो उसके योग लक्षण का परीक्षण क्यों? मैं दावे से कह सकता हूँ कि 99% ज्योतिषी इस बात का ध्यान नहीं रखते, जो कि गलत परिपाटी है। यह भी कहना गलत नहीं होगा कि आज के तथाकथित ज्योतिषी से कुतर्क में ही विश्वास करते हैं। यदि उनसे सन्दर्भ या श्लोक कि मांग कि जाती है तो वो मांग करने वाले को ही गलत साबित करने पर तुल जाते हैं । अतः मैं ये मानता हूँ कि यह एक गंभीर समस्या है, जब तक हम लोग पौराणिक देवज्ञों के सूत्रों व सिद्धान्तों को आज के प्रासंगिक माहौल में प्रतिपादित नहीं करेंगे या उन पर अनुसंधान नहीं करेंगे, तब तक उनके सार्वकालिक सत्य व शाश्वत सिद्धान्तों का निष्कर्ष हमें प्राप्त नहीं होगा।
ज्योतिष में एक आयु निर्धारण का एक सर्वमान्य सिद्धान्त है “जैमिनी सूत्र” लेकिन ऋषि पाराशर ने भी कुछ सूत्र प्रतिपादित किए हैं, मेरे अनुसंधान में वो आज भी सर्वथा प्रासंगिक है, इन सात तरह के सूत्रों से जातक अपनी आयु का निर्धारण कर सकता है या आयु ज्ञात कर सकता है ।
बालारिष्ट योगारिष्टमल्यं मध्यन्च दीर्घकम् ।
दिव्यमं चैवामितं चैवं सप्तधायुः प्रकीर्तितम् ॥
[1] बालारिष्ट 2) योगारिष्ट 3) अल्पायु 4) मध्धायु 5) दीर्घायु 6) दिव्यायु 7) अमित आयु(1.) बालारिष्ट :- जन्म से आठ वर्ष तक कि आयुपर्यन्त होने वाली मृत्यु को बालारिष्ट दोष कहा जाता है।
I) यदि लग्न से 6,8,12 वें में चंद्रमा स्थित हो और वो पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो बच्चा शीघ्र ही मर जाता है।
ii) सूर्य या चन्द्रमा ग्रहण दोष से पीड़ित हों, उन पर शनि, मंगल कि दृष्टि हो तो जातक माता-पिता सहित मर जाता है।
उपाय :- 1) बालारिष्ट जप-हवन अनुष्ठान करें। 2) चाँदी के चंद्रमा में मोती डालकर, प्रतिष्ठित बीसा यंत्र जड़ित शीघ्र ही पहनाने से बालक कि कुयोग से रक्षा होती है।
[2] योगारिष्ट :- 8 वर्ष से 20 वर्ष के पहले मृत्यु को ‘योगारिष्ट’ कहा जाता है। कई प्रकार के विशेष अरिष्टों से यह कुयोग बनता है।
उपाय:- जातक को लग्नेश तथा नवमेश के रत्न सहित प्रतिष्ठित बीसा यंत्र के साथ पहनना चाहिए।
[3] अल्पायु:- 20 से 32-36 वर्ष कि आयु को ‘अल्पायु’ कहते है। अल्पायु जातक की मृत्यु प्रायः विपततारा में मृत्यु को पाता है।
I) यदि लग्नेश व अष्टमेश दोनों स्थिर राशि में हो, शनि व चन्द्रमा दोनों स्थिर हो या एक चर – एक द्विस्वभाव राशि में हो या जन्म लग्न तथा होरा लग्न दोनों ही स्थिर के हों या एक चर-एक द्विस्वभाव का हो तो जातक अल्पायु होता है।
ii) लग्नेश चर (मेष, कर्क, तुला, मकर) राशि में हो तथा अष्टमेश द्विस्वभाव (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) राशि में हो तो जातक को अल्पायु समझना चाहिए।
iii) लग्नेश, पाप ग्रहों के साथ त्रिक भावों में हो, या शुभ ग्रहों के साथ अपोक्लिम में हो तो तो भी जातक अल्पायु होता है या फिर जन्म लग्न-द्रेष्काण दोनों ही स्थिर राशि में हो अल्पायु होता है।
उपाय :- 1) लग्नेश, गुरु तथा नवमेश के रत्ना सहित बीसा यंत्र धारण करें।
[4] मध्यायु योग :- 32 के बाद 64 वर्ष की आयु सीमा को मध्यायु माना जाता है। इस प्रमाण वाले जातक की मृत्यु प्रायः प्रत्यरि-तारा में होती है।
I) लग्नेश चर (मेष, कर्क, तुला, मकर) राशि में हो तथा अष्टमेश स्थिर (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ) राशि में हो, चंद्रमा-द्रेष्काण दोनों में से एक चर- एक स्थिर राशि में हो जातक मध्यायु होता है।
ii) यदि लग्नेश व अष्टमेश दोनों द्विस्वभाव राशि में हो, शनि व चन्द्रमा दोनों द्विस्वभाव हो या एक चर – एक स्थिर राशि में हो या जन्म लग्न तथा होरा लग्न दोनों ही द्विस्वभाव के हों या एक चर-एक स्थिर का हो तो जातक मध्यायु होता है।
[5] दीर्घायु:- 64 से ऊपर और 120 वर्ष के मध्य की आयु ज्योतिष में ऐसी आयु दीर्घायु माना जाता है।
I) लग्नेश व अष्टमेश दोनों चर राशि में या एक चर-एक द्विस्वभाव राशि हों तो जातक दीर्घायु होता है या चन्द्रमा व शनि चर राशि में या एक चर-एक द्विस्वभाव राशि हों जातक दीर्घायु होता है ।
ii) लग्नेश केंद्र में शुभ ग्रहों(शुक्र, गुरु या बुध) से युत हो या चंद्रमा तथा द्रेष्कोण दोनों चर राशि में हो तो जातक पूर्णायु होता है।
iii) लग्नेश, अष्टमेश और एक गृह उच्चगत हो तथा अष्टम घर पाप ग्रह रहित हो या लगेश पूर्णबाली हो अष्टम में कोई उच्च, स्वगृही या मित्रराशि गत हों तो भी जातक पूर्ण आयु युक्त होता है।
[6] दिव्यायु – सभी शुभ ग्रह केन्द्र और त्रिकोण में हो, सारे अशुभ ग्रह 3/6/11 में हो तथा अष्टम भाव में शुभ ग्रह की राशि हो तो यह दिव्य आयु योग बनता है।ऐसा व्यक्ति कई सौ वर्षों तक जी पाता है, यद्यपि आज ऐसा योग नहीं देखा जाता है।
[7] अमितायु योग :- यदि गुरु गोपुरांश (अपने चतुर्वर्ग) में होकर केन्द्र में हो, शुक्र पारवतांश (अपने षड्वर्ग) में हो एवं कर्कलग्न हो तो ऐसा जातक ध्युलोक लोक का वासी होता है, उसे इच्छामृत्यु का वरदान होता है। यद्यपि आज ऐसा योग नहीं देखा जाता है।
Note:- किसी भी प्रकार के उपाय व remedy के लिए सम्पर्क कर सकते हैं।
Blog no. 69, Date: 23/10/2016
Contact: Dr. Jitendra Vyas 09928391270