“बगलामुखी मंत्र साधना और ज्योतिष By डॉ. जितेन्द्र व्यास”
‘बगलामुखमिव मुखं यस्या बगलीमुखी’ अर्थात् देवी या शक्ति का वह स्वरूप जिसका मुख बगुले के समान हो बगुला मुखी देवी होती है। यह अर्थर्वसूत्र ज्ञानतंतुवों की अधिष्ठात्री देवी है, तथा दश महाविद्याओं की उपासना में बगुलामुखी साधना का विशेष महत्व है। इस साधना का ज्योतिष शास्त्र व ग्रहों योगों से अभिन्न रिश्ता है। इसकी उपासना किसी भी माध्यम से की जाए, निश्चित ही चमत्कारिक प्रभाव करती है। बगलामुखी देवी स्तवन-पूजन करने से भक्त व साधक की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। इसकी विस्तृत चर्चा मैंने आज इस Blog में की है। प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान ‘समरफील्ड’ ने भी अपनी पुस्तक में लिखा है कि ‘इस देवी का सामना करने में समस्त विश्व की संयुक्त शक्ति भी सफल नहीं हो सकती।’ यद्यपि सभी देवता सर्व-समर्थ होते हैं और साधक की सभी कामना पूरी करते हैं, फिर सनातन धर्म व्यवस्था में देवी शक्ति का क्षेत्र विशेष है। इसी आधार पर साधकजन को सभी प्रकार के रोग-निवारण, संपत्ति प्राप्ति, शत्रु-भय या बाधा, पारिवारिक सुख, भौतिक सुख(लग्जरी), कोर्ट केस से मुक्ति, व्यापार लाभ, ज्ञानवर्धन, ऋण-मुक्ति, बंधन-मुक्ति, जेल-मुक्ति व सभी प्रकार के स्तंभन, वशीकरण आदि से मुक्त होकर निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है। यह साधना बाधा व शत्रुनाश के लिए प्रसिद्ध है। कई इतिहासकारों ने ऐसा माना है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने भी एक बार पंडितों द्वारा अपने हितार्थ के लिए इस साधना का अनुष्ठान कराकर सफलता अर्जित की थी। हमने भी देश-विदेश में मेरे कई यजमानों के लिए इस साधना का सकारात्मक सफल प्रयोग किया व करवाया है। कुण्डली में यदि अष्टमेष, षष्ठमेश या मारकेश की दशा-अंतर्दशा चल रही हो या अनिष्टकारी फलदायक दशा चल रही हो तो इनके कुफ़ल के नाश के लिए यह अनुष्ठान अवश्य ही करवाना चाहिए। गंभीर रोग, प्रतिदिन दुर्घटना, पारिवारिक-क्लेश, प्रॉपर्टी विवाद, बिसनेस में घाटा इत्यादि यदि हो रहा हो तो बगलामुखी साधन अनिवार्य है। उपरोक्त व अन्य समस्यायें देवी कृपा से समाप्त हो सकती हैं, आवश्यकता केवल इस बात की है कि साधना में आस्था, तन्मयता, शुचिता व सामग्री की शुद्धता का प्राधान्य रहे। साथ ही जप-तप करने वाले ऋत्विज का उच्चारण निर्दोष होना चाहिए।
विधि:- सर्वप्रथम सिद्ध घटीपल में बृहस्पतिवार को, पुष्य नक्षत्र को या गुरु पुष्य नक्षत्र को ताम्रपत्र पर बगुलामुखी देवी व यंत्र की स्थापना करे। इस यंत्र की प्रतिष्ठित साधना हेतु साधक को सभी सामग्री (वस्त्र, आसन व आहुति की सामग्री इत्यादि) पीली ही प्रयोग में लेनी चाहिए। निम्न मंत्र का शांत चित्त से सामर्थ्य अनुसार 21 या 51 हजार जप पूरा करना चाहिए। जप पूरा होने के पश्चात हवनादि करें और ब्राह्मण पंडित व कुँवारी कन्या को दक्षिणा (सामर्थ्यानुसार केवल पीले वस्त्र, फल, स्वर्ण सामग्री इत्यादि) दें। निश्चित ही सफलता मिलती है-
बगुलामुखी देवी सिद्ध मंत्र यह है-
ॐ हीं बगलामुखी। सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिव्हां कीलय बुद्धि नाशय हीं ओम स्वाहा।।
Blog no.24 Date: 20/5/2015
डॉ. पं. जितेन्द्र व्यास (ज्योतिषी)
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