मानसिक शान्ति के लिए औषधि अनुष्ठान कैसे करें? ब्लॉग by डॉ. जितेन्द्र व्यास
औषधीय हवन द्वारा असाध्य रोग भी कट सकता है। मानसिक पीङा,प्रमेह,पागलपन, वहमीपन यह सभी रोग चन्द्रमा की देन हो सकते है क्योंकि चंद्रमा का मन से सीधा संबंध है। अतः मानसिक रोगों, मनोविकृतियों, मन में संचित विषों आदि उष्णताओं का शमन चन्द्र यंत्र तथा गायत्री मंत्र से होता है। अंतरात्मा की शांति, चित्त की एकाग्रता, पारिवारिक क्लेश, द्वेष, वैमनस्य, मानसिक उत्तेजना, क्रोध, अंर्तकलह आदि को शांत करके शीतल मधुर संबंध उत्पन्न करने के लिए भी चंद्र पीड़ा हरण यंत्र और गायत्री विशेष लाभप्रद होती है।
1} रोगी की कुण्डली के अनुसार ग्राम में शुद्ध चाँदी की बट्टी लेकर उस पर दो गुरुमुखी यन्त्र खुदवाकर उसे खाने-पीने की वस्तुओं में डाल दें, फिर 44 दिवस बाद ही जातक मानसिक शान्ति पा लेगा।
2} चंद्र गायत्री का मंत्र इस प्रकार है- ॐ भूर्भुवः स्वः क्षीर पुत्राय विऽहे, अमृत तत्वाय धीमहि तन्नः चंद्रः प्रचोदयात्।
इस मंत्र द्वारा रोगानुसार विशेष प्रकार से तैयार की गई हवन सामग्री से नित्यप्रति कम-से-कम चौबीस बार हवन करने एवं संबंधित सामग्री के सूक्ष्म कपड़छन पाउडर को सुबह-शाम लेते रहने से शीघ्र ही मनोविकृतियों से छुटकारा मिल जाता है। हवन करने वाले का चित्त स्थिर और शांत हो जाता है। मानसिक दोष, उद्वेग, तनाव आदि विकृतियाँ उसके पास फटकती तक नहीं।
जातक अपने जन्म नक्षत्र में नीचे बताई गयी सामग्रियाँ से अपने गुरु के समक्ष अनुष्ठान संपन्न करे, तो वह सभी मानसिक समस्याओं से निजात पा लेगा,हवन सामग्री में जो वनौषधियाँ बराबर मात्रा में मिलाई जाती हैं, वे हैं, अगर, तगर, देवदार, चंदन, लाल चंदन, जायफल, लौंग, गुग्गल, चिरायता, गिलोय एवं असगंध।
**मस्तिष्क रोगों की विशेष हवन सामग्री-
(1) देशी बेर का गूदा (पल्प)
(2) मौलश्री की छाल
(3) पीपल की कोपलें
(4) इमली के बीजों की गिरी
(5) काकजंघा
(6) बरगद के फल
(7) खरैटी (बीजबंद) बीज
(8) गिलोय
(9) गोरखमुँडी
(10) शंखपुष्पी
(11) मालकंगनी (ज्योतिष्मती)
(12) ब्राह्मी
(13) मीठी बच
(14) षतावर
(15) जटामाँसी,
(16) सर्पगंधा ओर केसर 😉
इन सभी सोलह चीजों के जौकुट पाउडर को हवन सामग्री के रूप में प्रयुक्त करने के साथ ही सभी चीजों को मिलाकर सूक्ष्मीकृत चूर्ण को एक चम्मच सुबह एवं एक चम्मच शाम को घी-शक्कर या जल के साथ रोगी व्यक्ति को नित्य खिलाते रहना चाहिए।मघुमह रोगी को शक्कर ना दे ,मस्तिष्कीय रोगों में समिधाओं का भी अपना विशेष महत्व है। अतः जहाँ तक संभव हो क्षीर एवं सुगंधित वृक्ष अर्थात् वट, पीपल, गूलर, बेल, देवदार, खैर, शमी का प्रयोग करना चाहिए। चंद्रमा की समिधा-पलाश है। यदि यह मिल सके, तो सर्वश्रेष्ठ समझना चाहिए। उद्विग्न-उत्तेजित मन-मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करने में उससे पर्याप्त सहायता मिलती है।
**तनाव ‘स्ट्रेस’ एवं हाइपर टेन्शन की विशेष हवन सामग्री- तनाव से छुटकारा पाने के लिए निम्नलिखित अनुपात में औषधियों की जौकुट सामग्री मिलाई जाती है-
(1) ब्राह्मी-1 ग्राम,
(2) शंखपुष्पी-1 ग्राम,
(3) शतावर-1 ग्राम,
(4) सर्पगंधा-1 ग्राम,
(5) गोरखमुँडी-1 ग्राम,
(6) मालकाँगनी-1 ग्राम,
(7) मौलश्री छाल-1 ग्राम,
(8) गिलोय-1 ग्राम,
(9) सुगंध कोकिला-1 ग्राम,
(10) नागरमोथा-2 ग्राम,
(11) घुड़बच-5 ग्राम,
(12) मीठी बच-5 ग्राम,
(13) तिल-1 ग्राम,
(14) जौ-1 ग्राम,
(15) चावल-1 ग्राम,
(16) घी 1 ग्राम,
(17) खंडसारी गुड़-5 ग्राम,
(18) जलकुँभी (पिस्टिया)-1 ग्राम।
इस प्रकार से तैयार की गई विशेष हवन सामग्री से चंद्र गायत्री मंत्र के साथ हवन करने से तनाव एवं उससे उत्पन्न अनेकों बीमारियाँ तथा हाइपरटेंशन से प्रयोक्ता को शीघ्र लाभ मिलता है। यहाँ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उक्त सामग्री में क्रमाँक (1) अर्थात् ब्राह्मी से लेकर क्रमाँक (12) अर्थात् मीठी बच तक की औषधियों का महीन बारीक पिसा एवं कपड़े द्वारा छना हुआ चूर्ण सम्मिश्रित रूप से एक-एक चम्मच सुबह एवं शाम को जल या दूध के साथ रोगी को सेवन कराते रहना चाहिए।
**दबाव-अवसाद-’डिप्रेशन’ आदि मानसिक रोगों की विशेष हवन सामग्री-
(1) अकरकरा,
(2) मालकाँगनी, (ज्योतिष्मती)
(3) विमूर
(4) मीठी बच,
(5) घुड़बच,
(6) जटामाँसी,
(7) नागरमोथा,
(8) गिलोय,
(9) तेजपत्र,
(10) सुगंध कोकिला,
(11) जौ, तिल, चावल, घी, खंडसारी गुड़।
उक्त औषधियों से तैयार हवन सामग्री से हवन करने के साथ ही (नं 1) से (नं 1) तक की औषधियों का बारीक पिसा हुआ चूर्ण रोगी को सुबह शाम एक-एक चम्मच जल या दूध के साथ नित्य खिलाते रहने से शीघ्र लाभ मिलता है। इसके साथ ही डिप्रेशन या दबाव से पीड़ित व्यक्ति को शीघ्र स्वस्थ एवं सामान्य स्थिति में लाने के लिए यह आवश्यक है कि उसके मन के अनुकूल बातें की जाएँ।
**मिर्गी-अपस्मार या ‘फिट्स’ की विशेष हवन सामग्री-
मिर्गी एवं इससे संबंधित रोगों पर निम्नलिखित औषधियों से बनाई गई हवन सामग्री से यजन करने पर यह रोग समूल नष्ट हो जाता है।
(1) छोटी इलायची,
(2) अपामार्ग के बीज,
(3) अश्वगंधा,
(4) नागरमोथा,
(5) गुरुचि,
(6) जटामाँसी,
(7) ब्राह्मी,
(8) शंखपुष्पी,
(9) चंपक,
(10) मुलहठी,
(11) गुलाब के फूल 😉 मोती
Blog no. 100, Date: 9/9/2017
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