दुकानों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों का वास्तु By डॉ. जितेन्द्र व्यास
वास्तुशास्त्र अत्यंत पुरातन व गंभीर विषय है। जन साधारण इसे सिर्फ आवासीय वास्तु से सम्बद्ध करता है, लेकिन इस BLOG में मैंने यह बताया है कि व्यवसाय-व्यापार से हमारे वास्तुशास्त्र का क्या व कितना महत्वपूर्ण संबंध है। वास्तव में तो यह व्यावसायिक उन्नति का मूल कारण है। अतः मौल, दुकान, शौरूम, ऑफिस, फेक्ट्री, मिल, दीर्घ-लघु उध्योग व बैठने की मुख्य गद्दी का स्थापना से पूर्व वास्तु-विषयक सूत्रों का वास्तुचार्यों से आचमन कर लेना चाहिए। हम लोग देखते हैं कि अनेकों बार वास्तु कार्यों में छोटी सी त्रुटि रहने पर व्यवसाय नहीं चल पाता है यद्यपि व्यवसायी ने सभी दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर व्यापार आरंभ किया होगा फिर भी उचित परिणाम नहीं आया। अतः मेरा मानना है कि व्यापारिक प्रतिष्ठान की स्थापना से पूर्व ही, वास्तु-विषयक दृष्टि से उसके गुण-अवगुण की परीक्षा कर लेनी चाहिए। यहाँ मैं कुछ सूत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ जिनके सही प्रयोग से आप अपने व्यापार को उन्नत कर सकते हैं।
1) भूमि चुनते समय ये देखें की भूमि गौमुखी, आयतन या चतुरस हो यह तीनों प्रकार दुकान की दृष्टि से अति शुभ होती हैं, सिंहमुखी दुकान भी सम मानी जाती है, लेकिन घर के लिए नहीं। होटल या मोटेल का आगे का भाग नाले व नाली पर हो तो अशुभ संकेत है। यदि दुकान का ईशान कोण खुला हो या अपनी दिशा में आगे की ओर बढ़ा हुआ हो तो अत्यधिक लाभ होता है। दुकान मालिक का ऑफिस अंडाकार होना चाहिए इससे धन-संपदा का आधिक्य रहता है।
2) होटल, मिल, फेक्ट्री या व्यापारिक प्रतिष्ठान का वायव्य कोण वाला हिस्सा भारी होना चाहिए, व्यापारिक प्रतिष्ठान में आने के लिए कोई अवरोध नहीं होना चाहिए, यदि किसी कारणवश अवरोध का निर्माण हो चुका है तो उसकी संख्या सम होनी चाहिए। दुकान की ढलान उत्तरदिशा में या फिर ईशान कोण में होनी चाहिए यह भी अत्यंत शुभकारी होती है।
3) व्यापारिक प्रतिष्ठान बनाने से पूर्व मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्थिर लग्न, श्रेष्ठ चंद्रमा (रोहिणी/पुष्य) व शुभ नक्षत्र का विचार कर ही कार्य आरंभ करना चाहिए। तिथिक्षय, अधिकमास, श्रावणमास, मलमास पूर्णतया त्याज्य हैं।
4) व्यापारिक प्रतिष्ठान, दुकान, होटल या शौरूम इत्यादि यदि पूर्वमुखी, उत्तरमुखी या ईशानकोण उन्मुखी हो तो सर्वोतम रहता है, बिजीनेस, धन-बैंक बैलेन्स की सदैव वृद्धि होती रहती है और नई फ्रेंचायजी खुलने की भी संभावना बन जाती है। अतः सदा ही इन दिशाओं वाले व्यापारिक प्रतिष्ठान लेने चाहिए इससे दुकान मालिक की प्रतिष्ठा भी बढ़ती है। यदि आपका ऑफिस या दुकान पश्चिमाभिमुखी या वायव्य कोणाभिमुखी है तो व्यापार ठंडा-गरम रहता है, कभी फायदा व कभी नुकसान इसी प्रकार ही चलता है। शास्त्रनुसार दक्षिणाभिमुख व्यापारिक प्रतिष्ठान कभी भी सही नहीं कहे जा सकते, लेकिन देश-काल व पात्रता को देख कर काफी बार व्यापारी वर्ग को दक्षिणदिशा की भूमि, घर या व्यापारिक प्रतिष्ठान लेना ही पड़ता है, उसमे आप विशेष उपाय करके इसके दुष्परिणाम से निजात पा सकते हैं। ध्यान रहे की सदैव दक्षिणाभिमुख दुकानें नुकसानदायक नहीं रहती, यदि जातक की कुण्डली में शनि व राहू अष्टम भाव या अष्टमेश के साथ विराजित हो या फिर शनि या राहू ग्रह कारक होकर अष्टम में बैठे हों तो दक्षिणाभिमुख होटल या फेक्ट्री भी लाभ देती है।
5) फेक्ट्री, शौरूम या अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान के मालिक को धन-लाभ के लिए पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर ही बैठना चाहिए। रिसर्च क्षेत्र, एनजीओ, कंसल्टेंसी से संबन्धित व्यापारिक प्रतिष्ठान दक्षिणाभिमुख होकर भी लाभदायक हो सकते हैं।
Blogno. 34 Date: 25/6/2015
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