शिव दर्शन और शिव गोरख प्रयोग

शिव दर्शन और अमोघ शिव गोरख प्रयोग (मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्) by डॉ. जितेन्द्र व्यास  

Shiv darshanभगवान शिव का वर्णन करना भी क्या संभव है. मैंने आज इस ब्लॉग में शिव दर्शन तथा शिव वर्णन पर प्रकाश डाला है ….एक तरफ वह भोलेपन की सर्व उच्चावस्था मे रह कर भोलेनाथ के रूप मे पूजित है वही दूसरी और महाकाल के रूम मे साक्षात प्रलय रुपी भी. निर्लिप्त स्मशानवासी हो कर भी वह देवताओं मे उच्च है तथा महादेव रूप मे पूजित है. तो इस निर्लिप्तता मे भी सर्व कल्याण की भावना समाहित हो कर समस्त जिव को बचाने के लिए विषपान करने वाले नीलकंठ भी यही है. मोह से दूर वह निरंतर समाधि रत रहने वाले महेश भी उनका रूप है तथा सती के अग्निकुंड मे दाह के बाद ब्रम्हांड को कंपाने वाले, तांडव के माध्यम से तीनों लोक को एक ही बार मे भयभीत करने वाले नटराज भी यही है. संहार क्रम के देवता होने पर भी अपने मृत्युंजय रूप मे भक्तो को हमेशा अभय प्रदान करते है. अत्यंत ही विचित्र तथा निराला रूप, जो हमें उनकी तरफ श्रध्धा प्रदर्शित करने के लिए प्रेम से मजबूर ही कर दे. सदाशिव तो हमेशा से साधको के मध्य प्रिय रहे है, अत्यधिक करुणामय होने के कारण साधको की अभिलाषा वह शीघ्रातिशिघ्र पूर्ण करते है.

शैव साधना और नाथयोगियो का सबंध तो अपने आप मे विख्यात है. भगवान के अघोरेश्वर स्वरुप तथा आदिनाथ भोलेनाथ का स्वरुप अपने आप मे इन योगियो के मध्य विख्यात रहा है. शिव तो अपने आप मे तन्त्र के आदिपुरुष रहे है. इस प्रकार उच्च कोटि के नाथयोगियो की शिव साधना अपने आप मे अत्यधिक महत्वपूर्ण रही है. शिवरात्री तो इन साधको के लिए कोई महाउत्सव से कम नहीं है. एक धारणा यह है की शिव रात्री के दिन साधक अगर शिव पूजन और मंत्र जाप करे तो भगवान शिव साधक के पास जाते ही है. वैसे भी यह महारात्रि तंत्र की द्रष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण समय है. अगर इस समय पर शिव साधना की जाए तो चेतना की व्यापकता होने के कारण साधक को सफलता प्राप्ति की संभावना तीव्र होती है.

नाथयोगियो के गुप्त प्रयोग अपने आप मे बेजोड होते है. चाहे वह शिव साधना से सबंधित हो या शक्ति साधना के सबंध मे. इन साधनाओ का विशेष महत्व इस लिए भी है की सिद्ध मंत्र होने के कारण इन पर देवी देवताओं की विभ्भिन शक्तिया वचन बद्ध हो कर आशीर्वाद देती ही है साथ ही साथ साधक को नाथसिद्धो का आशीष भी प्राप्त होता है. इस प्रकार ऐसे प्रयोग अपने आप मे बहोत ही प्रभावकारी है. शिवरात्री पर किये जाने वाले गुप्त प्रयोगों मे से एक प्रयोग है अमोध शिव गोरख प्रयोग. यह गुप्त प्रयोग श्री गोरखनाथ प्रणित है.

साधक को पुरे दिन निराहार रहना चाहिए, दूध तथा फल लिए जा सकते है. रात्री काल मे १० बजे के बाद  साधक सर्व प्रथम गुरु पूजन गणेश पूजन सम्प्पन करे तथा अपने पास ही सद्गुरु का आसान बिछाए और कल्पना करे की वह उस आसान पर विराज मान है. उसके बाद अपने सामने पारद शिवलिंग स्थापित करे अगर पारद शिवलिंग संभव नहीं है तो किसी भी प्रकार का शिवलिंग स्थापीत कर उसका पंचोपचार पूजन करे. धतूरे के पुष्प अर्पित करे. इसमें साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए. वस्त्र आसान सफ़ेद रहे या फिर काले रंग के. उसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र का ३ घंटे के लिए जाप करे. साधक थक जाए तो बिच मे कुछ देर के लिए विराम ले सकता है लेकिन आसान से उठे नहीं. यह मंत्र जाप ३:३० बजने से पहले हो जाना चाहिए.

ॐ शिव गोरख महादेव कैलाश से आओ भूत को लाओ पलित को लाओ प्रेत को लाओ राक्षस को लाओ, आओ आओ धूणी जमाओ शिव गोरख शम्भू सिद्ध गुरु का आसन आण गोरख सिद्ध की आदेश आदेश आदेश

मंत्र जाप समाप्त होते होते साधक को इस प्रयोग की तीव्रता का अनुभव होगा. यह प्रयोग अत्यधिक गुप्त और महत्वपूर्ण है क्यों की यह सिर्फ महाशिवरात्री पर किया जाने वाला प्रयोग है. और इस प्रयोग के माध्यम से मंत्र जाप पूरा होते होते साधक उसी रात्री मे भगवान शिव के बिम्बात्मक दर्शन कर लेता है. एक ही रात्रि मे साधक भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है और अपने जीवन को धन्य बना सकता है. अगर इस प्रयोग मे साधक की कही चूक भी हो जाए तो भी उसे भगवान शिव के साहचर्य की अनुभूति निश्चित रूप से होती ही है.

:::::  मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् :::::

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एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयेश्वरम् |

मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ||१||

सारात्सारतरं पुण्यं गुह्यात्गुह्यतरं शुभम् |

महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकम् ||२||

समाहितमना भूत्वा शृणुश्व कवचं शुभम् |

शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ||३||

वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवित: |

मृत्युञ्जयो महादेव: प्राच्यां मां पातु सर्वदा ||४||

दधान: शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुज: प्रभु: |

सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ||५||

अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभु: |

यमरूपी महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु ||६||

खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवित: |

रक्षोरूपी महेशो मां नैऋत्यां सर्वदावतु ||७||

पाशाभयभुज: सर्वरत्नाकरनिषेवित: |

वरूणात्मा महादेव: पश्चिमे मां सदावतु ||८||

गदाभयकर: प्राणनायक: सर्वदागति: |

वायव्यां वारुतात्मा मां शङ्कर: पातु सर्वदा ||९||

शङ्खाभयकरस्थो मां नायक: परमेश्वर: |

सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्कर: प्रभु: ||१०||

शूलाभयकर: सर्वविद्यानामधिनायक: |

ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वर: ||११||

ऊर्ध्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽध: सदावतु |

शिरो मे शङ्कर: पातु ललाटं चन्द्रशेखर: ||१२||

भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु |

भ्रूयुग्मं गिरिश: पातु कर्णौ पातु महेश्वर: ||१३||

नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वज: |

जिव्हां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ||१४||

मृत्युञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषण: |

पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम ||१५||

पञ्चवक्त्र: स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वर: |

नाभिं पातु विरूपाक्ष: पार्श्वो मे पार्वतिपति: ||१६||

कटद्वयं गिरिशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिप: |

गुह्यं महेश्वर: पातु ममोरु पातु भैरव: ||१७||

जानुनी मे जगद्धर्ता जङ्घे मे जगदंबिका |

पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्य: सदाशिव: ||१८||

गिरिश: पातु मे भार्या भव: पातु सुतान्मम |

मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायक: ||१९||

सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकाल: सदाशिव: |

एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानांच दुर्लभम् ||२०||

मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् |

सहस्त्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ||२१||

य: पठेच्छृणुयानित्यं श्रावयेत्सु समाहित: |

सकालमृत्यु निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ||२२||

हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ |

आधयोव्याधयस्तस्य न भवन्ति कदाचन ||२३||

कालमृत्युमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा |

अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तम: ||२४||

युद्धारम्भे पठित्वेदमष्टाविंशतिवारकम |

युद्धमध्ये स्थित:शत्रु: सद्य: सर्वैर्न दृश्यते ||२५||

न ब्रह्मादिनी चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै |

विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा ||२६||

प्रातरूत्थाय सततं य: पठेत्कवचं शुभम् |

अक्षय्यं लभते सौख्यमिहलोके परत्र च ||२७||

सर्वव्याधिविनिर्मुक्त: सर्वरोगविवर्जित: |

अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिक: ||२८||

विचरत्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् |

तस्मादिदं महागोप्यं कवचं समुदाहृतम् ||२९||

मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम् |

मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम् ||३०||

|| इति वसिष्ठकृतं मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ||

BlogNo. 63,Date : 1/9/2016

Contact: 09928391270, dr.jitendra.astro@gmail.com

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