ज्योतिष परिचय
भविष्य जानने के लिए मनुष्य-गण हमेशा ही उत्सुक रहते हैं। मानव जीवन शास्त्र के गहन व सही अध्ययन की एक शाखा ज्योतिष शास्त्र है। ज्योतिष में ब्रह्मांड के ग्रह-नक्षत्रों तथा राशियों के गुण-दोष से मनुष्य की प्रकृति का तालमेल उसके जन्म लेने के समय से ही बैठाया गया है। जन्मकाल से ही चल रही आकाशीय स्थितियाँ जैसे ग्रहों का, नक्षत्र व राशि भ्रमण उनका पूर्वी एवं पश्चिमी क्षितिज के उदय और अस्ताचल तथा इन्हीं ग्रहों के पूर्वाजन्मोंपार्जित शुभाशुभ प्रभावों के सम्यक् मनुष्य जीवन फलता-फूलता व झूलता रहता है।
अनंत समय से भविष्य देखने की अनेक विधाएँ हैं, जिनमें कुंडली विज्ञान, वास्तु, हस्त रेखा विज्ञान, सामुद्रिक शास्त्र, अंक विध्या, ओरा विज्ञान, स्वप्न विज्ञान, शकुन शास्त्र, प्लेन चिट, सिग्नेचर रीडिंग, क्रिस्टल बॉल, फर्नोलोजी, टेरोट व प्लेईंग कार्ड, ग्रेफोलॉजी, टेलीपैथी, सम्मोहन, रमल शास्त्र इत्यादि प्रमुख हैं। आचार्य कश्यप के अनुसार भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अष्टादश यानि अठारह प्रवर्तक हुए हैं जिन्होनें ज्योतिष शास्त्र की कई विधाओं की रचनाएँ की है।
सूर्य: पितामहों व्यासो वसिष्ठोअत्रि पराशर: कश्यपो नारदो गर्गो मरीचिर्मनुरंगिरा ।
लोमश: पोलिशश्चैव च्यवनो यवनो भृगु: शौनको अष्टादशाश्चैते ज्योतिष: शास्त्र प्रवर्तका: ।।
कश्यप मुनि द्वारा उद्धृत उस श्लोक के अनुसार – 1. सूर्य, 2. पितामह, 3. व्यास, 4. वसिष्ठ, 5. अत्रि, 6. पराशर, 7. कश्यप, 8. नारद, 9. गर्ग, 10. मरीचि, 11. मनु, 12. अंगिरा, 13. लोमेश, 14. पॉलिश, 15. च्यवन, 16. यवन, 17. भृगु, 18. शौनक – ये सभी अठारह ज्योतिष शास्त्र प्रवर्तक धुरंधर आचार्य हुए।
(1) कुंडली विज्ञान – सबसे सटीक व सुलभ विज्ञान यही है, इस शास्त्र में मनुष्य का जन्म दिनांक, जन्म समय व जन्म स्थान लेकर उसकी जन्म पत्रिका बनाई जाती है जो कि उस जातक के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी फलित पूर्णरूप से बताती है।
(2) वास्तु शास्त्र – मनुष्य जहां रहता है “वसंति यत्र मानवा:” वहाँ वास्तु से आरंभ हो जाता है। मनुष्य के घर या कार्यक्षेत्र के कोण व दिशाओं का सम्यक् ज्ञान ही वास्तु कहलता है, यह वहाँ की ऊर्जा को सही रूप से चलायमान करने की पद्धति है, दूसरे शब्दों में उस क्षेत्र की धनात्मक ऊर्जा (पोजिटिव एनर्जी) को बढ़ाना व ऋणात्मक ऊर्जा को घटाना ही वास्तु कहलाता है।
(3) हस्त रेखा विज्ञान (पाल्मेस्ट्री) – इस शास्त्र मे हाथ की रेखाओं द्वारा जीवन से जुड़े सभी फलों का कथन कहा जाता है। हाथ में विभिन्न तरह की रेखायेँ होती है जीवन रेखा, हृदय रेखा, यात्रा रेखा, विवाह व विध्या रेखा इत्यादि इन रेखाओं से फल प्रदर्शित होता है, एक विज्ञ हस्त रेखा परीक्षक ही आपको इनका फल बता सकता है।
(4) सामुद्रिक अंगलक्षण शास्त्र – इस शास्त्र में शरीर की बनावट के आधार पर फलादेश किया जाता है, स्त्री-पुरुष के शरीर के विभिन्न अंगों जैसे सिर से लेकर पाँव तक का फलित भी भिन्न-भिन्न होता हैं।
(5) अंक विध्या – इसे न्यूमेरोलॉजी भी कहा जाता है। अंक विध्या में अंक 1 से लेकर 9 अंकों को सभी 9ग्रहों से संबद्ध किया गया है। जैसे अंक1 सूर्य को इंगित करता है, उसी प्रकार 2 चन्द्र को, 3 गुरु से लेकर अंक 9 मंगल तक संबन्धित ग्रह है इसमे विभिन्न तकनीक लगा कर मनुष्य अपने फलादेश ज्ञात कर सकता है।
(6) ओरा (होरा विज्ञान) – इस विज्ञान में व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक शक्ति (स्पीरीचूवल पावर) से अर्जित करता है और दूसरे जातकों का फलादेश बताता है।
(7) स्वप्न विज्ञान – प्रायः व्यक्ति जो प्रातःकाल मे सपने देखते हैं, उनके फल का निरूपण किस प्रकार होगा यह स्वप्न विज्ञान का ज्ञाता आपको बता सकता है।
(8) शकुन शास्त्र – यह विचित्र व अद्भुत शास्त्र है, इसमें ज्योतिषी अपने आस-पास घटने वाली विभिन्न घटनाओं के संकेतों से फलादेश करता है।
(9) सिग्नेचर रीडींग – इसमें मनुष्य के हस्ताक्षर को देख उसका निरीक्षण कर फलित किया जाता है।
(10) क्रिस्टल बॉल – यह एक काँच की बनी बॉल होती है जिसे क्रिस्टल बॉल का एक्सपर्ट देखता है तथा जातक द्वारा पूछे गये प्रश्नों का तत्काल रूप से उत्तर देता है।
(11) रमल शास्त्र – इस शास्त्र में नंबरों का एक पैड तथा साथ ही कुछ पासे होते हैं, जातक के प्रश्न पूछे जाने के पश्चात् पासे फेंककर उसका उत्तर दिया जाता है।
(12) प्लेन चिट – इसमें वूडूइज़्म से मनुष्य का भविष्य कथन कहा जाता है।
(13) ग्रेफ़ोलॉजी – इस विज्ञान में विशेषज्ञ-व्यक्ति जातक की हेंडराईटिंग से फलित करता है।
(14) सम्मोहन (हिप्नोटिज्म) – मनुष्य को सम्मोहित करके किसी अन्य ट्रांस में भेज कर फलित कहा जाता है।
(15) टेरोट कार्ड व प्लेइंग कार्ड – टेरोट विध्या शास्त्र में कुछ कार्ड्स होतें है जो की मनुष्य के जीवन मे घटने वाली विभिन्न स्थितियों को इंगित करते हैं अतः प्रश्नकर्ता से टेरोट कार्ड खिंचवा कर उसी कार्ड से जातक द्वारा पूछे गए प्रश्न का फल कहा जाता है वहीं प्लेइंग कार्ड विधि में विभिन्न प्लेइंग कार्डों के चारित्रिक व लाक्षणिक गुणों का व्यक्ति के जीवन से जुड़े नंबरों या जन्म दिनांक के समानान्तर फलित किया जाता है।
(16) टेलीपैथी – इस विज्ञान में ज्योतिषी अपने इन्द्रिय ज्ञान को मस्तिष्क मे एक जगह एकट्ठा कर प्रश्नकर्ता के मन में झांक कर उसकी समस्याएँ सुलझाता है।
(17) फर्नोलोजी – ज्योतिषी प्रश्नकर्ता के क्रेनियम (मस्तिष्क व सिर) को काल्पनिक तौर पर अलग-अलग क्षेत्रों में बांटकर उनके द्वारा फलित किया जाता है।