कुण्डली के दोष और उनका निवारण blog by Dr. Jitendra Vyas
1).चांडाल योग- गुरु के साथ राहु या केतु हो तो जातक को चांडाल दोष है
2).सूर्य ग्रहण योग- सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो
3). चंद्र ग्रहण योग- चंद्र के साथ राहु या केतु हो तो
4).श्रापित योग – शनि के साथ राहु हो तो दरिद्री योग होता है
5).पितृदोष- यदि जातक को 2,5,9 भाव में राहु केतु या शनि है तो जातक पितृदोष से पीड़ित है.
6).नागदोष – यदि जातक को 5 भाव में राहु बिराजमान है तो जातक पितृदोष के साथ साथ नागदोष भी है.
7).ज्वलन योग- सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो जातक ज्वलन योग (अंगारक योग) से पीड़ित होता है
8).अंगारक योग- मंगल के साथ राहु या केतु बिराजमान हो तो जातक अंगारक योग से पीड़ित होता है.
9).सूर्य के साथ चंद्र हो तो जातक अमावस्या का पैदा होता है
10).शनि के साथ बुध – प्रेत दोष की शान्ति करें।
11).शनि के साथ केतु – पिशाच योग की शान्ति करें।
12).केमद्रुम योग- चंद्र के साथ कोई ग्रह ना हो एवम् आगे पीछे के भाव में भी कोई ग्रह न हो तथा किसी भी ग्रह की दृष्टि चंद्र पर ना हो तब वह जातक केमद्रुम योग से पीड़ित होता है तथा जीवन में बहुत ज्यादा परिश्रम अकेले ही करना पड़ता है,( शान्ति गुरुमुखी है) .
13).शनि + चंद्र- विषयोग शान्ति करें ।
14).एक नक्षत्र जनन शान्ति -घर के किसी दो व्यक्तियों का एक ही नक्षत्र हो तो उसकी शान्ति करें.
15).त्रिक प्रसव शान्ति- तीन लड़की के बाद लड़का या तीन लड़कों के बाद लड़की का जनम हो तो वह जातक सभी पर भारी होता है
16).कुम्भ विवाह- लड़की के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु.
17).अर्क विवाह – लड़के के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु.
18).अमावस जन्म- अमावस के जनम के सिवा कृष्ण चतुर्दशी या प्रतिपदा युक्त अमावस्या जन्म हो तो भी शान्ति करें
19).यमल जनन शान्ति- जुड़वा बच्चों की शान्ति करें।
*उपरोक्त सभी दोषों की शान्ति के लिए हमारे कार्यालय में सम्पर्क करे सकते हैं।
पंचांग के 27 योगों में से 9 “अशुभ योग”
- विष्कुंभ योग.
- अतिगंड योग.
- शुल योग.
- गंड योग.
- व्याघात योग.
- वज्र योग.
- व्यतीपात योग.
- परिघ योग.
- वैधृती योग.
योग की हवनात्मक शान्ति करें।
पंचांग के 11 करणों में से 5 अशुभ करण
- विष्टी करण.
- किंस्तुघ्न करण.
- नाग करण.
- चतुष्पाद करण.
- शकुनि करण
उपरोक्त कारण की हवनात्मक शान्ति करें।
जानिये नक्षत्र जिनकी शान्ति करना जरुरी है
1).अश्विनी का- पहला चरण(1)अशुभ है.
2).भरणी का – तिसरा चरण.(3).अशुभ है.
3).कृतिका का – तीसरा चरण.(3).अशुभ है.
4).रोहीणी का – पहला,दूसरा और तीसरा चरण.(1,2,3).अशुभ है.
5).आर्द्रा का – चौथा चरण.(4).अशुभ है.
6).पुष्य नक्षत्र का – दूसरा और तीसरा चरण.(2,3).अशुभ है.
7).आश्लेषा के-चारों चरण(1,2,3,4).अशुभ है
8).मघा का- पहला और तीसरा चरण.(1,3).अशुभ है
9).पूर्वाफाल्गुनी का-चौथा चरण(4).अशुभ है
10).उत्तराफाल्गुनी का- पहला और चौथा चरण.(1,4).अशुभ है
11).हस्त का- तीसरा चरण.(3).अशुभ है.
12).चित्रा के-चारों चरण.(1,2,3,4).अशुभ है
13).विशाखा के -चारों चरण.(1,2,3,4).अशुभ है.
14).ज्येष्ठा के -चारों चरण(1,2,3,4)अशुभ है
15).मूल के -चारों चरण.(1,2,3,4).अशुभ है.
16).पूर्वषाढा का- तीसरा चरण.(3).अशुभ है.
17).पूर्वभाद्रपदाका-चौथा चरण(4)अशुभ है
18).रेवती का – चौथा चरण.(4).अशुभ है.
*नक्षत्रों की मात्रिक जप और हवनात्मक शान्ति आवश्यक है।
यह शान्ति विधान हर 6वर्ष बाद जरुर करा लेना चाहिए, क्योंकि ग्रह नक्षत्र योगका दोष हमे पीछले जन्मोके श्रापके कारण लगता है और लेकिन श्रापसे कभीभी मुक्ति नही मिलती है, परंतु काफी हद तक इनके नकारात्मक प्रभाव को कम अवश्य ही कर देता है।
*उपरोक्त सभी दोषों की शान्ति के लिए हमारे कार्यालय में सम्पर्क करे सकते हैं।
blog no. 94, date: 10/8/2017
सम्पर्क: डॉ. जितेन्द्र व्यास, 09928391270 info@drjitendraastro.com, www.drjitendraastro.com