गुण-मिलान (विवाह मेलापक)कितना प्रासंगिक?

गुणमिलान (विवाह मेलापक)कितना प्रासंगिक? blog by Dr. JitendraVyas

 प्राचीनतम महर्षियों ने वर-वधू के सफल वैवाहिक जीवन के लिया मेलापक (गुण-मिलान) को महत्वपूर्ण माना है। ज़्यादातर लोग और तो और कई ज्योतिषी भी यही जानते हैं कि मेलापक अर्थात अष्टकूट मिलान का आधार 36 गुण है। विवाह के लिए कम से कम 18 गुण मिलने चाहिए। लेकिन आज मैं आपको बता दूँ कि वैदिक तथा पौराणिक युग में नारद 55 और गर्ग 171 गुण मिलाते थे,। जिस प्रकार 36 गुण मिलान में अष्टकूट (8 categories) होती हैं, उसी प्रकार नारद 10 तथा गर्ग 18 कूट सेGun-Milan मिलाते थे। आज मैं तीनों सूत्रों को सामान्य रूप से आपके सामने प्रस्तुत कर देता हूँ।

1) 8 अष्टकूट = (8+1)*8/2=36 गुण

2) 10 अष्टकूट = (10+1)*10/2=55 गुण

1) 18 अष्टकूट = (18+1)*18/2=171 गुण

मेलापक से वर-वधू की शारीरिक व मानसिक स्थिति के साथ दोनों के विचार गुण-अवगुण, जनन-शक्ति, स्वास्थ्य, शिक्षा व संभावित आर्थिक-स्थिति आदि के बारे में जान सकते है, इसके अतिरिक्त और भी कुछ विशेष नियम है जिनके होने पर गुण मिलने के बाद भी विवाह नही होता।

भारतीय ज्योतिष में शरीर को लग्न व चन्द्रमा को मन माना गया है। ज्योतिष में राशि का प्रमुख आधार चन्द्रमा ही है, इसलिए गुण मिलान के लिए 8 में से 4 को चंद्र अर्थात जन्म राशि को ही आधार बनाया है शेष 4 को जन्म नक्षत्र का आधार बनाया है, नक्षत्र का आधार भी चन्द्रमा ही होता है, लड़के लड़की के गुण का मिलान 8 क्षेत्रों से किया जाता है इन क्षेत्रों को ज्योतिष में अष्टकूट कहते है इस अष्टकूट के आधार पर ही निश्चय किया जाता है कि विवाह शुभ होगा या नही। अष्टकूट में राशि के आधार पर कुल 15 गुण प्राप्त होते है तथा नक्षत्र के आधार पर 21 गुण  प्राप्त होते है।

1) वर्ण मिलान:-  वर्ण मिलान राशि के आधार पर होता है वर्ण ४ होते है १२ राशियों में ३ =३ राशियों पर एक वर्ण प्रतिनिधित्व करता है वर्ण मिलान से लड़के लड़की की अहम् भावना देखी जाती है जल तत्त्व राशि का ब्राह्मण वर्ण होता है अग्नि तत्त्व राशि का क्षत्रिय वर्ण होता है पृथ्वी तत्त्व राशि का वैश्य वर्ण होता है तथा वायु तत्त्व राशि का शुद्र वर्ण होता है।

2) वश्य मिलान :- वश्य मिलान राशि के आधार पर होता है वश्य मिलान से दोनों के परस्पर लगाव तथा आकर्षण का ज्ञान किया जाता है वश्य  चतुष्पद द्विपद जलचर वनचर तथा कीट संज्ञक होता है।

3) तारा मिलान :- तारा मिलान जन्म नक्षत्र के आधार पर होता है इससे होने वाले पति पत्नी के स्वास्थ्य के विषय में ज्ञान किया जाता है प्रत्येक नक्षत्र से १० वें तथा १९वें नक्षत्र का स्वामी एक ही ग्रह होता है जिस नक्षत्र में जातक  जन्म होता है, वह जन्म नक्षत्र, उससे १० वा अनुजन्म नक्षत्र तथा उससे १९ वा त्रिजन्म नक्षत्र कहलाता है।

4) योनि मिलान:- योनि मिलान जन्म नक्षत्र से होता है योनि मिलान द्वारा भावी वर वधु की परस्पर शारीरिक संतुष्टि देखी जाती है मिलान हेतु १४ योनियों को २७ नक्षत्रों में विभाजित किया गया है जन्म नक्षत्र से यह ज्ञात हो जाता है कि लड़का लड़की किस नक्षत्र के है तथा उन १४ योनियों में ही आपस में दोनों के नक्षत्रों से गणना करके योनि का निर्धारण किया जाता है।

5) ग्रह मैत्री:- ग्रह मैत्री से वर वधू के परस्पर बौद्धिक व आध्यात्मिक सम्बन्धों का ज्ञान होता है ग्रह मिलान का आधार राशि होता है वर वधू के राशि स्वामी ग्रह की आपसी मित्र सम शत्रुता के आधार पर मैत्री का निर्धारण किया जाता है।

6) गण मिलान:- गन मिलान का आधार जन्म नक्षत्र होता है। इससे वर वधू के स्वभाव के बारे में पता लगता है २७ नक्षत्रों को ३ गणों में विभाजित किया गया है ये देवगण, मनुष्य गण, तथा राक्षस गण  के नाम से जाने जाते है ये सतोगुणी तमोगुणी तथा रजोगुणी होते है व्यक्ति का जो गण होता है उसी के अनुरूप उसका स्वभाव होता है।

7) भकूट मिलान:- भकूट मिलान से वर वधू के होने वाले परिवार एवम बच्चों के साथ पारिवारिक मेलजोल के बारे में जाना जाता है इसका आधार जन्म राशि होता है इससे ज्ञात किया जाता है कि वर वधू की राशियाँ आपस में कितनी दूरी पर है भकूट मिलान में यदि दोनों की राशियां आपस में छठी और आठवी में तो दोनों की मृत्यु तक होने की सम्भावना होती है नवम पंचम हो तो  संतान हानि, दूसरी बारहवीं हो तो निर्धनता में जीवन निकलता है इनके आलावा शुभ  होती है। *मेनें शोध में पाया है कि, किसी मेलापक में भकूट मिल रहा हो और 18 गुण नहीं मिल रहें हो तो भी विवाह उत्तम रहेगा।

8) नाड़ी मिलान:- यह सबसे प्रमुख दोष है इसलिए इसे महादोष की संज्ञा दी गई है जिस प्रकार किसी को रक्त दान करने से पहले दोनो का ग्रुप मिलाया जाता है कि एक का रक्त दूसरे को अनुकूल रहेगा या नही उसी प्रकार नाड़ी दोष से देखा जाता है कि वर वधू के सम्बन्ध बनने के बाद दोनों का स्वास्थ्य कैसा रहेगा संतान सम्बन्धी कोई पीड़ा तो नही रहेगी ना। इसका आधार जन्म नक्षत्र होता है, इस प्रकार गुण मिलान का संक्षिप्त विवेचन कर यह बताया गया है कि किस प्रकार गुण मिलान प्रक्रिया कार्य करती है!

सार :- मेरे शोधानुसार, कुण्डली मिलन से अधिक प्रासंगिक है, गुणमिलान की तुलना में। गुणमिलान स्थायी नहीं है, फिर भी यदि उपस्थित तंत्र को उपयोग में लेना है तो गण व भकूट का मिलान आवश्यक रहेगा, साथ ही मंगल मिलान, दोनों के सप्तमेश की स्थिति, दोनों के नवमांश की स्थिति और कुछ और परिस्थितियाँ भी होती है, जो कि भिन्न-भिन्न होती है, और वो विभिन्न कुण्डलियों पर निर्भर करती है। अतः विज्ञ ज्योतिषी को गुणमिलान के अतिरिक्त्भी सभी परिस्थितियाँ को अच्छे से भांप लीना चाहिए।

आपके प्रश्न आमंत्रित है।

blog no.-109, Date: 3/10/2017  

संपर्क : डॉ. जितेन्द्र व्यास, 9928391270,

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