रक्षाबन्धन का ज्योतिषीय आधार by blog written Dr. Jitendra Vyas
इस त्योहार का नाम सुनते ही भाई बहिन का के अटूट रिश्ते का बोध होता है, लेकिन पौराणिक प्रसंगों में भइबहीन का जिक्र नहीं हैं, अपितु भार्या द्वारा पति के आत्मबल तथा रक्षा करने के लिए लिए बांधे जाने वाले “रक्षासूत्र” के ही प्रमाण मिलते हैं। अतः आज मैंने उपरोक्त बात पर तथा इस त्योहार के ज्योतिषीय एवं वैज्ञानिक आधार को निरूपित करने के लिए यह blog लिखा है।
शास्त्र अनुसार रक्षासूत्र को सर्वप्रथम इंद्राणी ने इन्द्र के दाहिने हाथ पर अभिमंत्रित कर बांधा था, जिनसे उनकी रक्षा हुयी और वो युद्ध जीत गए, साथ ही इतिहास यह भी कहता है की विदेशी आक्रांताओं से रक्षा के लिए स्त्रियाँ अपने पतियों को ग्रहों के अनुसार रक्षासूत्र की पोटली बांधती थी। इस त्योहार का लोकाचार में इस तरह का अपभ्रंश हो गया कि इसे आज राखी भी कहा जाता है।
सदियों से जातकों ने सामाजिक स्तर पर, ग्रह-नक्षत्र राशियों का फलित ज्योतिष के अनुसार अनिष्ट निवारण के कई मार्गों को ढूंढा है। अलग-अलग ग्रहों एवं राशियों के आधार पर विभिन्न रंगों एवं धान्यों के रक्षासूत्र अभिमंत्रित करके, ग्रहों के प्रभाव को मंगल किया जाता है। यह पर्व आत्मबोध व आत्मज्ञान का पर्व है, अतः इसका संबंध केवल रक्षाबंधन से ही नहीं, अपितु विवाह में वर-वधू के बांधने वाली रक्षा पोटलिका है, जिसे काकर-डोरडा कहा जाता है।
भारत वर्ष में प्राचीन समय से ही नवग्रह कि औषधियाँ सरसों,राई, सुवर्ण, कोड़ी लोहखंड, चावल और लाख क्रमश: गुरु, बुध, सूर्य चन्द्र, शनि, शुक्र और मंगल का प्रतिनिधित्व करते हैं। रक्षासूत्र के लिए शास्त्रों में तंत्रशास्त्रोक्त त्राटक प्रयोग का विधान है। इसीप्रकार ग्रहों का औषधि से भी रक्षासूत्र बनता है, सूर्य के लिए आकडा , चन्द्र-पलाश, मंगल-खदिर, बुध-आंधीझाड़ा, गुरु-पिप्पल, शुक्र-गूलर, शनि-खेजड़े, राहू-एरा एवं केतू-कुशा से रक्षापोटली बांधी जाती है। उपरोक्त दोनों रक्षासूत्र जातक के ग्रहों कि विपरीत स्थिति को सही करने के बांधे जाते थे, इस उपाय-प्रयोग को जनसाधारण में रक्षाबंधन के प्रारूप में प्रसिद्ध किया गया। अतः रक्षासूत्र ग्रहोषधियों से युक्त होने पर एक शक्ति पुंज हो जाता है, और यदि इसे चन्द्र प्रधान स्त्री बांधे तो वह जातक के आत्मस्वरूप सूत्रबंधन को एक माह का अमोघ आशीर्वाद बना देती है। इस सूत्र को पुरुष के दाहिने हाथ पर बंधा जाता है, क्योंकि धर्म-प्रधान और कर्मप्रधान माना गया है, जिससे उस पर मंगल-गुरु का आधिपत्य है, उसे पर अन्य ग्रहों का प्रभाव साथ मिल कर पार्थिव, पिता एवं देव शरीर कि रक्षा करने के लिए पूर्ण समाअत हो जाते हैं।
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blog no. 91, Date: 7/8/2017
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