मंगल दोष कितना मांगलीक है? blog by Dr. Jitendra Vyas
वर-कन्या के मांगलीक दोष मिलन हेतु उत्तर भारत के ज्योतिषी जो परिपाटी अपना रहे है ,वह बहुत त्रुटिपूर्ण है ,जबकि दक्षिण भारत में प्रचलित परिपाटी बहुत उत्तम,स्पष्ट,सराहनीय एवं अनुकरणीय है | उत्तर भारत में यह परिपाटी है कि “लग्ने वये च पाताले जामित्रे चा अष्टमे कूजे, कन्या भर्तृ विनाशाय भर्तृ कन्या विनाशकृते” यदि एक कुंडली में मंगल लग्न ,चौथे, सातवें,आठवें या बारहवें भाव में हो और दूसरी कुंडली में भी मंगल इन्ही भावों में से कहीं हो,तो उसे ठीक मिलान समझा जाता है | इन्ही पाँच भावों में यदि मंगल के अतिरिक्त कोई पापग्रह(शनि, सूर्य, राहू, केतू) भी विराजित हो तो मंगल का प्रभाव उतने गुणित हो जाता है,किन्तु दक्षिण भारत में मंगल के दोष को प्रत्येक कुंडली की स्थिति के अनुसार कसौटी पर परख कर निर्णय किया जाता है अर्थात तालिका के अनुसार दोषों के नंबर स्थिर किये जाते है ,यह पूर्ण न्याय संगत परिपाटी है |मंगल शब्द मंग धातु से ‘अलच’ प्रत्यय के योग से बनता है जिसका अर्थ शुभ कल्याणकारी, भाग्यशाली, प्रसन्नता, आनंद, उल्लास और कुशलक्षेम कोई भी शुभ घटना आदि है | किन्तु व्यवहार में देखा जाता है की संतान की कुंडली में मंगल दोष सुनते ही माता के होश उड़ जाते है |
*वस्तुतः मंगली दोष को अमंगली दोष कहना चाहिए :- कोई भी पदार्थ काल स्थान परिस्थिति वशात के लिए शुभ तथा किसी के लिए अशुभ हो जाता है जैसे शर्करा मीठी वस्तु है अत्यंत ही मधुर है परन्तु जिसको मधुमेह की बीमारी है उसके लिए विष के सामान है वैसे ही मंगल दोष हैं |महाकवि कालिदास ने भी रघुवंश महाकाव्य में ” विषमप्याम्रितम क्वाचिद्भावेद अमृतं वा विश्मिश्वरेछ्या” कहा है |आचार्य वराहमिहिर ने मंगल ग्रह के वर्णनानुसार फ़ल् बताते हुए कहा है
विपुल विमल मूर्तिः किन्शुकाशोक वर्णः
स्फ़ुट् रुचिरमयुख्स्तप्तताम्रप्रभाभः |
विचरति यदि मार्गं चोत्तरं मेदिननीजः
शुभक्रिदवनिपानां हार्दिदस्च प्रजानाम || बृहत्संहिताः ६/१३
अर्थात अधिक निर्मल मुर्तिवाला ,किंशुक आयर अशोक पुष्प के सामान वर्ण वाला, स्पष्ट सुन्दर किरणवाला तथा तपाये तांबे के सामान वर्ण वाला मंगल यदि उत्तराक्रन्ति विचरण करे तो राजाओं का शुभ करने वाला तथा प्रजा को संतोष देने वाला होता है |ठीक यही बात गर्ग एवं परासर मुनियों ने कही है|मंगल ही नहीं प्रायः सभी ग्रह शुभ एवं अशुभ दोनों फल देते है | जब यह स्थिति सभी ग्रहों के साथ है तोमंगल को ही दोषी क्यों कहा गया है यह विचारणीय तथ्य है | मंगल के अनेक नाम है जैसे –कुज ,भौम,अंगारक ,क्रूर ,आर ,लोहितांग ,अवनेय,क्रुराक्ष ,धरापुत्र ,क्षितितनय (समस्त पृथ्वी वाची शब्दों में पुत्र जोड़कर),रक्तांग ,कोण ,स्कन्द ,तथा कार्तिकेय आदि |
आज के युग में मंगली दोष एवं नाडी दोष इतना भयावह हो गया है की इतने अच्छे संबध जो सामाजिकमर्यादा के अनुसार सर्वथा उपयुक्त रहते है किन्तु मंगलीदोष एवं नाडी दोषो के कारण विबाह संबध नहीं होपता | क्या वास्तव में ,मंगली दोष या नाडी दोष इतना भयानक है ,इसका परिहार भी है अथवा नहीं |मंगलीदोष नाडी दोष ऐसे विषय है जहा ज्योतिषियों में अनेक विरोधात्मक भ्रान्तिया है ,अतः इस तथ्य परविधिवत विवेचन की आवश्यकता प्रतीत होती है
*मंगल दोष का परिहार
जिन जातको के जन्माग में मंगल अथवा पापग्रहो से मंगली दोष बनता हो उसमे निम्नलिखित स्थितिया होने पर दोष का परिहार हो जाता है ||
( १ ) – यदि सप्तम भाव ,सप्तमेश गुरु एवं शुक्र बलि हो तो मंगली योग निष्फल हो जाता है |
( २ ) – यदि सप्तम भाव , सप्तमेश गुरु एवं शुक्र निर्बल हो अस्त हो पाप ग्रहों से पीड़ित हो तब मंगली दोष विशेष प्रभावी होता है |
( ३ ) – यदि मंगल स्वग्रही ,मूल त्रिकोण या उच्चराशि का होकर किसी भी भाव में स्थित हो तो मंगली दोष समाप्त हो जाता है
( ४ ) – विवाह के समय यदि शुभग्रह ,कारक ग्रह तथा बली ग्रह की दशा चल रही हो तो मंगली दोष का प्रभाव (स्वल्प या ) नहीं होता |
( ५ ) – यदि मंगल सप्तम भाव (मेष ,वृश्चिक ) जो की मंगल का ही घर है उस पर दृष्टि डाल रहा हो तो भी मंगली दोष समाप्त हो जाता है |
( ६ ) – यदि मंगल या पापग्रह अस्त हो तो मंगली दोष का प्रभाव नहीं रह जाता है |
( ७ ) – यदि मंगल लग्नादि भावों में उच्च राशि का अथवा नीच राशि का हो तो मंगली दोष का प्रभाव अत्यंत कम कर देता है |
( ८ ) – वर कन्या की कुण्डली मंगल यदि जिस स्थान में हो दुसरे की कुण्डली (वर का मंगल हो तो कन्या की कुण्डली में ,या कन्या का मंगल हो तो वर की कुण्डली में ) उसी स्थान पर शनी से मंगली दोष समाप्त हो जाता है |
( ९ ) – चन्द्रमा गुरु के साथ यदि लग्न में हो और पापग्रह कही भी हो तो मंगली दोष समाप्त हो जाता है |
(१०) – गुरु एवं शुक्र के लग्न में होने पर भी मंगली दोष निष्फल हो जाता है |
(११) – चन्द्र मंगल के योग होने पर भी मंगली प्रभाव न्यून हो जाता है |
(१२) – मंगल राहू का योग होने पर भी मंगली प्रभाव समाप्त हो जाता है |
(१३) – यदि मंगल या अन्य पापग्रह अस्त हो या नीच राशि के हो तो भी प्रभाव स्वल्प रह जाता है |
(१४) – सरल योग अष्टमेश अष्टम में, षष्टेश या द्वादशेश अष्टम स्थान में हो तो मंगली प्रभाव समाप्त हो जाता है |
(१५) – विमल योग द्वादशेश द्वादश में ,षष्टेश या अष्टमेश द्वादश स्थान में हो तो मंगली दोष समाप्त हो जाता है |
(१६) – यदि कन्या एवं वर कुण्डली में मंगल एक ही भाव में स्थित हो जैसे कन्या का मंगल अष्टम में तथा वर का भी अष्टम में हो तो मंगली दोष समाप्त हो जाता है |
(१७) – अष्टम भाव में गुरु की राशि धनु या मीन हो मंगल स्थित हो तो मंगली का प्रभाव नहीं होता है |
(१८) – द्वादश भाव में शुक्र की राशि ब्रष या तुला हो वहा मंगल स्थित हो तो मंगली का प्रभाव नहीं हो पाता है |
(१९) – सिंह लग्न या कर्क लग्न (दोनों में मंगल शुभ कारक हो जाता है ) हो तो किसी भी भाव का मंगलअशुभ फल नहीं देता है |
(२०) – केतु के नक्षत्र (अश्विनी ,मघा ,मूल )में यदि मंगल स्थित होकर किसी भी अशुभ स्थान में हो तो मंगली का प्रभाव नहीं रह जाता है |
(२१) – मंगल शैशवावस्था ,वृद्धावस्था अथवा म्रतावस्था का होकर किसी भी अशुभ स्थान में स्थित हो तो भी मंगली दोष का प्रभाव नहीं होता है |
(२२) – मंगल या पापग्रह लग्न व्ययादि किसी भी स्थान में हो,उन्हें यदि गुरु देख रहा हो तो अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है |
(२३) – जिसकी कुण्डली में लग्न या चन्द्रमा से सातवे स्थान में शुभग्रह या सप्तमेश होता है उसकी सन्तानहीन वैधव्यता तथा विषांगनाजन्य दोष का नाश हो जाता है |
लग्नाद विधोर्वा यदि जन्मकाले शुभग्रहो वा मदनाधिपच्श |
द्द्युनस्थितो हन्त्यनपत्यदोषं वैधव्यदोषं च विशाङ्नाख्यं ||
(२४) – जातक कि कुण्डली मे यदि केन्द्र,त्रिकोण मे शुभग्रह हो तथा 3,6,11,मे पापग्रह हो तथा सप्तम मे सप्तमेश हो तो मंगली दोष का अभाव होता है |
यथा – केन्द्रे कोणेतदा भौमस्य दोषो न मदने मदपस्तथा ||
(२५) – जिस मेलापक में भौम के तुल्य भौम या उसी प्रकार का पापग्रह होता है तो विवाह शुभफलदाता होता है तथा वर कन्या दीर्घायु ,पुत्र पौत्रादि से सम्पन होते है |
यथा – भौम तुल्यः यदा भौमः पापो वा ताद्रिशो भवेत् |
विवाहः शुभदः प्रोक्तच्षिरायुः पुत्रपौत्रदः ||
उपाय :- मांगलिक दोष से प्रताड़ित जातक घट, शालिग्राम विधान, विबह विनायक गणपती पूजा इत्यादि पूजा कर्म करें, मंगल बीसा, सप्तमेश बीसा, या नवमांश का लग्नेश बीसा धारण करें।
Blog no. 97, Date: 29/8/2017
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