ग्रहों के उपाय
यंहा पर मैनें कुंडली के सभी प्रकरणों का सारगर्भित विवेचन किया है, ग्रहों से संबन्धित क्षेत्र, उनसे जुड़े रोग, उनके शीघ्र व सुलभ दान तथा अचूक उपाय की चर्चा की है।
-: ग्रहों से संबन्धित क्षेत्र :-
1) सूर्य ग्रह–सूर्य ग्रह से पिता, नेत्र, जवानी, आरोग्यता, राज्य लाभ, राजनैतिक पद, शासन कर्म, अधिकार, महत्वकांक्षा, वैभव, राजसीठाठ-बाठ और लग्जरी, यश, सिर, पेट, हड्डियाँ, यात्रा, दुर्घटना, स्पष्टता, आत्मज्ञान, निर्णय क्षमता, पवित्रता, शरीर की गर्मी, उग्रता, अस्थि भंग, बेहोशी, इत्यादि का विचार किया जाता है।
2) चन्द्र ग्रह – इस ग्रह से मन, खुशबू, पुष्प, माला, मोती, बुद्धि, मानसिक भाव, लावण्यता- चेहरे का ग्लो, जलीय पदार्थ, माता का दूध, कफ, आलस्य, स्त्री का मासिक रजो-दर्शन(एम.सी. पीरियड), सर्दी तथा मिर्गी रोग, दया, आँसु, पाप विचार,सौंदर्य बोध, कोमलता, लज्जा, कल्पनाया क्रिएटिविटी, चावल, कपास, दवाई व दवाई विक्रेता, प्रकाशक, पेपर, जलीय पदार्थों का व्यापार, सेल्स टैक्स विभाग, इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट, गर्भ, रक्त की शुद्धता, डेयरी व्यवसाय, प्रेस, नर्स-डॉक्टर इत्यादि का विचार किया जाता है।
3) मंगल ग्रह – मंगल ग्रह तामसिक ग्रह है, मनुष्य की क्रिया व शारीरिक शक्ति का सूचक है। कुंडली में योग कारक मंगल जातक को सेना, पुलिस, गुप्तचर विभाग, अग्निशामन आदि का उच्चाधिकारी बनाता है, तो अशुभ मंगल हत्यारा, लूटेरा जेसे कुकर्मी भी बना सकता है। कुंडली मे मंगल ग्रह से पराक्रम, अधिकार, भावना, महत्वकांक्षा, मनोविकार, कामोन्माद, ऋण, आवेश, राजकुमार, सर्जरी, तस्करी, चोर, विश्वासघात, मिथ्याभाषण, क्रोध, परस्त्री गमन, व्देष, वाद-विवाद, कार्यनिपुणता, स्वतन्त्रता, भूमि, बंगला, रिसोर्ट, दाग, दुर्घटना, रक्त, स्त्रियों का रजोदर्शन, घाव, हड्डी टूटना, खून का जमना, चित्त की चंचलता तथा स्त्रियों की कामवासना का विशेष विचार भी मंगल से किया जाता है।
4) बुध ग्रह – बुध काल पुरुष की वाणी होता है। बुद्धि बल का कारक होता है, यह नपुंसक ग्रह है। कुंडली मे बुध ग्रह से वाणी, विध्या, विवेक (इंटेलिजेंस), गणित, ज्योतिष, कलाओं व आर्ट में निपुणता, बोलेने की कला, चमत्कारिक भाषण कला, विज्ञान, मेनेजमेंट, तर्क शक्ति, लेखन कार्य, हास्य कला, उच्च शिक्षा, अन्तर्ज्ञान, पत्रकारिता, पर्यटन स्थल, यज्ञ कर्म इत्यादि विचार करने योग्य विषय हैं।
5) गुरु ग्रह – काल पुरुष मे गुरु को ज्ञान माना गया है। इससे व्यक्ति का शारीरिक पुष्टता, वित्त(बैंक बेलेंस), पुत्र, दादा, पोता, गुरु, आचार्य, धर्मगुरु, दीक्षा गुरु, प्रज्ञा(इंटेलेजेंस), शिक्षा, विव्दता, यज्ञ, ताप, धर्म, दान, मांगलिक कार्य, सुख, वाहन, स्वर्ण, धान्य, ख़जाना, राज्य-सम्मान, भाग्य, सद्गुण, श्रद्धा, देव, ब्राह्मण, गुरु-भक्ति, प्रवचन कार्य, वेद व शास्त्र, अध्ययन-अध्यापन, मंत्री, तर्क, प्रोफेसर, न्यायदर्शन, वेदान्त, व्याकरण, लेखन, ज्योतिषी, सदाचार, इत्यादि का विचार करना चाहिए।
6) शुक्र ग्रह – शुक्र काल पुरुष में ‘काम’ का प्रतिनिधि है, यह कामवासना, विलास, लग्जरी व इंद्रिय सुखों का कारक है। जन्मकुंडली में शुक्र ग्रह से युवती, स्त्री, जवानी, रति शय्या सुख, सुंदरता, संगीत, काव्य, साहित्य व नाटक कला में निपुणता, फिल्म लाईन व अभिनेता, गुप्तांग, विवाह, वीर्य(सीमन), गाडियाँ, ब्रांडेड कपड़े, निधी, डेकोरेटेड घर, ऐश्वर्य–वैभव, प्रेम प्रसंग, प्रेमी-प्रेमीकायेँ, वेश्या, आनंद, शराब, ड्रग्स, कटाक्ष, परम भक्ति-उपासना, गूढ़ ज्ञान, सुख व विनोद, देवी लक्ष्मी व यक्षिणी इत्यादि की उपासना का विचार किया जाता है।
7) शनि ग्रह – काल पुरुष में शनि सेवक, आयु, मृत्यु, क्लेश, व्याधि व दुःख देने का प्रधान ग्रह है। कुंडली में शनि आयु व मृत्यु का कारण होता है, उससे आलस्य, दुःख, शोक, नाश, भय, भयंकर विपत्ति, रोग, विरोध, विघ्न बाधायेँ, श्रम, पतन, पदच्युति व पद हानि, दरिद्रता, सेवक, दास, नपुंसकता, नीचकर्म, झूठा भाषण, स्नायु तंत्र (नर्वस सिस्टम), नीरस वस्तुएं, काले धान्य व वस्त्र, लोहा, सीसा धातु, कृषि कर्म, तेल, दूर प्रवास, वेदांत, योग साधना, यम-नियम व कठिन तपश्चर्या इत्यादि का विचार किया जाता है।
8) राहु ग्रह – राहु ग्रह छाया ग्रह है तथा स्वतंत्र पिंड, परिमाण और भार नहीं होता है, उनकी तरह यह दिखलाई भी नहीं देते। अपने क्रांति वृत्त पर भ्रमण करता हुआ जब भचक्र (पृथ्वी के भ्रमण मार्ग) के उस बिन्दु पर पहुँचता है। जिसे काटकर वह उत्तर की और चला जाता है वह बिन्दु राहु कहलाता है, इसे “नॉर्थ नोड ऑफ दी मून” भी कहा जाता है, राहु का प्रधान देवता काल व अधिदेवता सर्प है। राहु ग्रह से मनुष्य के झूठ, कुतर्क, दुष्टता, स्त्री गमन, नीचकर्म व नीचवृत्ति जनों का आश्रय, गुप्त व षडयंत्रकारी कार्य, धोखे-बाजी, विश्वासघात, जुआ, अधार्मिकता, चोरी, पशुमैथुन, रिश्वत लेना, भ्रष्टाचार, गुप्त पाप कर्म, कठोर भाषण, दाईं और से लिखी जाने वाली भाषायें जैसे उर्दू, विदेश यात्रा, विषम स्थान भ्रमण, छत्र(पद प्राप्ति), दुर्गा उपासना, राजवैभव, पितामह(बुजुर्ग) व आकस्मिक आपत्तियों का विचार किया जाता है।
9) केतु ग्रह – केतु ग्रह से आकस्मिक बाधाएँ और विपत्ति, टी.बी, ज्वर, भूख, भीख, बंधन(जेल), दरिद्रता, मानसिक व शारीरिक मलिनता (मैलापन), दादी, बालारिष्ट, चंडीश्वर, गणेश उपासना, कष्टकर तप, आत्मज्ञान, मोक्ष इत्यादि का विचार किया जाता है। केतु ग्रह से प्रभावित व्यक्ति ‘ध्वज’ होता है अर्थात् केतु क अशुभ प्रभाव में वह नीचता की सारी सीमाएँ तोड़ देता है और यदि शुभ प्रभाव हो तो वह उत्कृष्टता की चरमसीमा लांघ देता है।
-: ग्रहों से संबन्धित रोग :-
1)सूर्यग्रह – सूर्य से प्रभावित रोगों मे सिर की पीड़ा, नेत्र, लू लगना, हार्ट अटेक, हड्डी टूटना, शत्रु भय, मन दोष, दाद व जलन, शस्त्र भय इत्यादि।
2)चन्द्र ग्रह –चंद्रमा से टीबी, निमोनिया, सर्दी, कफ, पागलपन, डाईबीटीज, मानसिक रोग, चिंताएँ, हिस्टीरिया, विभिन्न तरह के फोबिया, पेरनार्मल समस्याएँ तथा ओरतों के सम्बंध से होने वाले रोगों की सम्भावना रहती है।
3) मंगल ग्रह – मेडिकल एस्ट्रोलोजी मे मंगल के प्रभाव से रक्त ओर पित्त सम्बन्धी रोग होते हैं। नेत्र, मज्जा विकार, ज्वर, दाह, प्यास, कुष्ट, गुल्म, मिर्गी, पागलपन, सिर के रोग, त्वचा रोग, रक्त बहना, ऑपरेशन, डाईबीटीज़, पेरानॉर्मल पीड़ा, चेचक, जहर व शस्त्र से पीड़ा इत्यादि का विचार किया जाता है।
4)बुध ग्रह – बुध ग्रह के प्रभाव से स्मरण शक्ति में कमी, आलस्य, निद्रा हानि, सिर में रोग, चक्कर आना, गुप्त रोग, वायु रोग (गैस), उदर रोग, मंदाग्नि व आंत्र रोग, ज्ञानेंद्रियों के विकार, भ्रांति व दिशा भ्रम, हकलाना या गूंगापन, त्वचा रोग, अस्थमा, मानसिक कष्ट व वात, पित्त और कफ के रोग होतें है।
5) बृहस्पति ग्रह – गुरु से आंतों का बुखार, मोटापा, कान का रोग, कफ रोग, हार्निया, सूजन, पेट दर्द, अपेंडिक्स, जोंडिस इत्यादि रोग करना उचित रहता है।
6) शुक्र ग्रह – शुक्र से जातक कामज्वर, वीर्यस्त्राव, इम्पोटेंसी, नेत्र रोग, कफ-वात रोग, गुप्त रोग, एड्स, पेशाब की रुकावट संबंधी रोग, स्त्री नाश, प्रियजनों से सम्बंध विच्छेद, कमजोर शरीर इत्यादि रोगों की ज्यादा सम्भावना रहती है।
7) शनि ग्रह – शनि ग्रह से लकवा, गठिया, शूल, आकस्मिक रोग, शरीर की आंतरिक गर्मी, अपच, टी.बी, लंबे व असाध्य रोग, कुक्षि क्षेत्र के रोग, पैर की चोट या रोग, पत्थर से आघात, स्त्री, पुत्र व नौकरों पर रोग से आपत्ति इत्यादि रोगों से कष्ट की प्रबल संभावना होती है।
8) राहु ग्रह – राहु ग्रह से चेचक, कोढ़, हकलाहट, देहताप, पुराने जटिल रोग, चर्म रोग, विष विकार, पैरों में रोग, महामारी, सर्पदंश, बालारिष्ट, अशुभ बुद्धि, फोड़े, जेल जाना, बीमार स्त्री रोग, प्रेत, पिशाच, सर्प से भय, शत्रु पीड़ा, ब्राह्मण और क्षत्रिय से विरोध, स्त्री व पुत्र पर आपत्ति, संक्रामक(इन्फ़ैकशन) एवं कृमिजन्य(कीड़ो से होने वाले रोग) रोग, आत्महत्या की प्रवृत्ति, बाल रोग इत्यादि रोगों का विचार किया जाता है।
9) केतु ग्रह – केतु ग्रह से घाव, फोड़े–फुंसियाँ, खुजली, चेचक, शूल, जहरीले कीड़े का दंश, पेरानोर्मल बाधाएँ, शत्रु से घात व कपट, अपमृत्यु, सूसाईडल टेंडेंसी इत्यादि का विचार किया जाता है।
-: ग्रहों से संबन्धित दान :-
1) सूर्यग्रह -सूर्य ग्रह से जनित पीड़ा को शांत करने के लिए गेंहू, रोटी, अनाज,गुड़, केसर, स्वर्ण, लाल वस्त्र, ताम्र पात्र, रक्त चन्दन, माणक, आदि का दान करना चाहिए, यह सभी दान रविवार को करें।
2) चन्द्र ग्रह -इस गृह की शांति के लिए चाँदी, शक्कर, दूध, चावल, दही, खीर, सफ़ेद कपड़े, सफ़ेद बैल व गाय, मिश्री इत्यादि का दान करनाचाहिये।पुर्णिमा व सोमवार को दान करना उत्तम रहता है।
3) मंगल ग्रह – मंगल की पीड़ायों से शांति के लिए केसर, गेंहू, गुड़, मसूर की दाल, तांबा व सोना, लाल वस्त्र व लाल पुष्प तथा लाल बेल आदि का दान करना चाहिए।
4) बुध ग्रह – इस ग्रह की पीड़ा शांति हेतु फल, मूंग दाल, कपूर, हरे वस्त्र, गोरोचन, कांस्य, सोना व पन्ना इत्यादि दान करना उचित रहता है।
5) गुरु ग्रह – गुरु ग्रह की पीड़ा हरण हेतु केला, केली, पीले वस्त्र, स्वर्ण, चना दाल, हल्दी, पीला अनाज व पुस्तक एवं स्टेशनरी की सामग्री का दान करना उचित रहता है।
6) शुक्र ग्रह – शुक्र की शांति के लिए चावल, शक्कर, घी, दही, सफ़ेद भैंस, दूध, उड़द, सफ़ेद घोड़ा, सफ़ेद चंदन, सफ़ेद वस्त्र व स्फटिक पत्थर का दान उचित रहता है।
7) शनि ग्रह – शनि की पीड़ा दूर करने के लिए काली गाय को रोटी एवं गुड़ खिलाना, काले वस्त्र, तिल, उड़द, लोहा, नीलम, कस्तूरी, भैंस का दान व तेल में पकाये हुये उड़द के पकोड़े काले कुत्ते को खिलाना भी श्रेयस्कर है।
8) राहु ग्रह – राहु ग्रह की पीड़ा शांत करने के लिए गेहूँ, गोमेद, नीले वस्त्र, तेल, तिल, कंबल, काला घोड़ा इत्यादि का दान सही रहता है।
9) केतु ग्रह – केतु ग्रह की पीड़ा शांति हेतु अनाज, काले व गहरे रंग का वस्त्र, पशु, लहसुनिया, सोना, लोहा, तिल, कंबल, बकरा, धूमिल कपड़ा और फूल आदि का दान करना चाहिए।