भगवान गणेश का ज्योतिषीय स्वरुप

भगवान गणेश का ज्योतिषीय स्वरुप byDr. JitendraVyas   

Ganesh Ji ki Kundliगणपति कल्कियुग के इष्ट व आराध्य देव हैं। हमारे मांगलिक कार्यों व सोलह संस्कारों में सर्व प्रथम इन्हीं की पुजा अर्चना होती है, भगवान शिव-पार्वती गणपति के जन्म दाता हैं, इन दोनों के संवाद व उत्पाद से ही ग्रहगणों के फलों का दिग्दर्शन होता है। अतः गणेश चतुर्थी पर मैंने  श्री गणपती जी के ज्योतिषीय स्वरूप की चर्चा की है। पाठक इस अद्भूत आलेख (Blog) का रसास्वादन करें। गणेश शब्द में ‘गण’ का अर्थ है वर्ग, समूह, समाज, राशि व नक्षत्र का समुदाय, ईश का अर्थ स्वामी, आठ वसु, ग्यारह रुद्र व बारह आदित्य भी गण देव ही  हैं, 27 गज, 27 रथ, 81 रथ, 135 पैदल सैनिक अर्थात् 170 के समुदाय के स्वामी गणेश जी है। ज्योतिष में देव, मनुष्य व राक्षस ये तीन गण हैं। अतः गणपति पूर्णत: ज्योतिषशास्त्र के पर्याय व प्रणेता है। नगण, भगण, यगण तथा भ्वादिगण इत्यादि भी छन्दशास्त्र गण है। आकाश में यदि नक्षत्र मण्डल की सरंचना देखी जाए तो वृश्चिक राशि, गणेश जी के मुख की आकृति से काफी हद तक मिलती है। मेरा मानना है कि जिस वृश्चिक राशि के लग्न में इनका जन्म हुआ है, गणेश ने वही रूप धरण कर लिया। मैं आपको बता दूँ कि आजकल (अगस्त-सितम्बर माह में) सूर्य ग्रह का भ्रमण सिंह व कन्या राशि में है अतः इस कारण सूर्यास्त के बाद 1 घंटे तक वृश्चिक राशि स्पष्ट दिखाई देती है। यदि अंकशास्त्र से देखा जाए तो महगणपति में म=5, हा=8, ग=3, ण=5, प=1, ति=6 इन संख्याओं का योग 28 होता है अतः नक्षत्र भी अभिजीत नक्षत्र सहित 28 ही होते हैं।

lord-ganesha-embracing-shivalingaहमारे शास्त्रों में कहा गया है- “कलौ चंडी विनायकौ” अर्थात् कलियुग में विनायक व चंडी कि पुजा का ही विधान है क्योंकि ये दोनों ही इस युग में फलदायक, फलप्रदायक व सिद्धिदायक सिद्ध होते हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने इष्ट के साथ देवी या गणेश को भी इष्ट के रूप में मानना चाहिए। लोगों को कम ही पता है कि सतयुग में दश भुजावाले गणेश जी सिंह पर विराजमान रहते हैं, त्रेता युग में गणेश का वाहन मयूर तथा द्वापर युग में मूषक रहा है जिसे आज तक भी माना जा रहा है लेकिन कलियुग में धूम्र वर्ण के गणेश जी के दो हाथ वाले तथा घोड़े पर बैठकर प्रस्थान करते हैं इनका नाम धूम्रकेतू है।

राशि अनुसार पीड़ित ग्रह के लिए गणेश साधना उपाय:-

1)  मेष राशि वाले जातकों को वैशाख माह में शंख का दान करें।

2)   वृष राशि वाले जातकों को ज्येष्ठ माह कि किसी भी चतुर्थी को प्रद्युम्न रूपी गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

3)  मिथुन राशि वाले जातकों को आषाढ़ माहकिसी भी चतुर्थी को अनिरुद्ध स्वरूप गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

4)  कर्क राशि वाले जातकों को श्रावण माहकिसी भी चतुर्थी को मंगलमयी रूपी गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

5)  सिंह राशि वाले जातकों को भाद्रपद माहकिसी भी चतुर्थी को बहुलामय रूपी गणेश की सिद्ध पूजा -अर्चना करें।

6)  कन्या राशि वाले जातकों को आश्विन माहकिसी भी चतुर्थी को रूपी गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

7)  तुला राशि वाले जातकों को कार्तिक माहकिसी भी चतुर्थी को करक रूपी गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

8)  वृश्चिक राशि वाले जातकों को मार्गशीर्ष माहकिसी भी चतुर्थी को क्रच्छ रूपी गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

9)  धनु राशि वाले जातकों को पौष माहकिसी भी चतुर्थी को विघ्नेश्वर रूपी गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

10) मकर राशि वाले जातकों को माघ माहकिसी भी चतुर्थी को संकष्ट रूपी गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

11) कुंभ राशि वाले जातकों को फाल्गुन माहकिसी भी चतुर्थी को दक्षिण मुखी सूंड वाले गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

12) मीन राशि वाले जातकों को चैत्र माहकिसी भी चतुर्थी को प्रद्युम्न रूपी गणेश की सिद्ध पूजा-अर्चना करें।

Blog no. 39, Date: 16/9/2015

Dr. Jitendra Vyas

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