स्त्री फलित की पौराणिकता

हस्तरेखा शास्त्र में स्त्री जातक के फलित की पौराणिकता By Dr. Jitendra Vyas

female-handस्त्री जातक को जानने के लिए एक और महत्वपूर्ण विधा है- ‘हस्तरेखा शास्त्र’। सभी विधाओं मेंहस्तरेखा शास्त्र सर्वाधिक सरल, सहज उपलब्ध, रोचक एवं प्रचलित शास्त्र है। हस्तरेखा शास्त्र का उद्गम भारतवर्ष में ही हुआ तथा बाद में यह विदेशों में भी फैला। ऋषि कश्यप के अनुसार ज्योतिष विषय के 18 प्रवर्तक आचार्य हुए। लेकिन किसी आचार्य ने हस्तरेखा शास्त्र पर कोई विशेष ग्रंथ की रचना नहीं की। इस शास्त्र पर सम्यक् चिंतन का पूर्णतया अभाव रहा है। यद्यपि इस पर कुछ वैदिक ग्रंथावली अवश्य मिलती है लेकिन विद्वानों की लेखनी इस ओर सर्वथा उदासीन ही रही है। हस्तरेखा का प्रत्येक विध्यार्थी एवं जिज्ञासु इस विषय को अवश्य जानना चाहता है, विशेषकर स्त्री-जातक अतः मैंने Blog में स्त्री हस्त का वैदिक दृष्टिकोण से ऐतिहासिक चिंतन की पौराणिकता का वर्णन किया है।

प्राचीन वैदिक साहित्यों में हस्त रेखा शास्त्र संबंधी रोचक संदर्भ मिलता है, पर्वतराज हिमालय की पुत्री गिरजा के विवाह का प्रसंग:- पर्वतराज हिमालय की पुत्री गिरजा विवाह योग्य हो चली थी, योग्य वर की तलाश में उनकी माता मैनाजी बड़ी चिंतित रहती थी। इतने में महर्षि नारद प्रकट हुए और राजा की पुत्री गिरजा का हाथ देखकर उनके भावी पति की विशेषताओं का वर्णन करने लगे, उन्होनें कहा कि- “योगी, जटाधारी, निष्काम हृदय, नंगा और अमंगल दोष वाला, ऐसा होगा इसका पति” क्योंकि इसके हाथ में ऐसी ही रेखाएँ हैं। अतः इससे स्पष्ट प्रमाणित होता है कि  पौराणिक काल से ही स्त्री हस्त रेखाओं को देखने व उनसे फलित करने का प्रचलन भारतवर्ष में व्याप्त था। पौराणिक काल से पूर्व वैदिक काल रहा था और वेद संसार की प्राचीनतम पुस्तक मानी गयी है अतः वेद में हमें एक ऋचा मिलती है- “कृतं दक्षिण-हस्ते, जयों मे सव्य आहित:”अर्थात् मेरे दायें हाथ में पुरुषार्थ (वर्तमान) है तथा बाएँ हाथ में विजय (भूतकाल) है। आज भी  भारतीय संस्कृति-सभ्यता के आदि ग्रंथ वेद की उक्ति कितनी सही व सार्थक है। हस्तरेखा शास्त्र के वैज्ञानिक पाश्चात्य अध्येता यह कहते हैं कि- Your present and future in right; past,Honors and Richness in left and Bright future in right”.मानव जाति के दोनों हाथों में अंतर है, वेद कहता है- ‘दाहिना हाथ कर्म का है और बायाँ हाथ जन्म का।

हाथ में भावी कर्म (भविष्य) की रेखाएँ होती हैं, उसके अदृश्य प्रभाव को कोई शक्ति नहीं मिटा सकती है। संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास इस बात को इन शब्दों में कहा है-

“तुलसी रेखा कर्म की, मेट सके न राम । मेटे तो अचरज नहीं, (पर) समुझि कियो है काम ॥”  

यहाँ पर ‘समुझि कियो है काम’ इस उक्ति पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। वे तुलसीदास जी जिनको परमात्मा के साक्षात् दर्शन हुये थे, वे अपने अनुभव के आधार पर हस्तरेखा जिज्ञासुओं  को स्पष्ट संदेश दे रहे हैं कि ईश्वर ने बहुत सोच समझकर मनुष्य के हाथ में कर्म रेखा का अंकन किया है। इन कर्म रेखाओं के प्रभाव को साक्षात् ईश्वर भी मिटाना चाहे तो नहीं मिटा सकते। अर्थात् हस्तरेखाओं का प्रभाव अक्षुण्ण है, अमिट है, शाश्वत है, ध्रुव सत्य है। इससे उत्तम व स्पष्ट प्रमाण इस शास्त्र के सन्दर्भ में और क्या हो सकता है? इसी प्रत्यक्ष शास्त्र द्वारा स्त्री जातक के सभी योग व भोग की व्यवस्था का सम्पूर्ण विवेचन मेरी आने वाली पुस्तक में किया जाएगा।

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Dr. Jitendra Vyas

09928391270, dr.jitendra.astro@gmail.com

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