तथाकथित कालसर्प योग सिर्फ एक भ्रम By Dr. Pt. Jitendra Vyas
वर्तमान समय में हमारे आसपास तथाकथित कालसर्प दोष योग की सार्वजनिक चर्चा होती रहती है। परंतु यदि इसका वैदिक व पौराणिक आधार देखा जाए तो इनका प्रामाणिक व तथ्यात्मक स्वरूप संहिताओं में नहीं मिलता। नारद मुनि से लेकर वराहमिहिर तक व अन्य सभी प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों “कालसर्प योग” का विवरण तो छोड़, इस शब्द की चर्चा तक नहीं की है। अतः मैंनें अपने BLOG में इस भ्रम का निराकरन करने का प्रयास किया है। काल सर्प योग का निरूपण किसी भी पौराणिक ग्रंथ में नहीं मिलता है तो उसके प्रभाव-कुप्रभाव व फल-कुफ़ल का निरूपण आधुनिक ग्रह विज्ञान में किस प्रकार किया जा सकता है। आज के तथाकथित भोगी ज्योतिषियों अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए इस तथाकथित योग की रचना की है, इस योग के लिए यह कहा जाता है कि जातक की कुण्डली में राहु व केतू के मध्य सभी ग्रह आए तो तथाकथित कालसर्प योग होता है, यह तो आधुनिक ज्योतिषियों का मत है। लेकिन नारद व अन्य विद्वत ज्योतिषाचार्यों ने इसे “नाभस योग” कहा है व इसके फलित को भी विस्तृत रूप से समझाया है, उनके द्वारा उपरोक्त स्थिति को शास्त्र सम्मत बड़ा उत्तम राजयोग बतलाया गया है। यह नाभस योग जातक के जीवन से अटूट संबंध रखते हैं, ये जीवन में राजयोग बनाते हैं व जातक के जीवन में प्रस्तावित चरमोत्कर्ष को भी बताते हैं। हमारी ज्योतिष संहिताओं में 32 नाभस योग बतलाए गयें हैं। तथाकथित कालसर्प की पौराणिक अवधारणा को नौका, चाप, कूट, छत्र, शर, यूप व दंड इत्यादि आकृति योगों द्वारा समझा जा सकता है। सारवाली के अनुसार जिन जातकों का जन्म उपरोक्त योगों में होता है, वे जातक भाग्यवान, अपने भाग्य से आनंदित, सरकार व मंत्री के प्रिय, सरकारी योजनायों से धन प्राप्त करते हैं, विश्व विख्यात व सुख से युक्त होते हैं, जबकि वर्तमान समय में इसके विपरीत फलित बताया गया है, आप ही सोचिए इसे हम शास्त्रानुसार कैसे कह सकते हैं। इसकी विस्तृत व्याख्या मैंने मेरी पुस्तक “भारतीय ग्रह विज्ञान और आधुनिक समस्याएँ: कारण एवं निवारण” के पहले अध्याय में की है। यथा:-
नन्द्ति स्वेर्भाग्यैर्नुपलब्धघना नृपप्रिया ख्याता:।
प्रायेण सौख्ययुक्ताश्याकृतियोगेशु ये जाता:॥
किसी भी जातक कि कुण्डली में लग्न से सप्तम पर्यन्त सभी ग्रह आयें तो वह नौका योग कहलाता है, कुण्डली में यदि चतुर्थ से दशम भाव तक सभी ग्रह आयें तो वह कूट योग कहलाता है, यदि सप्तम भाव से लग्न तक सभी ग्रह आयें तो वह छत्र तथा दशम से चतुर्थ तक सभी ग्रह आयें तो वह चाप योग कहलाता है। इसी प्रकार कुण्डली में लग्न से चतुर्थ पर्यन्त सभी ग्रह हों तो यूप योग, चतुर्थ से सप्तम शर योग, सप्तम से दशम तक शक्ति योग व दशम से लग्न तक सभी ग्रह हों तो दंड योग कहलाता है। जैसे यूप योगों में जनम नें वाला जातक त्यागी, धनी, सुखी, विश्व विख्यात व प्रसिद्ध, व्रतनियम पालन करने वाला, परिवार की रक्षा करने वाला व आत्मरक्षक, लग्जरी भोगी होता है। यथा:-
आत्मनि रक्षानिरततस्त्यागयुतो वित्तसौढय सम्पन्न: ।
व्रतनियम सत्यनिरतो यूपे जातो विशिष्टश्च ॥
इसी प्रकार अन्य योगों के फलों की विस्तृत व्याख्या अन्यत्र की जा सकेगी या फिर जातक गण मिल कर फलित करवा सकते हैं। अतः मेरे वैदिक शोध तथाकथित कालसर्प की अवधारणा को निरस्त कर दिया है। यदि आप इनके फल को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि इनके फलों सुफलों का ही आधिक्य है। मैंने अकाट्य प्रमाणों द्वारा कालसर्प को नाभस योग सिद्ध किया हैं।
Blogno: 30 Date: 5/5/2015
Dr. Jitendra Vyas (Astrologer)
Contact: 09928391270, info@drjitendraastro.com, pandit@drjitendraastro.com