“मांगलिक दोष का शास्त्रार्थ वर्णन: उसका कारण और निवारण”
आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मांगलिक दोष की कई प्रकार की चर्चाएँ होती है। प्रत्येक ज्योतिषी और आमजन इसकी अलग-अलग चर्चायें करता है। आज में डॉ. जितेन्द्र व्यास इसकी सरल व सारगर्भित व्यख्या करूंगा।
कुण्डली में 12 भाव होते हैं,एक व्याख्या तो यह है कि यदि किसी कुंडली के लग्न (प्रथम भाव) में व लग्न से, चोथे, सप्तम, अष्टम व 12वें भाव में मंगल ग्रह विराजित हो तो ऐसे लड़का-लड़की मांगलिक होते हैं, दूसरी व्याख्या यह है की यही यही मंगल ग्रह यदि चन्द्र कुण्डली से (1/4/7/8/12वे भाव) में हो तो ऐसा व्यक्ति भी मांगलिक होता है। उपरोक्त दो व्याख्याएँ तो सामान्यतया: प्रचलित है परन्तु मैं यहां आपको तीसरी और जरूरी व्याख्या बताऊंगा। यदि मंगल ग्रह इन भावों (1/4/7/8/12 भावों) में से किसी भी भाव में स्वगृही, मूलत्रिकोण या उच्च का स्थित हो तो ऐसी कुण्डली वाला व्यक्ति मांगलिक नहीं होता है। इसके अलावा आपकी कुण्डली के अन्य सभी समीकरण तो आपको एक अच्छा ज्योतिषी ही बता पाएगा अतः किसी विज्ञ व जानकार पंडित से मांगलिक दोष को अच्छी तरह से ज्ञात करवाएँ अन्यथा यह दोष वैवाहिक जीवन में समस्या का कारक बन सकता है।
मांगलिक दोष निवारण के उपाय :
1. मांगलिक कुण्डलियों का मिलन करके ही विवाह करें।
अन्यथा
1 . घट विवाह/ शालिग्राम विधान या लक्ष्मी(तुलसी) करवाएँ।
2 . वट सावित्री व्रत विधान व पूजन करवाएँ।
Note : भिन्न-भिन्न कुण्डलियों के लिए उयाय भी अलग-अलग होते हैं अतः आप हमसे संपर्क भी कट सकते हैं।
Regards
Dr. Pt. Jitendra Vyas
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