Netaji ki mrityu ka rahasya

श्री सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु का आंकलन- ज्योतिषानुसार By Dr. Jitendra Vyas

BLOG No.16 Date 15/4/2015

श्री सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु कब हुई आजकल इस विषय पर भिन्न-भिन्न अवधारणाएँ बतलाई जा रही है, लेकिन मैं आज नेताजी की कुण्डली के अनुसार मेरा आंकलन इस BLOG में प्रस्तुत कर रहा हूँ। इतिहासकारों के अनुसार नेताजी की मृत्यु 1945 में हुई थी, मैं इस तथ्य से पूरी तरह से असहमत हूँ, क्योंकि ज्योतिष के वैदिक लघुपराशरी सिद्धांत अनुसार व्यक्ति विशेष की मृत्यु अष्टमेश व मारकेश की दशा व अंतर्दशा में ही संभव है या अष्टम, षष्टम व द्वादश भाव में विराजित क्रूर-अशुभ ग्रहों के कारण भी संभव है तथा वैदिक ज्योतिष के महर्षि जैमिनी सिद्धांत अनुसार यह भी देखना पड़ता है कि  व्यक्ति विशेष पूर्णायु था, मध्यायु था या फिर अल्पायु था। यह भी जानना बड़ा ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि व्यक्ति की आयु पूर्ण है और उसमें मृत्यु की दशा आ जाए तो व्यक्ति की मृत्यु नहीं होगी। उस व्यक्ति का जीवनकाल समाप्त होने पर यदि मृत्यु दायी दशा आती है तो ही व्यक्ति की मृत्यु होगी। तथाकथित रूप से यह कहा गया है कि नेताजी की मृत्यु 18/8/1945 को हुई थी। मेरा आंकलन कुछ है अलग आइए इस नज़र डालते हैं।

combo 1 नेताजी का जन्म 23/1/1897 में हुआ था उनकी कुंडली मेष लग्न की है। इस कुण्डली के विश्लेषण में सिर्फ श्री नेताजी के मृत्यु योग पर चर्चा की गयी है, अन्यत्र हम विषयांतर हो जाएंगे। कुण्डली में दशमेश (पद) शनि मृत्यु कारक भाव अष्टम में है, यद्यपि वह भाव शनि का कारक घर है अतः व्यक्ति मध्यायु तो होगा ही तथा लग्नेश वृद्धि कारक है अतः छोटी अवस्था मे मर जाना इस कुण्डली में घटित नहीं हो सकता है। कहा जाता है कि नेताजी की मृत्यु 18/8/1945 को हुई लेकिन उस समय पर नेताजी को भाग्येष गुरु कि महादशा में चन्द्र का अंतर चल रहा था और उसमें शुक्र ग्रह का प्रत्यंतर था- (गुरु-चन्द्र-शुक्र–12/7/1945 से लेकर 2/10/1945 तक) मेष लग्न में शुक्र नैसर्गिक व परम मारक ग्रह है परंतु ध्यान रहे कि मारकेश मारता नहीं है, वह या तो वह मृत्यु तुल्य कष्ट देता है या फिर मृत्यु व रोग संबन्धित अफ़वाएँ फेलाता है, जब तक की किसी प्रधान मारक ग्रह की दशा-अंतर्दशा उसके साथ नहीं जुड़ जाती, और नेताजी की कुण्डली देखने पर ज्ञात होता है की इनकी कुण्डली में प्रधान मारकग्रह शनि है (जो कि मैं आपको संदर्भ के साथ आगे बताऊंगा)। नेताजी की तथाकथित मृत्यु के समय (18/8/1945) ऐसी कोई दशा (शनि) नहीं चल रही थी। अतः उस समय उनकी की मृत्यु नहीं हुई यद्यपि उनके मारे जाने की अफवाह जरूर फैल गयी, यह फल तो दशा के अनुरूप ही था। उनके प्लेन  हादसे में नहीं मरने का एक पुख्ता कारण और भी है कि नेताजी की कुण्डली में सामूहिक अनिष्ट (सामूहिक अनिष्ट का अर्थ है कि एक साथ सैकड़ों लोगों का मर जाना) में मरने के योग नहीं थे क्योंकि कुण्डली में लग्नेश व अष्टमेश दोनों का युति संबंध लग्न या 8th  हाउस में नहीं है। अतः किसी भी हादसे में उनकी मृत्यु नहीं हुई है। क्योंकि सामूहिक अनिष्ट बहुत बड़ा विषय है इसकी चर्चा पृथक रूप से की जा सकती है। तो अब प्रश्न ये उठता है कि दिवंगत नेताश्री की मृत्यु कब हुई? – इस पर मैंने गहन रिसर्च कि है उसके बाद मैं सटीक परिणाम पर पहुंचा हूँ। ज्योतिष ग्रंथ लघुपाराशरी के अनुसार –

मारकै: सह सम्बन्धान् निहन्ता पापकृच्छनि: ।

अतिक्रम्येतरान् सर्वान् भवत्येव न संशय: ॥  

 इस श्लोक का यह अर्थ है कि पापफल देना वाला शनि जब मारक ग्रहों से संबंध करता है (दशाओं में) तब वह अन्य सब मारक ग्रहों को हटा कर स्वयं ही मारकफल करता है या मारक बन जाता है, इसमें कोई संशय नहीं है। शनि नेता जी कि कुण्डली में आय भाव (एकादश) का आधिपति होकर अष्टम में विराजित है। अतः

शनिस्तु यम एवातो विख्यातो मारक: पुनः ।

अन्यमारकसम्बन्धात प्राबाल्यं तस्य संस्फुटम् ॥  

श्लोकानुसार शनि यम है अतः स्वभाव से ही मारक है, उस पर भी वह त्रिषडाय (3/6/11 भाव का मालिक) स्थानों के आधिपत्य से पापकारक होकर  प्रबलमारक हो गया है, फिर यदि मारक ग्रहों से संबंध हो जाए तो सबसे प्रबल मारक होने में कोई संशय नहीं रखना चाहिए जैसा कि नेताजी वाले Case में दिखाई पड़ता है।

नेताजी की कुण्डली में जब आय के आधिपति शनि मारकेश शुक्र के साथ संबंध करे तो शनि ग्रह अन्य सभी मारकेशों को पीछे हटाकर स्वयं मारक हो गया। चूंकि पापकृत शनि मारक होता है अतः इस कुण्डली में शनि ग्रह अन्य मारकेशों की अपेक्षा विशिष्ट मारकेश बन गया। BLOG के प्रथम श्लोक के अनुसार शनि व शुक्र दशांतर में निधन की परिपाटी लिख दी हैं, मेष लग्न की इस कुण्डली में अष्टमस्थ शनि के साथ द्वितीयेश (मारकेश) शुक्र दशा संबंध में जब भी होगा तो ऐसा शनि निहन्ता हो जाता है  अर्थात् मृत्यु कारक हो गया और ऐसी (शनि-शुक्र-शनि) शनि की महादशा में शुक्र की अंतर दशा, उसमें शनि की प्रत्यंतर दशा श्री सुभाषचन्द्र बोस को 29/12/1957 से लेकर 29/6/1958 तक लगी थी अतः मेरा मानना है की नेताजी की मृत्यु Dec 57 से June 58 के बीच ही हुई है और मृत्यु भारत में ही हुई, क्योंकि फरवरी 49 तक इन्हें गुरु की 16 साल की दशा समाप्त हो चुकी थी अतः वो 1949 के बाद भारत में आ चुके थे और कई राजनीतिक कारणों से भेष बदल के रह रहे थे।

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